लखनऊ. अयोध्या के राम मंदिर में बुधवार को रामनवमी के मौके पर रामलला की प्रतिमा को सूर्य-तिलक लगाया गया. यह सूर्य-तिलक सूर्य से आने वाली किरणों का था. जिसमें किरणें परावर्तित करके भगवान राम की प्रतिमा तक पहुंचाई गईं. भगवान राम को सूर्यवंशियों का वंशज माना जाता है, ऐसे में इस सूर्य तिलक का खास महत्व रहा.
आईआईटी-रुड़की के वैज्ञानिकों ने अयोध्या के रामलला मंदिर में सूर्य तिलक यंत्र को डिजाइन किया. उन्होंने रामनवमी पर राम लला के माथे पर सूर्य की किरणों को सटीक रूप से लगाने के लिए हाई क्वालिटी के लेंस वाले उपकरण का इस्तेमाल किया. हालांकि, राम मंदिर से पहले भी देश के कई मंदिरों में इस तकनीकी का इस्तेमाल किया गया है.
सुरियानार कोविल मंदिर (तमिलनाडु): सूर्य को समर्पित 11-12वीं शताब्दी का मंदिर इस तरह से डिजाइन किया गया है कि साल के कुछ समय के दौरान सूरज की रोशनी मंदिर में विशिष्ट बिंदुओं के साथ जुड़ती है और सुरियानार (सूर्य) पर सूर्य की रोशनी पड़ती है .
नानारायणस्वामी मंदिर (आंध्र प्रदेश): नागालपुरम जिले में स्थित नानारायणस्वामी मंदिर में पांच दिन की सूर्य पूजा महोत्सव का आयोजन किया जाता है, इस दौरान सूर्य की किरणें मंदिर में पड़ती हैं और प्रत्येक दिन चरणों के माध्यम से परिवर्तित होती हैं. पाँच दिनों में, सूर्य की किरणें पैरों से लेकर गर्भगृह में विराजमान देवता की नाभि तक जाती हैं, जो भगवान विष्णु का ‘मत्स्य अवतार’ (मछली) है.
कोबा जैन मंदिर (गुजरात): अहमदाबाद के कोबा जैन मंदिर में प्रतिवर्ष सूर्य अभिषेक होता है, जब दोपहर 2.07 बजे तीन मिनट के लिए सूर्य की किरणें सीधे भगवान महावीरस्वामी की संगमरमर की मूर्ति के माथे पर पड़ती हैं. कोबा के वार्षिक कार्यक्रम में दुनिया भर से लाखों जैन लोग शामिल होते हैं.
उनाव बालाजी सूर्य मंदिर (मध्य प्रदेश): मध्य प्रदेश के दतिया में स्थित इस मंदिर में सूर्य देव को समर्पित एक उत्सव का आयोजन किया जाता है. जहां तड़के समय सूर्य की पहली किरणें सीधे मंदिर के गर्भगृह में स्थित मूर्ति पर पड़ती हैं.
मोढेरा सूर्य मंदिर (गुजरात): 11वीं सदी के मोढेरा सूर्य मंदिर में एक ऐसी ही अनोखी घटना देखने को मिलती है जहां साल में दो बार सूर्य की किरणें मंदिर में प्रवेश करती हैं और सूर्य भगवान की मूर्ति पर पड़ती हैं.
कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा): 13वीं सदी का यह मंदिर, जो सूर्य देवता को समर्पित है, खासतौर पर सूर्योदय के समय सूर्य की रोशनी से मंदिर को स्नान कराने के लिए जाना जाता है. इसकी डिज़ाइन ऐसी है कि सूर्य की पहली किरणें मंदिर के मुख्य द्वार को छूएं, फिर इसके विभिन्न द्वारों से छनकर अंदर ‘गर्भगृह’ पर प्रकाश डालें.
रणकपुर जैन मंदिर (राजस्थान): अरावली में 15वीं सदी का रणकपुर मंदिर सफेद संगमरमर से बना है, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि सूर्य की रोशनी इसके आंतरिक गर्भगृह में प्रवेश कर सके.
गवि गंगाधरेश्वर मंदिर (कर्नाटक): बेंगलुरु के पास ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. जहां हर मकर संक्रांति पर, सूर्य की किरणें नंदी की प्रतिमा को रोशन करती हैं, फिर शिवलिंग के चरणों तक पहुँचती हैं, और अंत में पूरी प्रतिमा को ढक लेती हैं.
साभार : एबीपी न्यूज
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