पटना. बीपीएससी के जरिए बिहार में हो रही 1.7 लाख टीचरों की भर्ती नियमावली का संविदा टीचर विरोध कर रहे हैं। विरोध कर रहे टीचरों के सपोर्ट में बिहार बीजेपी ने विधानसभा मार्च निकाला। मार्च के दौरान पटना पुलिस की लाठीचार्ज में बीजेपी के कार्यकर्ता विजय कुमार सिंह की मौत हो गई है। लाठीचार्ज की घटना पर पूरी बीजेपी नाराज है। इस पूरे मामले में आरजेडी पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने बदला लिया है। साल 2019 में विधानसभा में आरजेडी के विधायकों पर हुए लाठीचार्ज की घटना के बाद तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया था कि जब वह सत्ता में आएंगे तो इसका बदला लेंगे। अब उसी ट्वीट का आधार बनाकर तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी की सरकार पर बदला लेने के आरोप लग रहे हैं। इन आरोपों और टीचरों की मांग पर तेजस्वी यादव ने जो बयान दिया है उसमें कई मायने दिख रहे हैं।
तेजस्वी यादव ने क्या कहा?
पटना लाठीचार्ज की घटना पर बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि यह कोई बदला नहीं लिया गया है। ये सब बेकार की बाते हैं। असल बात है मुद्दे की बात होनी चाहिए। बात स्पष्ट हो गई है कि मुख्यमंत्री जी ने और हमने भी कह दिया है कि मानसून सत्र की सदन की कार्यवाही जब खत्म हो जाएगी उसके बाद टीचर संघ के जितने भी नेता हैं सब लोगों को बुलाकर बात होगी। इसके बाद सारी बात स्पष्ट हो गई है, लेकिन कौन लोग ये बात कह रहे हैं यह बात समझने की जरूरत है। ये लोग 10 लाख रोजगार का हिसाब मांग रहे, तो ये लोग बताएं कौन सा ऐसा राज्य है जहां 3 लाख से भी ज्यादा सरकारी नौकरी के लिए विज्ञापन निकाले गए हैं। इसका कोई जवाब दे दे। हम तो कह रहे हैं कि हम इस शासन काल में 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा पूरा कर रही लेंगे। लेकिन ये लोग 2 करोड़ नौकरी का हिसाब दें। महंगाई का हिसाब दें। सारे टीचर संगठनों से हमारी भी बात हुई है। मार्च में कोई भी टीचर सगंठन शामिल नहीं था। ये तो बेकार का हुड़दंग कर रहे हैं। पिछले 18 साल तक कौन था यहां सरकार में। ये महागठबंधन की सरकार बनी तब ना राज्य में बहाली निकाली गई है। तब न संविदा टीचरों को राज्यकर्मी का दर्जा देने की बात कही जा रही है। हम संवाद कर रहे हैं, उनकी जो भी छोटी मोटी शिकायत होगी हम उसे सुनेंगे।
तेजस्वी के बयान में निशाना BJP पर या नीतीश पर?
- बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव के इस पूरे बयान पर नजर डालें तो वह एक जगह कह रहे हैं कि पिछले 18 साल से बिहार में किसका शासन था। उनके इस बयान से सीधे सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सवाल उठ रहे हैं। साल 2005 से नीतीश कुमार लगातार अभी तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। इन 18 साल में केवल 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक जीतन राम मांझी बिहार के सीएम रहे। इसके अलावा नीतीश कुमार ने 2015 से 2017 तक करीब दो साल महागठबंधन के घटक दल के रूप में सरकार चला चुके हैं। इस दौरान नीतीश कैबिनेट में तेजस्वी यादव बिहार के डेप्युटी सीएम भी रह चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या तेजस्वी यादव टीचरों की मांग और समस्या से खुद को अलग कर रहे हैं। जब वह पिछले 18 साल की बात करते हैं तो इसका मतलब है कि वह कहीं ना कहीं नीतीश कुमार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
- एक दिन पहले तेजस्वी यादव ने अपने बयान में कहा कि विपक्ष में रहते हुए वह लगातार संविदा टीचरों की मांग को उठाते रहे हैं। उनके इस बयान से मायने निकलता है कि मानो वह कह रहे हैं कि पिछले 18 साल से सत्ता में बने रहने के बाद भी नीतीश कुमार ने टीचरों के लिए कुछ नहीं किया।
- तेजस्वी यादव के इस बयान पर सवाल उठता है कि इस वक्त बिहार का शिक्षा मंत्रालय आरजेडी के विधायक चंद्रशेखर के पास है। यानी शिक्षा मंत्रालय आरजेडी के हस्से है। सवाल उठता है कि क्या तेजस्वी यादव शिक्षा मंत्रालय अपनी पार्टी के विधायक के अधीन में होने के बावजूत कोई फैसला नहीं ले पा रहे हैं। क्या तेजस्वी यादव अपनी ही पार्टी के नेता चंद्रशेखर के पास होने के बावजूद अपने हिसाब से जनता के हित में फैसले नहीं करवा पाते हैं।
- सवाल उठता है कि पिछले दिनों जिस तरह से शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक और शिक्षामंत्री चंद्राशेखर के बीच तनावपूर्ण हालात देखने को मिले तो क्या CM नीतीश ने जानबूझकर केके पाठक के रूप में अपने प्रतिनिधि को शिक्षा विभाग में स्थापित कर दिया है। सवाल उठता है कि क्या केके पाठकको चंद्रशेखर मनमाने तरीके से काम नहीं करने दे रहे हैं।
- यह भी सवाल उठता है कि नीतीश कुमार ने जानबूझकर केके पाठक जैसे अफसर को शिक्षा विभाग में डाला है, ताकि आरजेडी या किसी दूसरे प्रभावशाली लोगों के दबाव के बिना काम किया जा सके।
साभार : नवभारत टाइम्स
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