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महँगी हो सकती हैं स्विगी, जोमैटो, ओला और उबर जैसी ऑनलाइन सेवाएं

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मुंबई. स्विगी, जोमैटो, ओला और उबर जैसी कंपनियों के यूजर्स को आने वाले समय में महंगे ऑर्डर और राइड का सामना करना पड़ सकता है। इसका मुख्य कारण है सरकार द्वारा लागू किए गए नए लेबर कोड्स, जिनके तहत गिग वर्कर्स को औपचारिक सामाजिक सुरक्षा लाभ देने की व्यवस्था की गई है। इसके चलते भारत में गिग-इकोनॉमी प्लेटफॉर्म्स की लागत जल्द ही बढ़ सकती है।

ग्राहकों पर असर

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, नए लेबर कोड लागू होने से प्लेटफॉर्म्स की प्रति ऑर्डर लागत बढ़ सकती है। सरकार की मांग के अनुसार, फूड डिलीवरी या राइड शेयरिंग प्लेटफॉर्म्स को सोशल सिक्योरिटी फंड में सालाना टर्नओवर का 1 से 2% या गिग वर्कर्स को दिए गए कुल भुगतान का 5% तक योगदान देना पड़ सकता है। इससे फूड ऑर्डर पर लगभग 3.2 रुपये और क्विक-कॉमर्स ऑर्डर पर 2.4 रुपये का एक्स्ट्रा खर्च जुड़ सकता है। इस एक्स्ट्रा लागत का असर सीधे ग्राहकों पर पड़ेगा। प्लेटफॉर्म्स इसे प्लेटफॉर्म फीस बढ़ाकर, ‘सर्ज-लिंक्ड चार्जेज’ लगाकर या डिलीवरी की कीमतें बढ़ाकर पूरा कर सकते हैं। हालांकि, अगर सरकार इन सभी लाभों को एक केंद्रीय फंड के जरिए संचालित करने की व्यवस्था करती है, तो वास्तविक एक्स्ट्रा लागत घटकर 1-2 रुपये तक रह सकती है।

फॉर्मल स्टाफिंग को फायदा

दूसरी ओर, फॉर्मल स्टाफिंग कंपनियों के लिए यह बदलाव अवसर लेकर आया है। नए कोड के तहत नियम सरल और एकीकृत हो गए हैं, जिससे औपचारिक स्टाफिंग कंपनियों को काम करना आसान होगा। कंपनियां टीमलीज जैसी स्टाफिंग सेवाओं की ओर ज्यादा आकर्षित हो सकती हैं। हालांकि, नए कानून का पूरी तरह से लागू होना चुनौतीपूर्ण भी है। गिग वर्कर्स के काम के घंटे अक्सर तय नहीं होते और वे एक साथ कई प्लेटफॉर्म्स पर काम करते हैं। ऐसे में उनके मिलने वाले लाभों का हिसाब रखना कठिन हो जाता है। सरकार का ई-श्रम डेटाबेस इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सरकार ने 21 नवंबर से चार प्रमुख लेबर कोड्स लागू किए हैं, जो 29 पुराने कानूनों को समेकित करते हैं। पहली बार, इनको गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स पर भी लागू किया गया है, जिससे उन्हें पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और अन्य लाभ मिलने का अधिकार मिलेगा।

साभार : इंडिया टीवी

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