गाजा. अमेरिका के चौतरफा घेरेबंदी के बाद ईरान के सुर बदल गए हैं। ईरान ने कहा है कि वह न तो हमास के इस युद्ध में शामिल होगा और न ही खाड़ी के मुस्लिम देशों में युद्ध को भड़काएगा। ईरान का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका ने इजरायल-हमास युद्ध को देखते हुए हजारों की तादाद में अपने सैनिकों को खाड़ी के सीक्रेट अड्डों पर तैनात किया है। अमेरिका ने इन देशों का नाम नहीं बताया है ताकि वहां की जनता न भड़क उठे लेकिन बताया जा रहा है कि इनमें से एक देश जॉर्डन है जो इजरायल का पड़ोसी देश है। अमेरिका को डर था कि ईरान और उसका सहयोगी संगठन लेबनान का हिज्बुल्ला इजरायल पर हमला कर सकते हैं।
बताया जा रहा है कि जार्डन के मुवाफाक साल्टी एयर बेस पर अमेरिका ने अपने एफ-15 फाइटर जेट की तैनाती की है। इसी विमान की मदद से हाल ही में अमेरिका ने ईरान समर्थित गुटों पर सीरिया के अंदर दो बार हवाई हमला बोला है। अमेरिका ने अपने सैनिकों पर ईरान समर्थित गुटों के हमले के बाद यह हवाई हमला किया है। द इंटरसेप्ट ने विशेषज्ञों के हवाले से बताया कि कई ऐसे कारक पैदा हो रहे हैं जिससे अमेरिका और ईरान सीधे युद्ध की ओर जा सकते हैं। इसमें सैनिकों की तैनाती शामिल है।
जॉर्डन से सीरिया पर हमला कर रहा अमेरिका
अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने ऐसे किसी भी अड्डे या सैन्य जमावड़े को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है। वह भी तब जब अमेरिकी सेना की बड़े पैमाने पर तैनाती से ईरान से तनाव बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह बहुत ही खतरनाक हालात है। अमेरिका के सरकारी रेकॉर्ड से पता चला है कि जार्डन का अमेरिकी एयरबेस ईरान के साथ बढ़ते तनाव के बीच एक प्रमुख ठिकाना बनकर उभरा है। सीरिया में अमेरिका जो भी कार्रवाई कर रहा है, वह जॉर्डन के इसी एयरबेस की मदद से कर रहा है।
वहीं जार्डन ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अमेरिकी सेना की तैनाती को कभी भी स्वीकार नहीं किया है। रोचक बात यह है कि इस एयरबेस का नाम जार्डन के उस फाइटर पायलट मुवाफाक साल्टी के नाम पर रखा गया है जिसने इजरायल के साथ जंग के दौरान अपनी जान गवां दी थी। जार्डन एक ऐसा देश है जहां 20 लाख फलस्तीनी शरणार्थी रहते हैं। इजरायल के गाजा पर हमले के बाद जार्डन में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे। ईरान की कोशिश थी कि गाजा के मुद्दे पर इजरायल को अलग थलग करके मुस्लिम देशों को साथ लाया जाए।
इजरायल पर मुस्लिम देशों में पड़ी फूट
ईरान की यह कोशिश नाकाम रही और उसे अमेरिकी सैन्य ताकत और कूटनीति के आगे हार माननी पड़ी है। आलम यह है कि मुस्लिमों के पवित्र देश सऊदी अरब में भी हमास समर्थकों को अरेस्ट किया जा रहा है। इजरायल को तेल नहीं देने के प्रस्ताव पर भी सऊदी अरब और यूएई ने अपना वीटो कर दिया था। इससे ईरान के प्रयासों को बड़ा झटका लगा था। एक और मुस्लिम देश बहरीन के क्राउन प्रिंस ने भी हमास की आलोचना की है। बहरीन भी अमेरिका का करीबी देश है।
साभार : नवभारत टाइम्स
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