तिरुवनंतपुरम. केरल के मलप्पुरम में निपाह वायरस से पीड़ित 14 साल के लड़के की रविवार को मौत हो गई। राज्य की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बताया कि पीड़ित लड़के को सुबह 10.50 बजे दिल का दौरा पड़ा। इसके बाद उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर भी रखा गया, लेकिन सुबह 11.30 बजे उसकी मौत हो गई। वीना ने बताया कि संक्रमित लड़के को ऑस्ट्रेलिया से मिली मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दी गई थी। प्रोटोकॉल के मुताबिक संक्रमित होने के 5 दिन के अंदर इसे दिया जाता है। इस मामले में संक्रमित लड़के को एंटीबॉडी देने में देर हो गई थी।
वीना ने यह भी कहा कि लड़के का अंतिम संस्कार इंटरनेशनल प्रोटोकॉल के मुताबिक किया जाएगा। इसके लिए लड़के के परिवार और माता-पिता से बात की जा रही है। वहीं, उसके संपर्क में आए 3 रिश्तेदारों को निगरानी में रखा गया है। 2018 के बाद से 5वीं बार केरल में निपाह का संक्रमण फैला है। इसके बाद 2019, 2021 और 2023 में भी इसके केस मिले थे। इसके लिए अभी तक कोई टीका नहीं बना है। निपाह संक्रमित चमगादड़ों, सूअरों या लोगों के शरीर से निकले लिक्विड के संपर्क में आने से फैलता है। निपाह से संक्रमित लोगों में से 75% मामलों में संक्रमित व्यक्ति की मौत हो जाती है।
3 रिश्तेदार अब भी निगरानी में
राज्य मंत्री के मुताबिक जिस लड़के की मौत हुई है, उसके पिता और चाचा समेत तीन करीबी रिश्तेदार कोझिकोड के मेडिकल कॉलेज अस्पताल की निगरानी में हैं। जबकि बाकी चार परिचितों को मलप्पुरम के मंजेरी मेडिकल कॉलेज में रखा गया है। इनमें से एक ICU में है। हाई रिस्क वाले मरीजों में किसी में भी निपाह के लक्षण नहीं हैं। इधर, स्वास्थ्य विभाग ने मंजेरी मेडिकल कॉलेज में 30 आइसोलेशन रूम और 6 बेड का ICU बनाया है।
10 दिन पहले बुखार आने पर इलाज कराने गया था
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह लड़का 10 जुलाई को स्कूल से लौटा तो उसे बुखार और थकान की शिकायत हुई। उसे पहले 12 जुलाई को पांडिक्कड़ के एक प्राइवेट क्लिनिक में, 13 जुलाई को एक दूसरे प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया था। हालत में सुधार होने पर उसे 15 जुलाई को वहां भर्ती करा दिया गया। इंसेफेलाइटिस के लक्षण दिखने के बाद उसी दिन पास के पेरिंथलमन्ना के प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया, जहां से उसे 20 जुलाई को कोझिकोड और फिर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में लाया गया।
केरल सरकार ने गाइडलाइन बनाई
राज्य सरकार ने हाल ही में निपाह वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए गाइडलाइन तैयार की है। इसके तहत लोगों से चमगादड़ों के घरों को नहीं हटाने का आग्रह किया, क्योंकि उन्हें परेशान करने से वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। साथ ही उन फलों को भी खाने से मना किया है, जिसे पक्षी पहले ही काट चुके हों। ऐसे फल चमगादड़ों से दूषित भी हो सकते हैं। लड़के का सैंपल पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) में जांच के लिए भेजा गया था। अधिकारियों ने कोझिकोड के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में विजिटर्स की एंट्री बैन कर दी है। हॉस्पिटल में आने वाले सभी लोगों के लिए फेस मास्क पहनना जरूरी कर दिया है। मरीज के साथ भी केवल एक व्यक्ति को ही जाने की परमिशन होगी।
निपाह का पहला मामला 25 साल पहले मलेशिया में मिला था
WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मुताबिक, 1998 में मलेशिया के सुंगई निपाह गांव में पहली बार निपाह वायरस का पता चला था। इसी गांव के नाम पर ही इसका नाम निपाह पड़ा। तब सुअर पालने वाले किसान इस वायरस से संक्रमित मिले थे। मलेशिया मामले की रिपोर्ट के मुताबिक, पालतू जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली, बकरी, घोड़े से भी इंफेक्शन फैलने के मामले सामने आए थे।
मलेशिया में निपाह सामने आने के बाद उसी साल इस वायरस का पता सिंगापुर में भी चला था। इसके बाद 2001 में बांग्लादेश में भी इस वायरस से संक्रमित मरीज मिले। कुछ वक्त बाद बांग्लादेश से जुड़ी भारतीय सीमा के आसपास भी निपाह वायरस के मरीज मिलने लगे। मलेशिया, सिंगापुर से होते हुए इस वायरस ने भारत में भी अपना असर दिखाना शुरू किया। यह वायरस इंसानों के न्यूरोलॉजिकल सिस्टम पर सीधे वार करता है इसलिए यह घातक है।
साभार : दैनिक भास्कर
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