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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ‘गड़बड़ी वाली फार्मा कंपनियों’ के खिलाफ आसान शिकायत तंत्र बनाने का आदेश दिया

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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि फार्मा कंपनियों के अनैतिक कार्यों की वजह से ठगा महसूस करनेवाले आम नागरिक के पास यूनिफार्म कोड के तहत शिकायत दर्ज कराने और उचित कार्रवाई के लिए मजबूत सिस्टम होना चाहिए।

फार्मा कंपनियों के कथित अनैतिक कार्यों पर कार्रवाई को भी यूनिफार्म कोड में शामिल करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि ये सुनिश्चित होना चाहिए कि गड़बड़ी करनेवाली कंपनियां कार्रवाई के दायरे में लाई जाएंगी।

केंद्र की तरफ से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि चाहे दवाओं की मूल्यवृद्धि का मामला हो या ऐसी गतिविधियों को नियंत्रित करना हो, इन सबके लिए सरकार ने नीतियां लागू कर रखी हैं।

उन्होंने कहा कि यूनिफार्म कोड फार फार्मास्युटिकल्स मार्केटिंग प्रैक्टिसेज (यूसीपीएमपी), 2024 के तहत फार्मा कंपनियों को स्वास्थ्य पेशेवरों या उनके परिवार सदस्यों को उपहार और यात्रा सुविधाएं देने से प्रतिबंधित किया गया है। इस पर पीठ ने कहा कि अगर आप ऐसा कानून ले आए तो आपने उसमें उपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण का इंतजाम क्यों नहीं किया ताकि उन्हें भी सुविधा हो।

नटराज ने कहा कि यूसीपीएमपी के तहत शिकायतें दर्ज कराने की प्रक्रियाएं दी गई हैं, जिसमें जुर्माने का प्रविधान भी है। हालांकि, एक स्वतंत्र पोर्टल भी लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ड्रग्स एंड कास्मेटिक्स एक्ट, 1940, में दवाओं के आयात, विनिर्माण, वितरण और बिक्री को नियंत्रित किया जाता है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि यूसीपीएमपी 2024 केवल एक स्वैच्छिक संहिता है।

पीठ ने नटराज से कहा कि वह इस बारे में निर्देश प्राप्त करें कि क्या सरकार की ओर से इन गतिविधियों पर कार्रवाई के लिए किसी तरह का कदम उठाया गया है। मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी।

ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर दें, कोर्ट छह महीने में ट्रायल पूरा करने के लिए दिन-रात काम करेंगे’

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह देशभर में आवश्यक न्यायिक बुनियादी ढांचा तैयार करे, और यह (सुप्रीम कोर्ट) सुनिश्चित करेगा कि कोर्ट दिन-रात काम करें ताकि यूएपीए और मकोका जैसे विशेष कानूनों के तहत गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में शामिल आरोपितों का ट्रायल छह महीने के भीतर पूरा किया जा सके।

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने खूंखार अपराधियों के ट्रायल में तेजी लाने की वकालत करतेहुए कहा कि अगर ट्रायल छह महीने में पूरा हो जाता है तो आरोपित को लंबे ट्रायल के आधार पर जमानत नहीं मिल पाएगी।

पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सालिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी से कहा, ”आप बसजरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करें, और ट्रायल जल्दी पूरा हो, ताकि देश के खिलाफ अपराध करने वालों या जघन्य अपराधों में शामिल लोगों को जमानत न मिले। हम यह पक्का करेंगे कि कोर्ट दिन-रात काम करके छह महीने में ट्रायल पूरा करें।”

एएसजी ने कहा कि केंद्रीय गृह सचिव इस मामले से अवगत हैं, और विशेष कानूनों के लिए एनआइए की स्पेशल कोर्ट और दूसरे स्पेशल कोर्ट बनाने के मुद्दे पर अलग-अलग राज्य सरकारों के साथमी¨टग हो चुकी है।

पीठ ने कहा कि आजकल मुकदमा लड़ने के लिए खर्च (लिटिगेशन कास्ट) बहुत ज्यादा है, और अगर ट्रायल छह महीने में पूरा हो जाए तो यह सभी पक्षों के लिए फायदेमंद होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनआइ को गवाहों की गवाही के लिए कोर्ट की आनलाइन सुविधा का फायदा उठाना चाहिए, ताकि वे दूर-दराज की जगहों से भी बिना किसी रोक-टोक के गवाही दे सकें और यह सुनिश्चित हो सके कि ट्रायल तेजी से हो सके।

पीठ ने कहा, ”आपको गवाह सुरक्षा स्कीम के तहत उनकी सुरक्षा पक्की करनी होगी, और उन्हें श्रीनगर या दूसरी दूर की जगहों से दिल्ली आने की जरूरत नहीं है।”

एनआइए केस में बड़ी संख्या में गवाहों के होने के मुद्दे पर पीठने कहा कि प्रासिक्यूशन को बड़ी लिस्ट को छोटा करना चाहिए और उन पर भरोसा करना चाहिए जो सबसे ज्यादा भरोसेमंद हैं। एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने गृह मंत्रालय को भरोसा दिलाया कि इन मुद्दों पर पहले से ही विचार कर रही है, और जल्द ही कोर्ट के सामने एक रोडमैप पेश किया जाएगा।

साभार : दैनिक जागरण

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