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मनरेगा अब पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी के नाम से जानी जाएगी, मिलेगा साल में 125 दिन काम

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कोलकाता. कैबिनेट ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005 में अहम बदलाव करने का फैसला किया है. शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में मनरेगा का नाम बदलने और इसके तहत एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 125 दिन की रोज़गार गारंटी सुनिश्चित करने का फैसला किया गया है. आइए बताते हैं कि योजना के लिए साल-दर-साल बढ़ते बजट के बीच इस फैसले का क्या फायदा होगा.

मनरेगा नहीं, पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी

सरकार ने मनरेगा का नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी करने को मंजूरी दी है. साथ ही साल में 125 दिन रोजगार देने का निर्णय लिया है, जो अभी 100 दिन है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरतमंद वर्करों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी. अब वह पहले से ज्यादा दिन काम कर सकेंगे. इसके लिए मौजूदा कानून में संशोधन का बिल लाया जाएगा. इसे संसद के शीत सत्र में पेश किया जा सकता है.

रोजगार बढ़ाने की संसद में कई बार उठी मांग

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) एक मांग आधारित मजदूरी रोजगार योजना है. ज़ाहिर है, नए बिल को संसद की मंज़ूरी मिलने के बाद इससे ग्रामीण इलाकों में रोज़गार के अवसर और बेहतर होंगे. मनरेगा के तहत रोज़गार की गारंटी बढ़ाने और न्यूनतम मजदूरी दर में बढ़ोतरी की मांग संसद में कई बार उठी है. इसी साल बजट सत्र के दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के लिए सरकारी फंड बढ़ाने और ग्रामीण मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी दर 400 रुपये करने की मांग की थी.

सोनिया गांधी ने भी उठाया था मुद्दा

कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने राज्यसभा में शून्य काल के दौरान सरकार के सामने ये मांग रखते हुए कहा था, “ग्रामीण इलाकों में मजदूरी के संकट को देखते हुए मनरेगा के तहत ग्रामीण मजदूरों को साल में 100 दिन की जगह 150 दिन का रोजगार मिलना चाहिए. मजदूरों को वेतन भुगतान में देरी हो रही है, उन्हें समय पर मजदूरी मिले. इसके अलावा आधार कार्ड पर आधारित भुगतान व्यवस्था की अनिवार्यता भी खत्म की जाए”.

मोदी सरकार में लगातार बढ़ रहा आवंटन

ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 के बाद मोदी सरकार के 11 साल के कार्यकाल के दौरान मनरेगा के लिए जारी फंड्स में लगातार बढ़ोतरी की गयी है. वित्त वर्ष 2013-14 में मनरेगा के लिए बजट आवंटन 33,000 करोड़ रुपये था. ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक, “वित्त वर्ष 2025-26 में मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो योजना की शुरुआत के बाद से अब तक का सबसे अधिक आवंटन है.

वित्त वर्ष 2024-25 में 290.60 करोड़ मानव दिवस सृजित किए गए, मतलब कितने दिन काम कराया गया. सरकारी आकड़ों के मुताबिक, इस योजना में 440.7 लाख महिलाओं की भागीदारी रही, जो 58.15% है. दरअसल पिछले पांच वित्तीय वर्षों में मनरेगा के अंतर्गत महिलाओं की भागीदारी लगातार 50% से ऊपर रही है. इसमें लगातार वृद्धि देखी गई है. वित्त वर्ष 2013-14 में यह 48% थी, जो बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 58.15% हो गई.

फंड जारी करने में देरी का आरोप

हालांकि मनरेगा के तहत फंड जारी करने में देरी का सवाल भी उठता रहा है और इस पर राजनीति भी होती है. इसी हफ्ते तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने पश्चिम बंगाल को मनरेगा फंड जारी करने में हो रही देरी को लेकर संसद परिसर में कई बार प्रदर्शन किया. तृणमूल सांसदों ने लोक सभा और राज्य सभा में स्थगन प्रस्ताव के लिए नोटिस देकर दोनों सदनों की कार्यवाही रोककर इस मुद्दे पर चर्चा की भी मांग कई बार की.

TMC का आरोप, बंगाल के 2 लाख करोड़ रोके

एनडीटीवी से बातचीत में तृणमूल कांग्रेस के सांसद कीर्ति आजाद ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल सरकार को केंद्र सरकार ने अलग-अलग केंद्रीय योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए जरूरी करीब दो लाख करोड़ रुपये की राशि जारी नहीं की है. इसमें मनरेगा की 43,000 करोड़ रुपये शामिल हैं. इस पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी फैसला दे चुके हैं, इसके बावजूद केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल के लोगों के हक़ का पैसा रिलीज़ नहीं कर रही है.

केंद्र का जवाब, योजना में हेराफेरी हुई

उधर, केंद्र सरकार का दावा है कि पश्चिम बंगाल सरकार मनरेगा के प्रभावी क्रियान्वयन में बुरी तरह विफल रही है. 2019 से 2022 के बीच केंद्र की टीमों ने पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में जांच की, जिसमें मनरेगा के कार्यों में भारी अनियमितताएं पाई गईं. इनमें कार्यस्थल पर वास्तविक कार्य न होना, नियम विरुद्ध काम करना, धन की हेराफेरी जैसी गंभीर बातें उजागर हुईं. इसी के चलते ग्रामीण विकास मंत्रालय को मनरेगा अधिनियम की धारा 27 के तहत 9 मार्च 2022 से पश्चिम बंगाल का फंड रोकना पड़ा है.

ग्रामीण विकास मंत्रालय का ये भी कहना है कि बार-बार अनुरोध के बावजूद पश्चिम बंगाल सरकार ने योजना के अमल में सुधार या पारदर्शिता के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं. पश्चिम बंगाल सरकार विश्वास, जिम्मेदारी और पारदर्शिता पर पूरी तरह विफल साबित हुई है.

साभार : एनडीटीवी

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