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नासा का दावा, मनुष्य से पहले चांद पर पहुंचा कोई और

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वॉशिंगटन. पृथ्वी की तुलना में चंद्रमा एक उजाड़ स्थान है। बहते पानी, टेढ़े-मेढ़े बादलों और जीवन के संकेत से रहित। इसके बावजूद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के एक वैज्ञानिक का मानना है कि चंद्रमा में जितना दिखता है उससे कहीं अधिक मौजूद है। नासा के गोडार्ड स्पेसफ्लाइट सेंटर के ग्रह वैज्ञानिक प्रबल सक्सेना ने कहा कि चंद्रमा जैसे कठोर वातावरण में सूक्ष्मजीव का जीवन मौजूद हो सकता है। स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, प्रबल सक्सेना ने कहा कि कुछ वायुहीन आकाशीय पिंडों पर संरक्षित क्षेत्रों में ऐसे जीवन के लिए संभावित रूप से रहने योग्य जगहें हो सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही अभी चंद्रमा पर रोगाणु मौजूद नहीं हैं, लेकिन अगर मनुष्य इसकी सतह पर घूमना शुरू कर दें तो वे निश्चित रूप से मौजूद होंगे।

उन्होंने कहा कि चंद्रमा पर माइक्रो बैक्टीरिया अगर हैं तो हो सकता है कि वे पृथ्वी पर पैदा हुए हों और किसी मून लैंडर पर सवार होकर वहां पहुंचे हों। हालांकि, यह अभी तक कल्पना ही है। सक्सेना ने कहा कि वह सौर मंडल के बाहर जीवन मौजूद होने के सबूतों का अध्ययन कर रहे हैं। हाल में ही वह एक ऐसी टीम के साथ काम कर रहे हैं, जिसकी नजर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर आज तक कोई भी पहुंच नहीं पाया है। यहां तक कि अभी तक किसी भी देश को इस इलाके में अपना अंतरिक्ष यान उतारने में भी सफलता नहीं मिली है।

चंद्रमा पर बैक्टीरिया की मौजूदगी का इसलिए है शक

हाल के वर्षों में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है क्योंकि नासा को 2025 में अपने आर्टेमिस III अंतरिक्ष यात्रियों को यहीं उतारने की उम्मीद है। नासा ने 13 संभावित लैंडिंग स्थलों की पहचान की है। उन्होंने कहा कि चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर आज तक किसी भी मनुष्य ने कदम नहीं रखा है। लेकिन, हम मून मिनरलॉजी मैपर से जानते हैं कि इसमें गड्ढों के अंदर बर्फ है, जिसे अंतरिक्ष यात्री रॉकेट ईंधन के लिए निकाल सकते हैं। इन गड्ढों के कुछ क्षेत्र स्थायी तौर पर अंधेरे में रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप, सूर्य का हानिकारक विकिरण इन चंद्र क्षेत्रों तक कभी नहीं पहुंचता है, और यह माइक्रो बैटक्टीरिया के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल हो सकता है।

नासा को चंद्रमा पर मिले जीवन के संकेत

इनसाइड आउटर स्पेस के लियोनार्ड डेविड के अनुसार महत्वपूर्ण बात यह है कि चंद्रमा की सतह के कुछ हिस्सों पर माइक्रो बैक्टीरिया को लेकर किए गए हालिया शोध से कई सूक्ष्मजीवों की मौजूदगी को लेकर सकारात्मक संकेत मिले हैं। उदाहरण के लिए, शोधकर्ताओं ने पाया कि डाइनोकोकस रेडियोड्यूरन्स नामक जीवाणु अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के बाहर एक वर्ष तक जीवित रहा। टार्डिग्रेड्स अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के बाहर भी अंतरिक्ष में चरम स्थितियों के संपर्क में आकर जीवित बचे हैं। वहीं, प्रबल सक्सेना ने कहा कि हम वर्तमान में यह समझने पर काम कर रहे हैं कि कौन से विशिष्ट जीव ऐसे क्षेत्रों में जीवित रहने के लिए सबसे उपयुक्त हो सकते हैं।

साभार : नवभारत टाइम्स

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