नई दिल्ली. इंडियन नेवी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी समुद्री शक्ति को मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठाया है. 9 अक्टूबर 2024 को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने भारतीय नौसेना को दो परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियों के डिजाइन और विकास की मंजूरी दे दी है. यह प्रोजेक्ट-77 के तहत होगा और इसके लिए शुरुआती बजट करीब 40,000 करोड़ रुपये रखा गया है. लेकिन यह शुरुआत मात्र है, क्योंकि नौसेना का लक्ष्य 2050 तक कुल 12 Nuclear-Powered Attack Submarine(SSN) तैयार करने का है.
स्वदेशी तकनीक से बनेगी ताकत
यह प्रोग्राम पहले प्रोजेक्ट-75 अल्फा के नाम से जाना जाता था. P-77 के तहत बनने वाली SSN, भारत की पहली स्वदेशी परमाणु-संचालित हमला पनडुब्बियां होंगी. इनका निर्माण भारत की अहरंत क्लास की बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों (SSBN) से अलग होगा, इन SSN में 190 मेगावाट का प्रेसराइज्ड लाइट वॉटर रिएक्टर लगेगा, जिसे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) ने विकसित किया है. इन पनडुब्बियों की सबसे बड़ी ताकत उनकी न्यूक्लियर-इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन (NEP) प्रणाली होगी, जिससे ये 25 नॉट की रफ्तार पर बेहद खामोशी से चल सकेंगी. पारंपरिक मोड पर ये 30 नॉट से भी ज्यादा की स्पीड पकड़ सकती हैं. यह क्षमता इन्हें अमेरिकी वर्जीनिया-क्लास SSN के बराबर और चीन की टाइप-093B पनडुब्बियों से आगे खड़ा करती है.
हथियार और विशेषताएं
7000 से 10000 टन वजनी ये पनडुब्बियां समुद्री युद्ध, दुश्मन की पनडुब्बियों पर हमला और जमीन पर वार करने में सक्षम होंगी. इनमें ब्राह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, हाइपरसोनिक मिसाइलें जो DRDO द्वारा विकसित होंगी और हैवीवेट टॉरपीडो लगेंगी. जो इसकी ताकत को बढ़ाने का काम करेगा. इनकी खासियत यह होगी कि ये समुद्र के भीतर महीनों तक लगातार गश्त कर पाएंगी, क्योंकि इनकी सीमा केवल क्रू के बचे हुए राशन तक सीमित होगी.
निर्माण की योजना
पहली दो SSN के 2036-37 और 2038-39 तक नौसेना में शामिल होने की उम्मीद है. इसके बाद नौसेना इन्हें बैचों में (हर बार 2 SSN) बनाएगी और हर नए बैच में बेहतर तकनीक जोड़ी जाएगी. इसके निर्माण के लिए मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) को चुना जा सकता है। वहीं, L&T गुजरात के हजीरा प्लांट में इनके हुल बनाएगी और अंतिम असेंबली विशाखापट्टनम के शिप बिल्डिंग सेंटर (SBC) में होगी.
पूरी तरह स्वदेशी ताकत
यह प्रोग्राम 95% स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगा. इसमें केवल सीमित विदेशी सहयोग रूस और फ्रांस से लिया जाएगा. लेकिन रिएक्टर, हुल और हथियार प्रणाली पूरी तरह भारतीय होंगी. BARC, DRDO, BHEL और L&T जैसी संस्थाएं इसमें अहम भूमिका निभाएंगी.
साभार : जी न्यूज
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