नई दिल्ली. राउज एवेन्यू स्थित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी अश्वनी पंवार की अदालत ने जंतर मंतर पर हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिसकर्मियों के साथ धक्का-मुक्की, आदेश की अवहेलना और सार्वजनिक मार्ग बाधित करने के मामले में कांग्रेस नेता अलका लांबा के खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं।
कोर्ट ने उनके द्वारा दायर डिस्चार्ज (कार्यवाही समाप्त करने) की अर्जी भी खारिज कर दी। अदालत ने पुलिस के वीडियो साक्ष्यों, शिकायतकर्ता और अन्य पुलिसकर्मियों के बयानों का संज्ञान लेते हुए कहा कि रिकाॅर्ड पर मौजूद सामग्री प्रथमदृष्टया संदेह पैदा करती है।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि वीडियो में अलका लांबा को बैरिकेड्स कूदते, पुलिसकर्मियों को धक्का देते और प्रदर्शनकारियों को भी बैरिकेड्स पार करने के लिए संकेत करते देखा जा सकता है।
अदालत ने माना कि इस स्तर पर साक्ष्यों की गहराई से जांच नहीं की जा सकती और अभियोजन को अपना मामला साबित करने का अवसर मिलना चाहिए। मामला 29 जुलाई 2024 के जंतर मंतर प्रदर्शन से जुड़ा है, जब महिला आरक्षण के समर्थन में कांग्रेस महिला इकाई द्वारा प्रदर्शन किया गया था।
आरोप है कि पुलिस द्वारा बीएनएसएस की धारा 163 के तहत जारी निषेधाज्ञा की जानकारी देने और समझाने के बावजूद अलका लांबा और अन्य प्रदर्शनकारी नेता घेराव के लिए आगे बढ़े, बैरिकेड्स पार किए, पुलिसकर्मियों को धक्का दिया और सार्वजनिक मार्ग अवरुद्ध किया।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने कहा कि लांबा ने प्रदर्शनकारियों को उकसाया, पुलिस की ड्यूटी में बाधा डाली और सड़क पर लेटकर रास्ता जाम कराया। वहीं, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है, वीडियो में धक्का-मुक्की नहीं दिखती और किसी पुलिसकर्मी की चोट का मेडिकल रिकाॅर्ड भी नहीं है।
साभार : दैनिक जागरण
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