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वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत के बारे में आकलन सही नहीं महसूस हो रहा

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– प्रहलाद सबनानी

अभी हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान ने वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया है। इस सूचकांक में यह बताया गया है कि भारत की तुलना में श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, एथीयोपिया, नेपाल, भूटान आदि देशों में भुखमरी की स्थिति बेहतर है। अर्थात, सर्वे में शामिल किए गए 121 देशों की सूची में श्रीलंका का स्थान 64वां, म्यांमार का 71वां, बांग्लादेश का 84वां, पाकिस्तान का 99वां, एथीयोपिया का 104वां एवं भारत का 107वां स्थान बताया गया है। जबकि पूरा विश्व जानता है कि वर्तमान में श्रीलंका, पाकिस्तान एवं म्यांमार जैसे देशों में खाद्य पदार्थों की भारी कमी है जिसके चलते इन देशों के नागरिकों के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। जबकि, भारत कई देशों को आज खाद्य सामग्री उपलब्ध करा रहा है। फिर किस प्रकार उक्त सूचकांक बनाकर वैश्विक स्तर पर जारी किए जा रहे हैं। ऐसा आभास हो रहा है कि भारत की आर्थिक तरक्की को विश्व के कई देश अब सहन नहीं कर पा रहे हैं एवं भारत के बारे में इस प्रकार के सूचकांक जारी कर भारत की साख को वैश्विक स्तर पर प्रभावित किए जाने का प्रयास किया जा रहा है।

युद्ध की विभीषिका झेल रहे एथीयोपिया में नागरिक अपनी भूख मिटाने के लिए घास जैसे भारी पदार्थों को खाकर अपना जीवन गुजारने को मजबूर हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच जीवन यापन करने वाले नागरिकों को भुखमरी के मामले में भारत के नागरिकों से बेहतर स्थिति में बताया गया है। वहीं दूसरी ओर भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत 80 करोड़ नागरिकों को केंद्र सरकार द्वारा प्रतिमाह 5 किलो मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि इन लोगों को खाने पीने सम्बंधी किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हो। फिर भी भारत के नागरिकों को भुखमरी सूचकांक में ईथीयोपिया के नागरिकों की तुलना में इतना नीचे बताया गया है। अब कौन इस प्रकार के सूचकांकों पर विश्वास करेगा। यह भी बताया जा रहा है कि इस सूचकांक को आंकने के लिए भारत के 140 करोड़ नागरिकों में से केवल 3000 नागरिकों को ही इस सर्वे में शामिल किया गया था। इस प्रकार सर्वे का सैम्पल बनाते समय भारत जैसे विशाल देश के लिए अपर्याप्त संख्या का उपयोग किया गया है।

उक्त सर्वे में अल्पपोषण (Undernourishment), बौनापन अर्थात 5 वर्षों से कम आयु के बच्चों की कम लंबाई रहना (Stunting), 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का वजन कम रहना (Wasting) एवं 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (Child Mortality) को भुखमरी आंकने के मानदंडों के रूप में उपयोग किया गया है। जबकि इंडियन काउन्सिल ओफ मेडिकल रिसर्च की उक्त मानदंडों के माध्यम से भुखमरी आंकने पर अपनी एक अलग राय है। उनके अनुसार भुखमरी आंकने में उक्त मानदंडों का सामान्यतः इससे सीधा सीधा सम्बंध नहीं के बराबर है। इस प्रकार भुखमरी को आंकने के मानदंड भी सही नहीं पाए जा रहे हैं। भारत के 5 वर्ष के बच्चों की कम लम्बाई रहने, कम वजन रहने एवं अकाल मृत्यु के पीछे केवल भुखमरी ही एक कारण नहीं हो सकता अन्य कारणों के चलते भी उक्त तीनों घटनाएं हो सकती हैं। फिर इन तीनों ही घटनाओं के पीछे भुखमरी को कैसे आंका जा सकता है। हां, अल्पपोषण के लिए जरूर भुखमरी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

पूरे विश्व में आज केवल भारतीय अर्थव्यवस्था ही चमकता हुआ सितारा के तौर पर मानी जा रही है और वर्ष 2022-23 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7 प्रतिशत की वृद्धि होने की भरपूर सम्भावना है, जो विश्व के किसी भी अन्य बड़े देश की तुलना में सबसे अधिक रहने वाली विकास दर होगी। परंतु, वैश्विक भुखमरी सूचकांक बनाने वाले लोगों ने इन सभी मुद्दों से आंख मूंदकर कार्य किया है और भारतीय नागरिकों की रैंकिंग को 107वें स्थान पर बताया है जब कि एथीयोपिया जैसे देश के नागरिकों से भी पीछे है। इसी कारण से वैश्विक संस्थान अपनी साख खोते जा रहे हैं। आर्थिक विकास के मामले में हमारे पड़ौसी देशों की भारत से किसी भी प्रकार की तुलना नहीं की जा सकती है। पाकिस्तान का सकल घरेलू उत्पाद 29,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर है, बांग्लादेश का 46,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर है, श्रीलंका का 8,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर है। वहीं भारत का सकल घरेलू उत्पाद 350,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी ऊपर है। परंतु फिर भी भुखमरी का सूचकांक बनाने वाले संस्थानों द्वारा भारत में भुखमरी की स्थिति को हमारे उक्त समस्त पड़ौसी देशों से भी बदतर हालत में बताया गया है। जबकि भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय भी तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2001-02 में प्रति व्यक्ति औसत आय 18,118 रुपए थी और यह वर्ष 2021-22 में बढ़कर 174,024 रुपए प्रति व्यक्ति हो गई है। गरीबों की औसत आय तेजी से बढ़ रही है, जिससे आय की असमानता भी कम हो रही है।

अभी हाल ही में यूनाइटेड नेशन्स ने भी एक प्रतिवेदन जारी किया है जिसमें बताया गया है कि भारत में वर्ष 2005-06 से वर्ष 2019-21 के बीच 41.5 करोड़ नागरिकों को गरीबी रेखा से ऊपर ले आया गया है। इस प्रकार भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या बहुत तेजी से कम हुई है। इसी प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 2015-16 में भारत में 36.6 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे थे वहीं यह संख्या वर्ष 2019-21 में ग्रामीण इलाकों में घटकर 21.2 प्रतिशत पर आ गई है। जबकि शहरी क्षेत्रों में यह संख्या उक्त अवधि में 9 प्रतिशत से घटकर 5.5 प्रतिशत पर नीचे आ गई है। यानी प्रति वर्ष लगभग 3 करोड़ नागरिकों को गरीबी से बाहर लाया जा रहा है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की संख्या के बारे में तो विश्व बैंक के एक अन्य पॉलिसी रिसर्च वर्किंग पेपर (शोध पत्र) में बताया गया है कि वर्ष 2011 में भारत में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे व्यक्तियों की संख्या 22.5 प्रतिशत थी जो वर्ष 2019 में घटकर 10.2 प्रतिशत पर नीचे आ गई है अर्थात गरीबों की संख्या में 12.3 प्रतिशत की गिरावट दृष्टिगोचर है। यूनाइटेड नेशन्स एवं विश्व बैंक के शोध पत्र में भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या में अंतर इसलिए है क्योंकि दोनों के द्वारा इसे आंकते समय अलग अलग मापदंडों का उपयोग किया गया है।

यूनाइटेड नेशन्स की तर्ज पर ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी हाल ही में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि वैश्विक मंदी के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक पटल पर एक चमकते हुए सितारे के रूप में दिखाई दे रही है। वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच आज पूरी दुनिया भारत की ओर आशाभरी नजरों से देख रही है। वही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी भारत द्वारा हाल ही के वर्षों में हासिल किए गए आर्थिक विकास की भरपूर सराहना की है।  आईएमएफ द्वारा जारी किए गए एक प्रतिवेदन के अनुसार, मौजूदा विकास दर के आधार पर भारत 2027 में जर्मनी एवं 2029 में जापान से आगे निकलकर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आईएमएफ के अनुसार, वर्ष 2027-28 में भारतीय अर्थव्यवस्था जापान के 5.17 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आगे बढ़कर 5.36 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की बन जाएगी।

लेखक वरिष्ठ समाजसेवी हैं

नोट : लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.

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