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आर्थिक प्रगति के बल पर भारत पुनः विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर

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– प्रहलाद सबनानी

यदि भारत के प्राचीन अर्थतंत्र के बारे में अध्ययन किया जाय तो ध्यान आता है कि प्राचीन भारत की अर्थव्यस्था बहुत समृद्ध थी। ब्रिटिश आर्थिक इतिहास लेखक एंगस मेडिसन एवं अन्य कई अनुसंधान शोधपत्रों के अनुसार ईसा के पूर्व की 15 शताब्दियों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा 35-40 प्रतिशत बना रहा एवं ईस्वी वर्ष 1 से सन 1500 तक भारत विश्व का सबसे धनी देश था। एंगस मेडिसन के अनुसार, मुगलकालीन आर्थिक गतिरोध के बाद भी 1700 ईस्वी में वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान 24.4 प्रतिशत था। ब्रिटिश औपनिवेशिक शोषण के दौर में यह घटकर 1950 में मात्र 4.2 प्रतिशत रह गया था। हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के जेफ्रे विलियमसन के “इंडियाज डीइंडस्ट्रीयलाइजेशन इन 18 एंड 19 सेंचुरीज“ के अनुसार, वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में भारत का हिस्सा, ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारत आने के समय जो 1750 में 25 प्रतिशत था, घट कर 1900 में 2 प्रतिशत तक आ गया और इंग्लैंड का हिस्सा जो 1700 में 2.9 प्रतिशत था, 1870 तक ही बढ़कर 9 प्रतिशत हो गया था। भारत में पढ़ाई जा रही आर्थिक पुस्तकों में प्राचीन भारत के आर्थिक वैभवकाल का वर्णन नहीं के बराबर ही मिलता है।

प्राचीन भारत में कुटीर उद्योग बहुत फल फूल रहा था इससे सभी नागरिकों को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध रहते थे एवं हर वस्तु का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता था। ग्रामीण स्तर पर भी समस्त प्रकार के आवश्यक उत्पाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहते थे अतः वस्तुओं के दामों पर सदैव अंकुश रहता था। बल्कि कई बार तो वस्तुओं की बाजार में आवश्यकता से अधिक उपलब्धि के कारण उत्पादों के दामों में कमी होते देखी जाती थी। जबकि आज के बाजारों में वस्तुओं की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता नहीं रहने के चलते मुद्रा स्फीति की दर बहुत ऊपर पाई जा रही है। विश्व के कई भागों में सभ्यता के उदय से कई सहस्त्राब्दी पूर्व, भारत में उन्नत व्यवसाय, उत्पादन, वाणिज्य, समुद्र पार विदेश व्यापार, जल, थल एवं वायुमार्ग से बिक्री हेतु वस्तुओं के परिवहन एवं तत्संबंधी आज जैसी उन्नत नियमावलियां, व्यवसाय के नियमन एवं करारोपण के सिद्धांतों का अत्यंत विस्तृत विवेचन भारत के प्राचीन वेद ग्रंथों में प्रचुर मात्रा में मिलता है। प्राचीन भारत में उन्नत व्यावसायिक प्रशासन व प्रबंधन युक्त अर्थतंत्र के होने के भी प्रमाण मिलते हैं। परंतु, पिछले लगभग 1000 वर्षों के दौरान अरब देशों से आक्रांताओं के लगातार आक्रमण एवं लूट खसोट तथा अंग्रेजों के शासनकाल के चलते भारत अपने वैभव काल से धरातल पर आ गया था।

परंतु, अब पिछले 8 वर्षों के खंडकाल में भारत के लिए परिस्थितियां तेजी से बदली हैं एवं भारत पुनः वैश्विक स्तर पर एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। अब भारत कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करते हुए अपने पड़ौसी देशों की सहायता में बहुत आगे आ रहा है। हाल ही के समय में भारत अपने कई पड़ौसी देशों का संकटमोचक बना है।  आर्थिक संकट के बुरे दौर से गुजर रहे श्रीलंका को भारत ने इस वर्ष की शुरुआत से अब तक 350 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई है। इसके अलावा भारत की ओर से 4 लाख टन ईंधन के साथ खाद्य सामग्री और दवाईयों की आपूर्ति भी की गई है। इसी प्रकार आपदाग्रस्त अफगानिस्तान में भी भारत लगातार राहत सामग्री भेज रहा है। भारत, मानवीय सहायता के तहत अब तक 7 खेप में 20 टन दवाईयां भेज चुका है। जिसमें जीवनरक्षक दवा, टीबी रोधी दवा, कोविड रोधी टीके की 5 लाख खुराक शामिल हैं। साथ ही, भारत ने अब तक 35 हजार मीट्रिक टन गेहूं भी अफगानिस्तान को मानवीय आधार पर उपलब्ध कराया है।

जब से रूस एवं यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ है तब से वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों विशेष रूप से गेहूं की उपलब्धता में बहुत कमी आ गई है क्योंकि रूस और यूक्रेन दोनों ही देश, गेहूं का सबसे अधिक निर्यात करते हैं। ऐसे समय में भी भारत द्वारा ही कई देशों को गेहूं की आपूर्ति की जा रही है। हालांकि भारत ने अपने देश में गेहूं की पर्याप्त उपलब्धता बनाए रखने के उद्देश्य से 13 मई 2022 को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है। परंतु, इसके बावजूद मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखकर लगभग 12 देशों को 18 लाख टन गेहूं का निर्यात अभी हाल ही में किया गया है। अभी तक जिन देशों को गेहूं का निर्यात किया गया है उनमें शामिल हैं, दक्षिणी कोरीया, वियतनाम, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बंगलादेश, अफगानिस्तान, ओमान, फिलीपीन, श्रीलंका, सूडान, थाईलैंड, स्विट्जरलैंड, भूटान, इजराईल, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल और यमन।

वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान तो भारत से कृषि उत्पादों का निर्यात लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए अपने उच्चतम स्तर 5000 करोड़ अमेरिक डॉलर पर पहुंच गया है। गेहूं के  निर्यात ने 273 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की एवं चावल के निर्यात में भारत ने वैश्विक स्तर पर 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल कर ली है। इसी प्रकार, भारत का समुद्री निर्यात भी नित नए कीर्तिमान बना रहा है। समुद्री उत्पादों का निर्यात वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 30.26 प्रतिशत बढ़कर 776 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया। भारत ने 13,69,264 टन समुद्री खाद्य उत्पादों का निर्यात किया। साथ ही, भारत का वस्त्र और परिधान निर्यात भी वित्तीय वर्ष 2021-22 में 41 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 4,440 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया, जो अब तक किसी भी वित्तीय वर्ष में सबसे अधिक है। कपड़ों के कुल निर्यात में मानव निर्मित कपड़े और परिधान की 14 प्रतिशत (630 करोड़ अमेरिकी डॉलर) तथा हस्तशिल्प की 5 प्रतिशत (210 करोड़ अमेरिकी डॉलर) हिस्सेदारी रही। भारत से अमेरिका को सबसे अधिक 27 प्रतिशत वस्त्र और परिधान का निर्यात किया गया।

अब तो भारत ने रक्षा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता हासिल करने की ओर अपने कदम बढ़ा लिए हैं एवं कई रक्षा उत्पादों का तो निर्यात भी किया जा रहा है। अभी हाल ही में भारत का स्वदेशी निर्मित तेजस हल्का लड़ाकू विमान मलेशिया की पहली पसंद बनाकर उभरा है। मलेशिया ने अपने पुराने लड़ाकू विमानों के बेड़े को बदलने के लिए प्रतिस्पर्धा की थी। जिसमें चीन के जेएफ-17, दक्षिण कोरिया के एफए-50 और रूस के मिग-35 के साथ साथ याक-130 से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद मलेशिया ने भारतीय विमान तेजस को पसंद किया है। आज देश की कई सरकारी एवं निजी क्षेत्र की कंपनियां विश्व स्तर के रक्षा उपकरण भारत में बना रही हैं एवं उनके लिए विदेशी बाजारों के दरवाजे खोले दिए गए हैं। इस कड़ी में 30 दिसम्बर 2020 को आत्म निर्भर भारत योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने स्वदेशी मिसाइल आकाश के निर्यात को अपनी मंजूरी प्रदान की थी। आकाश मिसाइल भारत की पहचान है एवं यह एक स्वदेशी (96 प्रतिशत) मिसाइल है। दक्षिणपूर्व एशियाई देश वियतनाम, इंडोनेशिया, और फिलिपींस के अलावा बहरीन, केन्या, सउदी अरब, मिस्र, अल्जीरिया और संयुक्त अरब अमीरात ने आकाश मिसाइल को खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है। आकाश मिसाइल के साथ ही कई अन्य देशों ने तटीय निगरानी प्रणाली, राडार और एयर प्लेटफार्मों को खरीदने में भी अपनी रुचि दिखाई है।

देश की रक्षा एजेंसियों, विशेष रूप से डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन), द्वारा भारत को रक्षा उपकरणों के निर्यातक देशों की श्रेणी में ऊपर लाने की लगातार कोशिश की जा रही हैं एवं अब इसके सुखद परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। भारत जल्द ही दुनिया के कई देशों यथा फिलीपींस, वियतनाम एवं इंडोनेशिया आदि को ब्रह्मोस मिसाइल भी निर्यात करने की तैयारी कर रहा है। कुछ अन्य देशों जैसे सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात एवं दक्षिण अफ्रीका आदि ने भी भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है।  ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना तेज, माक 3 की गति से चलने वाली और 290 किलोमीटर की रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइलें भारत-रूस सैन्य सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। जमीन, आकाश और समुद्र स्थित किसी भी लांच उपकरण से छोड़े जा सकने वाले ब्रह्मोस की खूबी यह है कि यह अपनी तरह का अकेला क्रूज मिसाइल है। आज भारत से 84 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात किया जा रहा है।  इस सूची में कतर, लेबनान, इराक, इक्वाडोर और जापान जैसे देश भी शामिल हैं जिन्हें भारत द्वारा बॉडी प्रोटेक्टिंग उपकरण, आदि निर्यात किए जा रहे हैं।

कृषि क्षेत्र एवं रक्षा उत्पादों के साथ ही प्रौद्योगिकी, सूचना तकनीकी, आटोमोबाईल, फार्मा, मोबाइल उत्पादन, नवीकरण ऊर्जा, डिजिटल व्यवस्था, बुनियादी क्षेत्रों का विकास, स्टार्ट अप्स, ड्रोन, हरित ऊर्जा और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में भी  भारत अपने आप को तेजी से वैश्विक स्तर पर स्थापित कर रहा है।

लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.

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