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अमेरिका के वेनेजुएला के तट से एक और तेल टैंकर जब्त करने से बढ़ा तनाव

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वाशिंगटन. अमेरिका और वेनेजुएला के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है. अमेरिकी तट रक्षक बल ने वेनेजुएला के तट के पास एक दूसरे तेल टैंकर को अपने कब्जे में ले लिया है. यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है, जब अमेरिका पहले ही वेनेजुएला से आने-जाने वाले प्रतिबंधित तेल टैंकरों पर सख्ती बढ़ा चुका है. इस कदम को दोनों देशों के रिश्तों में एक बड़े टकराव के तौर पर देखा जा रहा है.

अमेरिका ने लगाया वेनेजुएला सरकार पर आरोप
अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, यह कार्रवाई राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस ऐलान के बाद हुई है, जिसमें उन्होंने वेनेजुएला के तेल कारोबार पर लगभग नाकेबंदी की बात कही थी. अमेरिका का आरोप है कि वेनेजुएला की सरकार तेल से होने वाली कमाई का इस्तेमाल नशीले पदार्थों के कारोबार और आतंक से जुड़े कामों में कर रही है. इसी को रोकने के लिए अमेरिका ने यह सख्त कदम उठाया है.

तेल की अवैध ढुलाई को नहीं किया जाएगा बर्दाश्त 
अमेरिकी गृह सुरक्षा मंत्री क्रिस्टी नोएम ने सोशल मीडिया पर कहा कि अमेरिका प्रतिबंधित तेल की अवैध ढुलाई को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेगा. उनके अनुसार, यह तेल क्षेत्र में हिंसा और गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देता है. इस ऑपरेशन को अमेरिकी तट रक्षक बल ने अंजाम दिया, जिसमें रक्षा विभाग का भी सहयोग रहा है. हालांकि, यह साफ नहीं किया गया है कि टैंकर को किस सटीक जगह पर रोका गया है.

डर के मारे आगे नहीं बढ़ रहे हैं जहाज
सूत्रों के अनुसार, यह कार्रवाई आपसी सहमति से की गई, यानी टैंकर ने खुद को रोके जाने दिया और अमेरिकी बलों को जांच की अनुमति दी. पहले टैंकर को जब्त किए जाने के बाद से ही वेनेजुएला के तट के पास कई तेल से भरे जहाज खड़े हैं, जो आगे बढ़ने का जोखिम नहीं ले रहे हैं. इससे वेनेजुएला के तेल निर्यात पर सीधा असर पड़ा है और निर्यात में तेज गिरावट देखी गई है.

इस पूरे घटनाक्रम का असर वैश्विक तेल बाजार पर भी नजर आ रहा है. हालांकि फिलहाल बाजार में तेल की कमी नहीं है और कई देशों के पास पर्याप्त भंडार मौजूद है. चीन वेनेजुएला के तेल का सबसे बड़ा खरीदार माना जाता है और वहां बड़ी मात्रा में तेल पहले से पहुंच रहा है. दूसरी ओर, अमेरिका का दबाव अभियान लगातार तेज हो रहा है, जिसमें सैन्य मौजूदगी बढ़ाना और समुद्र में सख्त निगरानी शामिल है. आने वाले समय में यह तनाव और गहरा सकता है, जिसका असर अंतरराष्ट्रीय राजनीति और ऊर्जा बाजार दोनों पर पड़ सकता है.

साभार : जी न्यूज

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