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विकसित देशों की नागरिकता ले रहे कुछ भारतीय,देश की आर्थिक प्रगति को ही दर्शा रहे हैं

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– प्रहलाद सबनानी

केंद्र सरकार ने दिनांक 9 दिसम्बर 2022 को भारतीय संसद को सूचित किया कि वर्ष 2011 से 31 अक्टोबर 2022 तक 16 लाख भारतीयों ने अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों, की नागरिकता प्राप्त कर ली है। इसकी वर्षवार जानकारी भी प्रदान की गई है – वर्ष 2011 में 122,819 भारतीयों ने अन्य देशों की नागरिकता प्राप्त की थी, इसी प्रकार वर्ष 2012 में 120,923 भारतीय; वर्ष 2013 में 131,405 भारतीय; वर्ष 2014 में 129,328 भारतीय; वर्ष 2015 में 131,489 भारतीय; वर्ष 2016 में 141,603 भारतीय; वर्ष 2017 में 133,049 भारतीय; वर्ष 2018 में 134,561 भारतीय; वर्ष 2019 में 144,017 भारतीय; वर्ष 2020 में 85,256 भारतीय; वर्ष 2021 में 163,370 भारतीय एवं वर्ष 2022 में (31 अक्टोबर तक) 183,741 भारतीयों ने अन्य देशों की नागरिकता प्राप्त की। वर्ष 2011 से यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है केवल वर्ष 2020 को छोड़कर, क्योंकि इस वर्ष कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनी जकड़ में ले लिया था।

जिन भारतीयों ने हाल ही के वर्षों में अन्य देशों में नागरिकता प्राप्त की है, उनमें से अधिकतम भारतीयों ने अमेरिका में नागरिकता प्राप्त करने के उपरांत भारतीय नागरिकता छोड़ी है। वर्ष 2021 में 78,284 भारतीयों ने अमेरिकी नागरिकता प्राप्त की जो वर्ष 2020 में 30,828 भारतीयों द्वारा अमेरिकी नागरिकता प्राप्त की गई संख्या से बहुत अधिक है। भारतीय किन कारणों के चलते अन्य देशों में नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं, इस विषय पर विचार करने पर ध्यान में आता है कि इसके पीछे दरअसल कई आर्थिक कारण ही जिम्मेदार हैं। सबसे पहिले तो भारत में लगातार तेजी से हो रहे आर्थिक विकास के चलते कई भारतीय अन्य देशों में अपना व्यवसाय फैला रहे हैं, इस व्यवसाय की देखभाल करने के उद्देश्य से कई भारतीय परिवार अपने कुछ सदस्यों को अन्य देशों विशेष रूप से विकसित देशों में नागरिकता प्रदान करवा रहे हैं।

क्योंकि वर्तमान में जारी नियमों के अनुसार कोई भी व्यक्ति केवल एक देश की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। यदि किसी व्यक्ति ने अमेरिकी नागरिकता प्राप्त कर ली है तो उसे भारतीय नागरिकता छोड़नी होगी। दूसरे, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी जैसे तकनीकी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीय नौजवानों को रोजगार के अधिकतम अवसर विकसित देशों में ही उपलब्ध हो रहे हैं, और इन देशों में वेतन भी भारत की तुलना में बहुत अधिक प्राप्त होता है। आज अमेरिका में भारतीय मूल के नागरिक जो उच्च शिक्षा एवं उच्च कौशल वाले क्षेत्रों में कार्यरत हैं उनका औसत वेतन प्रतिवर्ष 125,000 डॉलर से अधिक है जबकि अमेरिका में निवास कर रहे नागरिकों का औसत वेतन प्रतिवर्ष लगभग 70,000 डॉलर के आसपास है।

एक तो नौकरियों की अधिक उपलब्धता दूसरे बहुत अधिक वेतन, ये बहुत महत्वपूर्ण कारक हैं जो उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयों को अन्य देशों में रोजगार प्राप्त करने हेतु आकर्षित कर रहे हैं। तीसरे, कई विकसित देशों ने अन्य देशों के नागरिकों को शीघ्रता से नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से विशेष निवेश योजनाएं चला रखी हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत यदि कोई विदेशी नागरिक इन देशों में एक पूर्व निर्धारित राशि का निवेश करता है एवं पूर्व निर्धारित संख्या में रोजगार के नए अवसर उस देश में निर्मित करता है तो उसे उस देश की नागरिकता ‘गोल्डन वीजा रूट’ के अंतर्गत शीघ्रता से प्रदान कर दी जाती है।

इसी कारण के चलते भी कई भारतीय इन देशों में अपनी बहुत बड़ी राशि का निवेश कर रहे हैं एवं इस चैनल के माध्यम से इन विकसित देशों की नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं। वर्ष 2021 में इंग्लैंड में ‘गोल्डन वीजा रूट’ के माध्यम से बसने हेतु प्राप्त की जाने वाली जानकारी प्राप्त करने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या वर्ष 2021 में 54 प्रतिशत बढ़ गई। अब तो इस प्रकार की योजनाएं यूरोपीय देश, पुर्तगाल, माल्टा, ग्रीस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड आदि भी लागू कर भारतीयों को अपने अपने देशों में आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं।

चूंकि भारत आर्थिक क्षेत्र में पिछले लगभग 8-9 वर्षों से लगातार तेजी से विकास कर रहा है, अतः पूरे विश्व के लिए एक आकर्षण का क्षेत्र बना हुआ है। भारत में विदेशी निवेश बहुत तेज गति से बढ़ रहा है एवं कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपनी औद्योगिक एवं विनिर्माण इकाईयों की लगातार स्थापना कर रही हैं, इससे कई भारतीयों ने भी आर्थिक क्षेत्र में अकल्पनीय तरक्की हासिल की है जिसके चलते कई भारतीय अपनी व्यावसायिक इकाईयों को अन्य देशों विशेष रूप से विकसित देशों में भी स्थापित कर अपने व्यवसाय को वैश्विक स्तर पर फैलाना चाहते हैं इसलिए यह देश इस वर्ग को एक आकर्षण के रूप में दिखाई दे रहे हैं। वैसे भी अब पूरा विश्व ही एक तरह से वैश्विक गांव का रूप ले चुका है।

देश में लगातार तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास के चलते कई भारतीयों की आर्थिक स्थिति में इतना अधिक सुधार हुआ है कि वे सपरिवार कई विकसित देशों की, पर्यटन की दृष्टि से, यात्रा पर जाने लगे हैं। वर्ष 2019 में 252,71,965 भारतीयों ने अन्य देशों की यात्रा की है, कोरोना महामारी के चलते यह संख्या वर्ष 2020 में 66,25,080 एवं वर्ष 2021 में 77,24,864 पर आकर कम हो गई थी परंतु वर्ष 2022 में (31 अक्टोबर तक) पुनः तेजी से बढ़कर 183,12,602 हो गई है। विकसित देशों की यात्रा के दौरान ये भारतीय वहां रह रहे नागरिकों के रहन सहन के स्तर एवं बहुत आसान जीवन शैली से बहुत अधिक प्रभावित होकर इन देशों की ओर आकर्षित होते हैं।

भारत में आने के बाद ये परिवार लगातार यह प्रयास करना शुरू कर देते हैं कि किस प्रकार इनके बच्चों को इन विकसित देशों में रोजगार प्राप्त हों और मौका मिलते ही अर्थात रोजगार प्राप्त होते ही कई भारतीय इन विकसित देशों में बसने की दृष्टि से चले जाते हैं। साथ ही, आज लाखों भारतीय विदेशों में उच्च शिक्षा एवं उच्च कौशल युक्त क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त करने एवं अपना व्यवसाय प्रारम्भ करने के उद्देश्य से विकसित देशों की ओर रूख कर रहे हैं क्योंकि इन देशों में इन भारतीयों को तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक वेतन प्राप्त हो रहा है। इन विकसित देशों में भारतीय मूल के नागरिकों को वहां की नागरिकता प्राप्त होते ही वे अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी इन देशों में बुला लेते हैं एवं सपरिवार इन विकसित देशों में बस जाते हैं।

मोर्गन स्टैन्ली द्वारा वर्ष 2018 में इकोनोमिक टाइम्ज़ में प्रकाशित एक प्रतिवेदन में बताया है कि वर्ष 2014 से वर्ष 2018 के बीच भारत से डॉलर मिलिनायर की श्रेणी के 23,000 भारतीयों ने अन्य देशों में नागरिकता प्राप्त की। डॉलर मिलिनायर उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसकी सम्पत्ति 10 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक रहती है। इसी प्रकार, ग्लोबल वेल्थ मायग्रेशन रिव्यू आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में डॉलर मिलिनायर की श्रेणी के 7,000 भारतीयों ने अन्य देशों, विशेष रूप से अमेरिका, में नागरिकता प्राप्त की है। उक्त संख्या भारत में डॉलर मिलिनायर की कुल संख्या का 2.1 प्रतिशत है। सबसे अधिक संख्या में चीन से डॉलर मिलिनायर श्रेणी के 16,000 नागरिकों ने अन्य देशों में नागरिकता प्राप्त की है। इस सूची में चीन के बाद भारत एवं रूस का स्थान आता है।

विभिन्न देशों से डॉलर मिलिनायर नागरिक विशेष रूप से अमेरिका, आस्ट्रेलिया, स्विजरलैंड, कनाडा, सिंगापुर जैसे देशों में नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं। क्योंकि इन देशों में व्यापार करने हेतु बहुत आसान नियम लागू किए गए हैं। इन देशों में बहुत अधिक मात्रा में जमीन उपलब्ध है एवं पर्यावरण की दृष्टि से भी ये देश तुलनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस किए जाते हैं। इन देशों में शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएं भी बहुत उच्च मानदंडों के आधार पर उपलब्ध हैं। यह समस्त देश विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं अतः हर प्रकार की सुविधा यहां उचित मात्रा में उपलब्ध है। व्यवसाय को बढ़ाने हेतु उचित वातावरण है, नागरिकों के रहने का स्तर भी बहुत ऊंचा है। हालांकि इन्हीं देशों में ही इस धरा का अधिकतम शोषण भी किया गया है।

लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.

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