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गांधीजी से जुड़े सर्व सेवा संघ के भवन पर चला बुलडोजर

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लखनऊ. महात्मा गांधी-विनोबा भावे और जेपी के विचारों की विरासत कहे जाने वाले वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ के 20 भवन बुलडोजर से ढहा दिए गए। संघ से जुड़े लोगों ने प्रशासन की कार्रवाई पर हंगामा करते हुए विरोध किया, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। विरोध कर रहे 10 लोगों को हिरासत में लेकर पुलिस लाइन भेज दिया गया।

राजघाट इलाके में सर्व सेवा संघ का परिसर है। जिलाधिकारी एस. राजलिंगम की कोर्ट ने हाल ही में संघ की जमीन पर उत्तर रेलवे का मालिकाना हक बताया था। इसके बाद 27 जून को सर्व सेवा संघ को जमीन खाली करने का नोटिस जारी किया गया। सर्व सेवा संघ से जुड़े लोग सुप्रीम कोर्ट तक गए, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली।

22 जुलाई को खाली कराया गया था सर्व सेवा संघ भवन और परिसर

बीते 22 जुलाई को सर्व सेवा संघ के भवनों को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में खाली कराया गया। सुबह सात बजे जिला प्रशासन और रेलवे के अधिकारी भारी पुलिस बल और आरपीएफ के के साथ बुलडोजर और ध्वस्तीकरण से संबंधित अन्य मशीनें लेकर सर्व सेवा संघ परिसर पहुंचे। इसके साथ ही परिसर के मुख्य गेट पर सर्व सेवा संघ से जुड़े लोगों ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया।

पुलिस ने पहले सभी को समझा कर शांत कराने की कोशिश की, लेकिन कोई सुनने को तैयार ही नहीं था। अंतत: पुलिस ने सर्व सेवा संघ के संयोजक रामधीरज और जागृति राही सहित 10 लोगों को बस में जबरन बैठा कर पुलिस लाइन भेज दिया। रेलवे के अफसरों ने बताया कि सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक 10 घंटे चली ध्वस्तीकरण की कार्रवाई में 20 भवन ढहाए गए हैं। संघ परिसर स्थित डाकखाना के भवन को फिलहाल ध्वस्त नहीं किया गया है। ध्वस्तीकरण और मलबा हटाने की कार्रवाई अभी आगे भी जारी रहेगी।

कार्रवाई देखने के लिए उमड़े तमाशबीन

बुलडोजर से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई को देखने के लिए इलाके के लोग भी सर्व सेवा संघ परिसर के इर्द-गिर्द इकट्ठा हुए थे। हालांकि पुलिस ने सभी को हिदायत देकर परिसर के आसपास से हटने को कहा तो सभी चले गए। वहीं, इलाके की चाय-पान की दुकानों पर इकट्ठा लोगों का कहना था कि बीते महीने जब परिसर खाली करा लिया गया था, तभी स्पष्ट हो गया था कि आज नहीं तो कल यहां बुलडोजर का गरजना तय ही है।

देश के पहले राष्ट्रपति की अगुवाई में हुई थी स्थापना

सर्व सेवा संघ की स्थापना मार्च 1948 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई थी। विनोबा भावे के मार्गदर्शन में करीब 62 वर्ष पहले नींव रखी गई। इसका उद्देश्य महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था। 1960 में इस जमीन पर गांधी विद्या संस्थान की स्थापना के प्रयास शुरू हुए। भवन का पहला हिस्सा 1961 में बना था। 1962 में जय प्रकाश नारायण यहां रहे थे।

साभार : अमर उजाला

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