नई दिल्ली. जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने आज अपने भारत दौरे पर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की। इस दौरान दोनों समकक्ष नेताओं ने द्विपक्षीय रक्षा तथा सामरिक संबंध मजबूत करने की दिशा में व्यापक चर्चा की। चर्चा के दौरान दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच 43,000 करोड़ रुपये की लागत से छह विध्वंसक पारंपरिक पनडुब्बियों पर भी चर्चा हुई है। इसके तहत जर्मनी ने इंडियन नेवी को ये पनडुब्बियां सौंपेगा। इसके लिए जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स और भारत की मेजागन डॉक शिपबिल्डर्स मिलकर इस प्रोजेक्ट को पूरा करेंगे। जर्मनी और भारत के अधिकारियों ने बताया कि जर्मनी के रक्षा मंत्री पिस्टोरियस और भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बीच एक MOU साइन होगा।
हथियारों को लेकर रूस पर भारत ती निर्भरता जर्मनी को मंजूर नहीं
इंडोनेशिया से भारत आने से पहले पिस्टोरियस ने जर्मनी के सरकारी प्रसारणकर्ता डॉयचे वेले से कहा था कि भारत की लगातार रूसी हथियारों पर निर्भरता जर्मनी के हित में नहीं है। रूसी हथियारों पर भारत की निर्भरता के संबंध में एक सवाल पर पिस्टोरियस ने कहा, ‘इसे बदलना जर्मनी के हाथ में नहीं है।’उन्होंने कहा, ‘यह ऐसा मुद्दा है जिसे हमें अन्य साझेदारों के साथ संयुक्त रूप से हल करना है। लेकिन निश्चित रूप से भारत हथियारों या अन्य सामग्री की आपूर्ति के लिए रूस पर इतना निर्भर रहे, दीर्घकाल में इसमें हमारा कोई हित नहीं हो सकता।’ उन्होंने कहा, ‘मैं एक संकेत देना चाहता हूं कि हम अपने भागीदारों इंडोनेशिया, भारत जैसे विश्वसनीय भागीदारों का सहयोग करने को तैयार हैं।’
क्यों है भारत के लिए यह बड़ी डील
पनडुब्बी वाली डील पर जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने एक इंटरव्यू में कहा कि यह कॉन्ट्रैक्ट जर्मन इंडस्ट्री ही नहीं बल्कि भारत और भारत-जर्मनी की रणनीतिक साझेदारी के लिहाज से भी बड़ा होगा। बता दें कि दो साल पहले थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स ने भारत में संयुक्त रूप से पनडुब्बियों को बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। लेकिन, रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन की रूस से नजदीकी और उसकी बढ़ती कूटनीतिक और सैन्य मुखरता के चलते पश्चिम देशों खासकर जर्मनी भारत पर दांव लगा रहे हैं।
भारत ने इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए यहां से मेजागन डॉक शिपबिल्डर्स और लार्सन एंड टूर्बों को चुना है। जर्मनी की ओर से थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स के साथ मिलकर इंडियन नेवी के लिए डीजल अटैक वाली पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा। थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स की ओर से बनाई गई पनडुब्बियों का इस्तेमाल पहले भी इंडियन नेवी करता आया है। भारत को दक्षिण कोरिया की Daewoo और स्पेन की नवांतिया ग्रुप की तुलना में थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स को चुनना ज्यादा बेहतर लगा। जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज चाहते हैं कि जर्मन और यूरोपियन डिफेंस कंपनियां भारत को आधुनिक मिलिट्री उपकरण मुहैया कराने के अपने प्रयासों को तेज करने की जरूरत है। जर्मन चांसलर यह भी चाहते हैं कि भारत रूस पर रक्षा के क्षेत्र में अपनी निर्भरता को कम करे।
भारत को को क्यों है पनडुब्बियों की जरूरत
भारत को अपने पुराने बेड़े के कारण इस समय पनडुब्बियों की खास जरूरत है। भारत के द्वीपों पर पहरा बढ़ाने के लिए भारतीय नौसेना को कम से कम 24 सबमरीन की आवश्यकता है। लेकिन, मौजूदा समय में भारत के पास सिर्फ 16 सबमरीन है। बता दें कि इस बेड़े में 6 को छोड़ दें तो बाकी की उम्र 30 साल से ऊपर है और आने वाले समय में इसे सेवामुक्त किए जाने की पूरी संभावना है। भारत क्वाड का सदस्य है। ऐसे में भारत चाहता है कि ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका और बाती यूरोपीय देश पनडुब्बी बनाने के लिए तकनीक को शेयर करें।
साभार : नवभारत टाइम्स
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