थिम्फू. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूटान के दो दिन के दौरे पर हैं। इस दौरान शुक्रवार को भूटान के राजा जिग्मे वांगचुक ने प्रधानमंत्री को वहां के सर्वोच्च ‘ऑर्डर ऑफ ड्रूक ग्यालपो’ अवॉर्ड से सम्मानित किया। मोदी ने कहा कि वो इस सम्मान को 140 करोड़ भारतीयों को समर्पित करते हैं।मोदी ने कहा, “आज एक भारतीय के नाते मेरे जीवन का बहुत बड़ा दिन है, आपने मुझे भूटान के सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है। हर पुरस्कार अपने आप में विशेष होता ही है लेकिन जब किसी अन्य देश से पुरस्कार मिलता है तो यह महसूस होता है कि हम दोनों देश सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।” इसस पहले वो राजधानी थींपू के ताशिचो द्जोंग पैलेस पहुंचे। यहां उनका औपचारिक स्वागत हुआ। उन्होंने भूटान के राजा जिग्मे वांगचुक से मुलाकात की। भूटान पहुंचने पर प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे ने पारो एयरपोर्ट पर मोदी का गले मिलकर स्वागत किया। टोबगे ने मोदी से कहा, ‘स्वागत है मेरे बड़े भाई।’ उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया।
चुनावों के ऐलान के बाद विदेश दौरे पर जाने वाले पहले प्रधानमंत्री
मोदी भारत में आम चुनावों का ऐलान होने के बाद किसी विदेश दौरे पर जाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक चुनाव से ठीक पहले भूटान जाकर मोदी ने पड़ोसी देश को उसकी अहमियत का एहसास कराने की कोशिश की है। भूटान भी मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान – ऑर्डर ऑफ द ड्रुक ग्यालपो से नवाजेगा। यह सम्मान भूटान के राजा उन्हें देंगे। इसके अलावा भूटान के राजा जिग्मे वांगचुक भारत-भूटान संबंधों को मजबूत करने और कोरोना के समय मदद करने के लिए मोदी को एक अन्य अवॉर्ड से भी सम्मानित करेंगे।
भूटान में आज सभी स्कूल बंद
भूटान में मोदी का स्वागत करने के लिए आज सभी स्कूल बंद हैं। छात्र उनका स्वागत करने के लिए एक्सप्रेस हाईवे पर पहुंचे। भूटान के प्रधानमंत्री टोबगे 5 दिन के लिए (14-18 मार्च) भारत आए थे। जनवरी 2024 में PM बनने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी। यात्रा के दौरान टोबगे ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, PM मोदी से मुलाकात की थी। इसी दौरान उन्होंने PM मोदी को भूटान के दौरे पर आमंत्रित किया था। इसे मोदी ने स्वीकार भी कर लिया था।
भूटान का दौरा क्यों कर रहे PM मोदी
अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर नजर रखने वाली मैग्जीन द डिप्लोमेट के मुताबिक इस वक्त भूटान के दौरे की एक अहम वजह चीन भी है। दरअसल, पिछले साल भूटान के पूर्व प्रधानमंत्री लोते थेरिंग ने डोकलाम को तीन देशों का विवाद बताया था। इस पर भारत ने नाराजगी जाहिर की थी। थेरिंग का बयान भारत के उस स्टैंड से उलट है, जिसमें वो डोकलाम को भारत और भूटान के बीच का मसला मानता है।
भूटान के प्रधानमंत्री थेरिंग ने ये बात बेल्जियम की न्यूज वेबसाइट ‘डेली ला लिब्रे’ को दिए इंटरव्यू में कही थी। इसमें उन्होंने कहा था- डोकलाम मसले का हल सिर्फ भूटान नहीं निकाल सकता। इस मामले से तीन देश जुड़े हैं। और इस मामले में किसी भी देश को छोटा नहीं माना जा सकता। सब बराबर के हिस्सेदार हैं। इससे पहले कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि भूटान, इसके कई हिस्सों पर चीन दावा करता है। भूटान उन पर चीनी कब्जे का ज्यादा विरोध नहीं करेगा। भारत भूटान के इस रुख को अपने लिए खतरे का संकेत मानता है। मोदी के दौरे के वक्त सीमा विवाद को लेकर भारत अपना पक्ष और मजबूत करेगा।
भूटान का सबसे बड़ा सहयोगी देश है भारत
ऐतिहासिक तौर पर भूटान हमेशा भारत के करीब रहा है, हालांकि उसकी फॉरेन पॉलिसी में भारत ने कभी दखलंदाजी नहीं की। 8 लाख की आबादी वाले भूटान की गुट निरपेक्ष नीति है। उसके अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस से राजनयिक संबंध नहीं हैं। 1949 में भारत-भूटान में विदेश नीति, व्यापार व सुरक्षा को लेकर संधि हुई थी। 2007 में विदेश नीति का प्रावधान हटा दिया गया। भारत अब भूटान का सबसे बड़ा राजनयिक और आर्थिक साथी है।
क्या है डोकलाम विवाद
डोकलाम दरअसल, एक त्रिकोणीय जगह है। इसे ट्राइजंक्शन एरिया कहा जाता है। यहां से भारत का सिक्किम राज्य लगता है। भूटान की 600 किमी सीमा चीन से लगती है। दो इलाकों को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। पहला- 269 वर्ग किमी क्षेत्रफल का डोकलाम इलाका और दूसरा- उत्तर भूटान में 495 वर्ग किमी का जकारलुंग और पासमलुंग घाटी का क्षेत्र। सबसे गंभीर मामला डोकलाम का है, जहां चीन, भारत और भूटान तीनों देशों की सीमाएं लगती हैं। अक्टूबर 2021 में चीन और भूटान ने ‘थ्री-स्टेप रोडमैप’ के समझौते पर दस्तखत किए थे। चीन डोकलाम के जिस इलाके में सड़क का निर्माण कर रहा था, वहां भूटान और चीन अपना-अपना दावा करते हैं। भूटान ने चीन से कंस्ट्रक्शन रोकने की मांग की। भारत इस विवाद में भूटान का साथ देता रहा है। वहीं, चीन इसे ब्रिटिश दौर में हुई ट्रीटी का हवाला देकर अपना इलाका बताता रहा है।
चीन से सीमा विवाद के चलते भारत के लिए अहम भूटान
भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं भूटान के ईस्टर्न बॉर्डर से मिलती हैं। चीन का प्लान है कि वो अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा कर ले, जिससे वो भूटान का पड़ोसी बन जाए। भूटान के वेस्टर्न हिस्से में स्ट्रैटेजिक पाइंट को जोड़ने के लिए चीन पहले से ही बड़े स्तर पर सड़कें बना रहा है।रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन डोकलाम से गामोचिन तक अपनी सड़कों का विस्तार करना चाहता है, जिसकी सुरक्षा का जिम्मा अभी भारतीय सेना के पास है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब जाने का चीन का प्रयास भारत और भूटान दोनों के लिए एक सुरक्षा खतरा है। चीन इस क्षेत्र में रेलवे लाइनों के अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहा है, जिससे युद्ध के समय उसकी सेना को बड़ा एडवांटेज मिल सकता है।
भूटान में निवेश के लिए अहम भारत
भूटान ने 1960 के दशक में आर्थिक विकास के लिए अपनी पहली पंच वर्षीय योजना शुरू की थी। जिसकी सारी फंडिंग ही भारत ने की थी। 2021 में भारत सरकार ने भूटान के साथ द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिए 7 नए ट्रेड रूट खोले थे। वहीं 12वीं पंच वर्षीय योजना के लिए भी भारत ने भूटान को 4500 करोड़ रुपए दिए थे। भारत की आजादी के बाद दोनों देशों के बीच एक संधि हुई थी। इसमें कई प्रावधान थे, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण रक्षा और विदेश मामलों में भूटान की निर्भरता को लेकर था। हालांकि समय-समय पर इस संधि में कई बदलाव हुए, लेकिन आर्थिक सहयोग को मजबूत करने और उसके विस्तार के लिए, संस्कृति-शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आपसी सहयोग के प्रावधान बने रहे।
साभार : दैनिक भास्कर
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