वॉशिंगटन. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह कहकर यूक्रेन की नाटो की सदस्यता जल्द मिलने की उम्मीद पर पानी फेर दिया है कि वह (यूक्रेन) अभी तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि नाटो की सदस्यता के लिए जो प्रक्रिया है उसमें समय लगता है, यूक्रेन को उसे पूरा करना होगा, जबकि इस्तांबुल में तुर्किये के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने यूक्रेन के नाटो की सदस्यता के दावे का समर्थन करने के साथ ही रूस-यूक्रेन खाद्यान्न निर्यात समझौते को जारी रखने के लिए प्रयास करने की बात कही थी।
उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अगस्त में होने वाली तुर्किये यात्रा में वह इस मसले पर उनसे बात करेंगे, लेकिन रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय क्रेमलिन ने पुतिन के तुर्किये दौरे का कार्यक्रम निर्धारित होने से इनकार किया है। एर्दोगन ने 17 जुलाई को खत्म हो रहे खाद्यान्न निर्यात समझौते को लेकर यह बात यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ साझा प्रेस कान्फ्रेंस में कही है। उन्होंने कहा कि यह समझौता विश्व में खाद्यान्न की उपलब्धता और उसके मूल्यों में स्थिरता बनाए रखने के लिए जरूरी है।
क्या है जेलेंस्की की मांग?
जेलेंस्की यूक्रेन के नाटो में प्रवेश के लिए समर्थन जुटाने के वास्ते तुर्किये पहुंचे थे। इससे पहले उन्होंने बुल्गारिया, चेक गणराज्य और स्लोवाकिया का दौरा किया था। जेलेंस्की की मांग है कि यूक्रेन को नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) में शामिल करने को लेकर अगले सप्ताह लिथुआनिया में हो रही सदस्य देशों के नेताओं की समिट में स्पष्ट घोषणा हो। इस समिट में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन भी शामिल होंगे।
तुर्किये ने यूक्रेनी सैन्य कमांडर किए रिहा
यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की मौजूदगी में तुर्किये ने मारीपोल की लड़ाई में आत्मसमर्पण करने वाले पांच सैन्य कमांडरों को रिहा कर दिया और उन्हें यूक्रेन जाने की अनुमति दे दी। सभी पांच कमांडरों को लेकर जेलेंस्की विमान से कीव लौट आए हैं। रूस ने इन सैन्य कमांडरों की रिहाई पर कड़ा विरोध जताया है और इसे कैदियों की रिहाई के लिए तुर्किये की मध्यस्थता वाले त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन बताया है। समझौते के अनुसार, इन कमांडरों को तुर्किये में ही रहना था और युद्ध के दौरान इनकी यूक्रेन वापसी नहीं होनी थी। कमांडरों की रिहाई रूस को सूचना दिए बगैर की गई है। विदित हो कि मारीपोल के नजदीक अजोवस्टाल स्टील फैक्ट्री में मोर्चेबंदी कर इन कमांडरों के नेतृत्व में सैनिकों ने रूसी सैनिकों से कई महीने लड़ाई लड़ी थी।
साभार : दैनिक जागरण
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