शनिवार, नवंबर 16 2024 | 06:06:57 PM
Breaking News
Home / राष्ट्रीय / भारत का आर्थिक विकास एवं अतिगरीबी में कमी

भारत का आर्थिक विकास एवं अतिगरीबी में कमी

Follow us on:

– प्रहलाद सबनानी

विश्व के विभिन्न देशों, विशेष रूप से विकसित देशों, में अतिगरीबी को कम करने के लिए लम्बे आर्थिक विकास के चक्र की आवश्यकता रही है। यह सही है कि इन देशों में लम्बे समय तक तेज गति से हुए आर्थिक विकास एवं पूंजी निर्माण के चलते ही अतिगरीबी को कम किया जा सका है, परंतु, इन देशों में अतिगरीबी का उन्मूलन तो शायद अभी भी नहीं हो पाया है। विकासशील देशों सहित विकसित देशों, विशेष रूप से अमेरिका में तो आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की अच्छी खासी संख्या दिखाई देती है। जबकि अमेरिका में तो विकास का चक्र बहुत लंबे समय तक लगभग लगातार चलता रहा है। भारत में पिछले 10 वर्षों में अतिगरीबी को कम करने सम्बंधी क्षेत्र में अतुलनीय कार्य हुआ है एवं अतिगरीबी में जीवन यापन कर रहे नागरिकों की संख्या में भारी कमी दृष्टिगोचर हुई है। भारतीय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति की सदस्य सुश्री शमिका रवि द्वारा हाल ही में सम्पन्न किए गए एक रिसर्च पेपर में आंकड़ों के साथ कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं। इस रिसर्च पेपर में यह बताया गया है कि किस प्रकार भारत में तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास का लाभ देश के गरीबतम नागरिकों तक पहुंच रहा है।

वैश्विक स्तर पर गरीबी को दूर करने सम्बंधी कई दीर्घकालीन लक्ष्यों को विभिन्न देशों के लिए निर्धारित किया गया है। इन लक्ष्यों में इस धरा से अतिगरीबी को समाप्त करने का लक्ष्य भी शामिल हैं। कोविड महामारी के खंडकाल एवं इसके बाद के खंडकाल में पूरे विश्व में केवल भारत ने ही अतिगरीबी को कम करने में अतुलनीय सफलता अर्जित की है। अन्यथा, कई विकसित देश तक आज भी कोविड महामारी के समय के विपरीत आर्थिक परिणामों से उबर नहीं पाए हैं। भारत ने अन्य कई अमीर देशों की तुलना में भी अच्छी सफलताएं अर्जित की हैं। दक्षिणी अफ्रीका, जो भारत से तीन गुणा अधिक अमीर है और ब्राजील, जो भारत से 2.5 गुणा अधिक अमीर है, की तुलना में भारत में अतिगरीबी तेज गति से कम हुई है। इसलिए यहां प्रशन्न यह नहीं है कि आपके पास कितने संसाधन उपलब्ध हैं बल्कि प्रशन्न यह है कि आप इन संसाधनों का कितनी सक्षमता से उपयोग कर पा रहे हैं। भारत अपने पास उपलब्ध विभिन्न संसाधनों का दक्षता से उपयोग करने में सफल रहा है, इसी के चलते आज भारत में निरपेक्ष गरीबी, कुल जनसंख्या के, 3 प्रतिशत से भी कम रह गई है। इस प्रकार, पूरे विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होने के बावजूद भारत आज इस मामले में विकसित देशों के आसपास पहुंच गया है। वर्तमान काल में यह पहली बार हुआ है कि भारत में निरपेक्ष गरीबी,  3 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है। पिछले 75 वर्षों से भारत में गरीबी कम करने हेतु लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं परंतु इस क्षेत्र में सफलता अब जाकर मिली है।

दीर्घकालीन लक्ष्यों में माताओं की मृत्यु दर एवं बच्चों की मृत्यु दर भी शामिल है। बच्चे को जन्म देते समय माताओं की मृत्यु की संख्या में भी भारत में भारी कमी दृष्टिगोचर हुई है। जबकि, विश्व के अन्य कई देशों में अभी भी यह संख्या भारत से कहीं अधिक है। हाल ही के समय में भारत में विश्व के अन्य देशों की तुलना में इस क्षेत्र में तेज गति से कमी हो रही है। इसी प्रकार, भारत में बच्चों की मृत्यु दर में भी कमी दृष्टिगोचर है। माताओं एवं बच्चों की मृत्यु दर में कमी देश के प्रत्येक राज्य में दिखाई दे रही है। भारत के बारे में यह धारणा बनाए जाने का प्रयास किया जाता है कि भारत एक असहिष्णु देश हैं। जबकि इस सम्बंध में हाल ही में जारी किए गए आंकडें कुछ और ही कहानी बता रहे हैं। हाल ही के समय में भारत में दंगों की संख्या में भारी कमी दिखाई दी है। भारत में पिछले 50 वर्षों से जहां प्रति वर्ष लगभग 100,000 दंगे होते रहे हैं, वह अब घटकर 40,000 के नीचे आ गए है।  भारत आज पूरे विश्व में ही सबसे अधिक शांतिप्रिय देश माना जा रहा है।

भारत में महिलाओं के विरुद्ध अत्याचारों, विशेष रूप से रैप के मामलों में, भी भारी कमी दृष्टिगोचर हुई है। यह कमी भारत के समस्त राज्यों में दिखाई दी है। अपवाद स्वरूप केवल राजस्थान, झारखंड एवं हरियाणा ही रहे हैं। महिलाओं के विरुद्ध अत्याचारों में हुई इस कमी के पीछे सबसे बड़ा कारण भारत में शौचालयों के निर्माण को बताया जा रहा है। क्योंकि पहिले महिलाओं को शौच के लिए बाहरी इलाकों में जाना पड़ता था जिससे महिलाओं पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती थी। परंतु, अब स्वच्छ भारत अभियान के बाद महिलाओं के घर के अंदर रहने के कारण इस प्रकार के अत्याचारों में भारी कमी दिखाई दी है। हाल ही के समय में महिलाओं पर अत्याचारों में 22 प्रतिशत की कमी आई है तो महिलाओं पर रैप के मामलों में 14 प्रतिशत की कमी आई है। भारत में बिजली की उपलब्धता में भी भारी वृद्धि दर्ज हुई है। कुछ वर्ष पूर्व तक सबसे गरीबतम परिवारों में से केवल आधी आबादी के पास ही बिजली की उपलब्धता थी जबकि आज उक्त समूह के 90 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास बिजली की सुविधा उपलब्ध हो गई है। भारत में सबसे अधिक गरीबतम परिवारों के बीच प्रति परिवार प्रतिमाह खर्च करने की क्षमता में भी भारी वृद्धि दर्ज हुई है। अनुसूचित जाति के परिवारों की प्रतिमाह खर्च करने की क्षमता में 178 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। प्रत्येक गरीब परिवार का प्रतिमाह खर्च तेजी से बढ़ रहा है। इसे ही तो समावेशी विकास की संज्ञा दी जा सकती है।

उक्त रिसर्च पेपर में यह भी दर्शाया गया है कि शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे सबसे निचले तबके के 20 प्रतिशत परिवारों के पास आज कितने दोपहिया वाहन उपलब्ध है। 10 वर्ष पूर्व तक सबसे निचले तबके के केवल 6 प्रतिशत परिवारों के पास ही दोपहिया वाहन उपलब्ध थे जबकि आज 40 प्रतिशत परिवारों के पास दो पहिया वाहन उपलब्ध हैं। इन आंकड़ों के माध्यम से इस वर्ग के परिवारों की आय में हो रही वृद्धि को ही दर्शाया गया है। यह वृद्धि ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही इलाकों में हुई है, यह सबसे अधिक सुखद परिणाम है। इस प्रकार आज भारत में ग्रामीण इलाकों ने भी विकास की रफ्तार पकड़ ली है। अब तो ग्रामीण इलाकों में भी ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था करने का समय आ गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी ढांचागत विकास को और अधिक तेज करने की आज महती आवश्यकता महसूस की जा रही है। भारत के गांव अब पुराने गांव नहीं रह गए हैं बल्कि नए परिवेश में ग्रामीण इलाकों में भी समस्त प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध होने लगी हैं। आज कई उपभोक्ता वस्तुओं का व्यापार करने वाली कम्पनियों के व्यापार में वृद्धि शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक हो रही है।

भारत के शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में निवासरत परिवारों के बीच आज खाने पीने का स्वरूप भी बदल रहा है। पहिले फलों को विलासिता की वस्तु के रूप में पेश किया जाता था। परंतु आज फलों एवं सब्जियों के उपयोग को आवश्यकता के तौर पर देखा जा रहा है एवं इनके उपयोग में भारी वृद्धि दिखाई दे रही है। देश में सबसे गरीब 10 प्रतिशत परिवारों में 10 वर्ष पूर्व तक केवल 31 प्रतिशत परिवार ही ताजा फलों का उपयोग कर पाते थे जबकि आज इस समूह के 70 प्रतिशत परिवारों द्वारा ताजा फलों का उपयोग किया जा रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक छतीसगढ़ राज्य में बहुत कम परिवार ही दूध का उपयोग कर पा रहे थे जबकि आज 55 प्रतिशत से अधिक परिवारों में दूध का उपयोग हो रहा है। आज भारत में मौसमी ताजा फलों की उपलब्धता भी बारहों महीने रहने लगी है क्योंकि अब रेफ्रीजरेटर एवं भंडारण की उपलब्धता भी बढ़ी है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना का पर्याप्त विकास हुआ है। उत्पादों की आपूर्ति चैन की सुविधाओं में विस्तार हुआ है, यातायात की सुविधाएं विकसित हुई हैं एवं ग्रामीण इलाकों तक अच्छे मार्गों का निर्माण हुआ है, जिसके चलते आज फलों एवं सब्जियों का उत्पादन बढ़ाने के साथ साथ इनकी खपत भी देश में बढ़ी है। विभिन्न दीर्घकालीन लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर भारत के तेजी से आगे बढ़ने पर हमें गर्व होना चाहिए परंतु दुर्भाग्य है कि हम इन उपलब्धियों पर आपस में चर्चा भी नहीं करते हैं।

लेखक आर्थिक विशेषज्ञ हैं.

नोट : लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार से सहमत होना आवश्यक नहीं है.

मित्रों,
मातृभूमि समाचार का उद्देश्य मीडिया जगत का ऐसा उपकरण बनाना है, जिसके माध्यम से हम व्यवसायिक मीडिया जगत और पत्रकारिता के सिद्धांतों में समन्वय स्थापित कर सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमें आपका सहयोग चाहिए है। कृपया इस हेतु हमें दान देकर सहयोग प्रदान करने की कृपा करें। हमें दान करने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें -- Click Here


* 1 माह के लिए Rs 1000.00 / 1 वर्ष के लिए Rs 10,000.00

Contact us

Check Also

कोई भी समान नागरिक संहिता को लागू होने से नहीं रोक सकता : अमित शाह

नई दिल्ली. महाराष्ट्र और झारखंड में विधान सभा इलेक्शन के साथ कई राज्यों में उप …