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क्या बेगुनाहों पर लगाया गया बौद्ध कथा में हुए तथाकथित उपद्रव का आरोप

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कानपुर (मा.स.स.). जिले के घाटमपुर के साढ़ थाना क्षेत्र के अंतर्गत पहेवा गांव में बुद्ध धम्म और अंबेडकर ज्ञान चर्चा चल रही थी. यह इसका दूसरा साल है. आरोप है कि इसी धर्म सभा में सोमवार देर रात कुछ लोगों ने घुसकर मारपीट व लूटपाट की. उपद्रवियों ने संत रविदास की मूर्ति भी तोड़ दी. आज मंगलवार को जैसे-जैसे इसकी जानकारी दलित समाज को मिली बवाल बढ़ता चला गया. प्रशासन ने संत रविदास की दूसरी मूर्ति लगवाकर मामले को शांत करने का प्रयास किया है. पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण में कर लिया है.

पुलिस के द्वारा इस मामले में स्थानीय विधायक सरोज कुरील के पीआरओ मनीष तिवारी सहित 8 लोगों पर गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की है. इनमें से 5 की गिरफ्तारी भी हो चुकी है. उपरोक्त कार्यक्रम के संबंध में 16 दिसंबर 2023 को लिखित शिकायत कर आयोजन के दौरान हिन्दू-देवी देवताओं के अपमान और ब्राह्मणों का पुतला जलाने का आरोप लगाया गया था, लेकिन पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. संयुक्त पुलिस आयुक्त, कानून व्यवस्था आनंद प्रकाश तिवारी ने स्वयं माना है कि गाँव में अनुमति लेकर कार्यक्रम करने की परंपरा कम है. इससे इस बात की पुष्टि होती है कि आयोजन बिना अनुमति के हो रहा था.

ग्रामीणों की शिकायत के आधार पर एसडीएम के आदेश पर एक दरोगा आयोजकों से कोई विवादित कार्य या बयान नहीं देने की हिदायद देकर भी गया था. इससे स्पष्ट होता है कि आयोजन प्रशासन और पुलिस की जानकारी में हो रहा था और इसमें विवाद की संभावना पहले से थी. स्थानीय विधायक सरोज कुरील के अनुसार उन्हें विवादित बयानों की जानकारी थी, इसीलिए वो आमंत्रण के बाद भी नहीं गईं. इससे यह स्पष्ट होता है कि विवादित बयान दिए गए थे, लेकिन पुलिस इससे इनकार कर रही है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 15 नकाबपोश लोग तीन गाड़ियों में आये और उन्होंने पहले बिजली काट दी. फिर इन लोगों ने मारपीट और लूटपाट की. इसी दौरान संत रविदास की मूर्ति भी खंडित की गई. यदि उपद्रवी नकाब में थे और बिजली नहीं थी, तो इनकी पहचान कैसे हुई? शिकायत तथा एफआईआर नामजद कैसे हो गई? पुलिस ने अभी तक इसका खुलासा नहीं किया है.

जो शिकायत पुलिस को दी गई है, उसमें भीम आर्मी के लोग भी हैं. उनको भड़काते हुए भीम आर्मी के नेताओं के वीडियो भी हैं. यदि जिस समय हमला हुआ, सिर्फ टेंट वाले तीन लोग ही थे, तो फिर भीम आर्मी वालों को कैसे पता चला की आरोपी कौन है. इसलिए ऐसा हो सकता है कि ये उपद्रवी कोई और हों या फिर ऐसा कोई हमला हुआ ही नहीं. आयोजकों ने विरोध करने वाले हिन्दुओं को फंसाने और उनमें भय उत्पन्न करने के लिए ऐसा स्वयं किया हो. क्योंकि जो लोग घायल हुए, वो टेंट वाले थे, न की आयोजकों में से कोई. फिलहाल यह जाँच का विषय है. लेकिन इसमें पुलिस और प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई है. ऐसे में क्या आरोपी पुलिस-प्रशासन ही यदि इसकी जांच करेगा, तो क्या निष्पक्ष जांच हो पायेगी.

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