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पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की जमानत याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

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अहमदाबाद. सुप्रीम कोर्ट की ओर से साल 1990 के हिरासत में मौत के मामले में दोषी ठहराए गए पूर्व IPS ऑफिसर संजीव भट्ट की जमानत की याचिका को खारिज कर दिया गया है. संजीव भट्ट इस मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. मामले को लेकर जस्टिस विक्रम नाथ के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि मामले में सजा निलंबन या जमानत की याचिका में कोई दम नहीं है.

जमानत याचिका हुई खारिज

फैसला सुनाते हुए जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि हमारी संजीव भट्ट को जमानत देने की कोई इच्छा नहीं है. जमानत की याचिका खारिज की जाती है. इससे अपील की सुनवाई प्रभावित नहीं होगी. इसमें तेजी लाई जाएगी. बता दें कि संजीव भट्ट की उम्रैकद और दोषसिद्धि की सजा के खिलाफ दायर अपील इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. उन्होंने साल 2024 में गुजरात हाईकोर्ट द्वारा 9 जनवरी 2024 के दिए गए निर्देश को SC में चुनौती दी थी, जिसमें उनकी अपील को खारिज कर दिया गया था.

अपील को किया खारिज

बता दें कि गुजरात हाईकोर्ट की ओर से इंडियन पेनल कोड के सेक्शन 302 (हत्या), 323 ( अपनी इच्छा से चोट पहुंचाना) और सेक्शन 506 (आपराधिक धमकी) के तहतसंजीव भट्ट और उनके साथ आरोपी प्रविण सिंह जाला की दोषसिद्धि को भी बरकरार रखा गया था. हाई कोर्ट की ओर से राज्य सरकार की उस अपील को भी खारिज कर दिया गया था, जिसमें हत्या के आरोप से बरी किए गए बाकी 5 आरोपियों की सजा को बढ़ा दिए जाने की मांग की गई थी. ये सेक्शन 323 और सेक्शन 506 के तहत दोषी ठहराए गए थे.

क्या है पूरा मामला?

30 अक्टूबर साल 1990 में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात संजीव भट्ट ने एक सांप्रदायिक दंगे के बाद जामजोधपुर शहर में  लगभग 50 लोगों को हिरासत में लिया था. यह घटना भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को रोकने के खिलाफ बंद के दौरान हुई थी. इस दौरान प्रभुदास वैश्णानी नाम के एक शख्स को भी हिरासत में लिया गया था, जिसकी रिहाई के बाद अस्पताल में मौत हो गई थी. वैश्णानी के भाई का आरोप था कि संजीव भट्ट समेत 6 पुलिस अधिकारियों ने उसके भाई की  हिरासत के दौरान जमकर पिटाई की जो बाद में उसकी मौत का कारण बना. इसके अलावा उनपर 5 सितंबर साल 2018 को एक व्यक्ति को झूठे नशीली दवाओं के मामले में फंसाने का आरोप है.

साभार : जी न्यूज

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