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सेवा भाव से समाज को सबल और पूरे विश्व को कुटुंब बनाना है : डॉ. मोहन भागवत

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जयपुर (मा.स.स.). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि जब देश का सर्वांग परिपूर्ण और स्वस्थ होगा, तभी भारत विश्वगुरु बनेगा. हमें सेवा भाव से समाज के हर अंग को सबल और पूरे विश्व को कुटुंब बनाना है. ऐसा तभी संभव है, जब सेवा का कार्य समाजव्यापी अभियान बन जाए. हमें ऐसा प्रयास करना है. सरसंघचालक जी ने शुक्रवार को जयपुर के जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेवा भारती के सेवा संगम के उद्घाटन समारोह में संबोधित किया. उन्होंने कहा कि लोग अपनी चुनौतियों और समस्याओं को समाप्त कर, सम्पूर्ण विश्व को भक्ति, ज्ञान और कर्म का उदाहरण प्रस्तुत करें. साथ ही सेवा करने वाली सज्जन शक्ति एक समूह बनकर परस्पर मिलकर चले. इससे हम अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकेंगे.

उन्होंने स्मरण करवाया कि सेवा का मंत्र हमारे देश में बहुत पहले से विद्यमान रहा है. सेवा का भाव संवेदना प्रधान है. हालांकि संवेदना मानव से इतर पशुओं में भी होती है और अक्सर यह परिलक्षित भी होता है, लेकिन संवेदना में कृति का भाव केवल मनुष्य तक ही सीमित है. उन्होंने कहा यह कृति ही करुणा है. सी-20 ग्रुप की बैठक का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी करुणा को आधार बनाना चाहिए. उन्होंने कहा कि कभी-कभी सेवा के बाद अहंकार आना स्वाभाविक है, लेकिन यदि सेवा भाव निरंतर बना रहता है, तो अहंकार स्वत: समाप्त हो जाता है. इसी निरंतरता पर जोर देते हुए कहा कि मेरे पास जो है, वह सबके लिए है. सबमें मैं हूं और मुझमें सब हैं. सेवा द्वारा सबको अपने जैसा बनाना, हमारा परम उद्देश्य होना चाहिए. इससे समाज का हर भाग स्वावलंबी होगा और देश में कोई पिछड़ा अथवा दुर्बल नहीं रहेगा.

डॉ. भागवत ने कहा कि संघ की स्थापना से ही स्वयंसेवक सेवा कार्य कर रहे हैं. सेवा की मानसिकता सब में होती है, बस उसे जगाना पड़ता है. हम प्रयास कर रहे हैं कि सेवा के माध्यम से आज ही समाज स्वस्थ हो जाए. इससे पहले हमें स्वस्थ होना पड़ेगा. हमारे समाज में यदि कोई पीछे है तो यह हमारे लिए अच्छी बात नहीं है. सबको समान और अपने जैसा मानकर ही समाज को आगे बढ़ा सकते हैं. कमजोर लोगों को ताकत देनी है. उन्होंने कहा कि हमारे देश में एक घुमंतू समाज है, जिसने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी. वो झुका नहीं. घुमंतू समाज के लोग कहीं न कहीं घूमते रहते हैं. अंग्रेजी शासकों ने उनकी पहचान मिटा दी. दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता के बाद भी उनकी वही स्थिति रही. उनके पास कोई मतदात पहचान पत्र नहीं है, राशन कार्ड नहीं और डोमिसाइल भी नहीं है. संघ के सेवा कार्य वहां भी चल रहे हैं.

पीरामल ग्रुप मुंबई के अध्यक्ष अजय पीरामल ने कहा कि उनकी संस्था भी भगवद् गीता के आधार पर चलते हुए सेवा कार्यों में लगी हुई है. उन्होंने संत रहीम के एक दोहे का उद्धरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान. कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान. कार्यक्रम में पूज्य संत बालयोगी उमेशनाथ महाराज ने सेवा कार्य के साथ सामाजिक समरसता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि हमें अपनी सनातन परंपरा को आगे बढ़ाते हुए वंचित समाज को अपने निकट लाना होगा. उन्होंने माता शबरी और केवट के प्रसंगों का उल्लेख किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख राजकुमार मटाले ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि नानाजी देशमुख एक मंत्र दे गए कि अपने लिए नहीं अपनों के लिए जियो. जहां संगम होता है, वहां अध्यात्म ऊर्जा बढ़ती है, जो सद्कार्यों की प्रेरणा देती है.

इससे पूर्व उद्योगपति नरसीराम कुलरिया ने स्वागत भाषण दिया. राष्ट्रीय सेवा भारती के अध्यक्ष पन्नालाल भंसाली ने आभार प्रकट किया. कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय सेवा भारती की महासचिव रेणु पाठक ने किया. उद्घाटन सत्र में अतिथियों ने सेवा साधना पत्रिका का लोकार्पण किया. पत्रिका का विषय स्वावलंबी भारत रखा गया है. सेवा संगम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भय्याजी जोशी, सह सरकार्यवाह मुकुंद सी आर, विश्वगुरु महामंडलेश्वर परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द जी महाराज और विश्व जागृति मिशन संस्थापक आचार्य सुधांशु महाराज जी सहित प्रमुख संतगण और सेवा कार्यों से जुड़े लोग उपस्थित हैं.

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