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सीबीआई ने जैसे ही सत्यपाल मलिक के खिलाफ दायर की चार्जशीट, वैसे ही उनके अस्पताल में भर्ती की आई खबर

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जम्मू. आज सीबीआई ने जम्‍मू-कश्‍मीर के पूर्व गवर्नर सत्‍यपाल मलिक के खिलाफ करप्‍शन के एक मामले में ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. जैसे ही यह खबर मीडिया में आई तो सत्‍यपाल मलिक को मीडिया खोजने लगी. इसी बीच जम्‍मू-कश्‍मीर के पूर्व गवर्नर की तरफ से अपनी एक फोटो के साथ सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्‍स पर एक पोस्‍ट किया गया. उन्‍होंने यह जानकारी दी कि वो दिल्‍ली के राम मनोहर लोहिया अस्‍पताल में भर्ती हैं. उनके पोस्‍ट में लिखा गया, ‘नमस्कार साथियों. मेरे बहुत से शुभचिंतकों के फ़ोन आ रहे हैं जिन्हें उठाने में मैं असमर्थ हूं. अभी मेरी हालत बहुत खराब है. मैं किसी से भी बात करने की हालत में नहीं हूं. 11 मई से राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती हूं. संक्रमण की शिकायत के चलते अस्पताल में भर्ती किया गया था. अब स्थिति बहुत गंभीर है और पिछले तीन दिनों से किडनी डायलिसिस की जा रही है.’

जब आर्टिकल-370 हटा तब सत्‍यपाल मलिक ही थे गवर्नर

जब केंद्र सरकार ने जम्‍मू-कश्‍मीर से आर्टिकल 370 को हटाया तब राज्‍य के गवर्नर सत्‍यपाल मलिक ही थे. उनपर जम्मू-कश्मीर के विकास का प्रतीक माने जा रहा किरु हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. चिनाब नदी पर बन रही यह 624 मेगावाट की परियोजना न केवल तकनीकी रूप से महत्वाकांक्षी है, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी संवेदनशील है. सीबीआई द्वारा दाखिल चार्जशीट ने इस प्रोजेक्ट में गहराई तक फैले कथित घोटाले को उजागर किया है. पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का यह बयान कि उन्हें 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी, इस मामले को और गंभीर बनाता है. यह आरोप प्रशासनिक स्तर पर गहरे सांठगांठ और निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता की भारी कमी को दर्शाता है.

चार्जशीट में सीवीपीपीपीएल के वरिष्ठ पूर्व अधिकारी, ठेका प्राप्त करने वाली कंपनी पैटल इंजीनियरिंग लिमिटेड, और स्वयं मलिक का नाम शामिल होना जांच की गंभीरता को रेखांकित करता है. विशेष चिंता का विषय यह है कि CVPPPL की बोर्ड बैठक में पहले जिस ई-टेंडरिंग और रिवर्स ऑक्शन की प्रक्रिया को अपनाने की सिफारिश की गई थी, उसे बाद में एकतरफा तरीके से पलट दिया गया और सीधे ठेका दिया गया. यह निर्णय न केवल प्रक्रियात्मक पारदर्शिता को खारिज करता है, बल्कि यह भी सवाल खड़े करता है कि किस दबाव या सौदेबाजी के तहत यह बदलाव किया गया. यह मामला भारत में सरकारी परियोजनाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और भ्रष्टाचार-निरोधी संस्थाओं की मजबूती की जरूरत को रेखांकित करता है. किरु HEP अब सिर्फ एक ऊर्जा परियोजना नहीं, बल्कि नीति और नैतिकता की परीक्षा बन गई है.

साभार : न्यूज18

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