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मेरठ से निकलकर पूरे देश में पहुंची 1857 की क्रांति

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1857 में पहले मंगल पाण्डेय और फिर कोतवाल धनसिंह दोनों ने सैन्य विद्रोह की जो शुरुआत की, उसके बाद देश के विभिन्न स्थानों से संघर्षों के समाचार आने लगे। उस समय भारत छोटे-छोटे हजारों राज्यों या रियासतों में बंटा हुआ था। लार्ड डलहौजी की हड़प नीति के कारण 1848 से 1857 तक सैकड़ों राजाओं के साम्राज्य और जमींदारों की जमींदारी चली गई थी। इसलिए सभी में असंतोष था। ये सभी पूरे देश में फैले थे। इसके आलावा विभिन्न स्थानों पर आम जनता अपने स्थानीय नेतृत्वकर्ताओं के साथ अंग्रेजों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही थी। जिसको भी मेरठ विद्रोह की सूचना मिली, वो इस संघर्ष में जुड़ता चला गया। जैसे-जैसे लोग जुड़ रहे थे, यह समाचार भी तेजी से पूरे देश में फैल रहा था। इस कारण अंग्रेजों को देश के हर भाग में भारी विद्रोह का सामना करना पड़ा।

उत्तर प्रदेश में बैरकपुर, मेरठ, कानपुर, लखनऊ, झाँसी, बुंदेलखंड के अन्य क्षेत्र, बरेली, बनारस व प्रयागराज (इलाहबाद) आदि क्षेत्र प्रमुख थे। दिल्ली, बंगाल (उस समय असम, जो बाद में पूर्वोत्तर के कई अन्य राज्यों में बंट गया इसी रेजीडेंसी में आता था), बिहार (झारखण्ड सहित), पंजाब (भारत और पाकिस्तान दोनों का संयुक्त प्रदेश), हरियाणा, मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ सहित) , राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित), कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल आदि विभिन्न प्रदेशों के देशभक्तों ने अंग्रेजों को नर्क के दर्शन करवा दिए थे। भारत का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, जहाँ से किसी ने भी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष नहीं किया। कुछ भारतीय राजा और जमींदार अंग्रेजों के साथ थे, लेकिन उनके आस-पास कोई न कोई ऐसा क्षेत्र था ही, जो अंग्रेजों से मुक्ति चाहता था। जन आंदोलन बन जाने के कारण इसका प्रभाव नेपाल, अफगानिस्तान, भूटान और तिब्बत आदि एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर देखने को मिला। हम पहले ही पढ़ चुके हैं कि किस प्रकार नेपाल भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए शरण स्थली का काम कर रहा था।

मैं इसे जनआन्दोलन इस लिए भी कह रहा हूं क्योंकि इसमें तत्कालीन कई वेश्याओं ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया है। कई स्थानों पर स्वतंत्रता सेनानियों को ऐसे वीरों या वीरांगनाओं का साथ मिला, जिन्होंने इस आंदोलन में साथ देने के लिए ही हथियार उठाये और संघर्ष किया, तो कुछ लोगों ने विभिन्न अन्य रूपों में सहायता प्रदान की। यदि ये लोग ऐसा नहीं करते, तो शायद जीवित रह पाते, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता करने के कारण इन्हें मौत मिली, इसके बाद भी इन लोगों ने उसे भी हंसते-हंसते स्वीकार किया।

फोटो साभार : न्यूज 18

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