रांची. झारखंड में विदेशियों की घुसपैठ पर चिंता व्यक्त करते हुए राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि उन्होंने यह कहते हुए इस मुद्दे को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ उठाया है, कि यह ‘घुसपैठ खतरनाक है’ क्योंकि विदेशी आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं, जिससे राज्य में ‘जनसांख्यिकी बदल रही है’। राज्य में विदेशियों की घुसपैठ के मुद्दे पर राज्यपाल राधाकृष्णन ने एक इटरव्यू में कहा, यह बहुत खतरना कहै क्योंकि विदेशियों की घुसपैठ आदिवासियों की पूरी जीवनशैली को बदल देगी। खासकर जब वे आ रहे हैं और आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं, तो यह चिंताजनक है। उन्होंने कहा, हमें इसके बारे में बहुत सतर्क रहना होगा।
उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे को मुख्यमंत्री के साथ-साथ मुख्य सचिव के साथ भी उठाया गया है। उन्होंने कहा, ‘मैंने इस मुद्दे को मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के समक्ष उठाया है। आदिवासियों की परंपरा नहीं बदलनी चाहिए और विदेशियों की घुसपैठ से झारखंड की जनसांख्यिकी नहीं बदलनी चाहिए। हमें इस बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए।’ इस बीच, राजभवन और राज्य सरकार के बीच असामंजस्य के बारे में पूछे जाने पर राज्यपाल ने कहा कि राजभवन और राज्य सरकार लोगों के विकास के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मुझे जो मुद्दा उठाना है, मैं उसे हमेशा मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के पास ले जाता हूं। मैं आंतरिक चीजों के बारे में टिप्पणी करने के लिए तैयार नहीं हूं। जब तक संभव हो हम चाहते हैं कि राजभवन और राज्य सरकार लोगों के विकास के लिए मिलकर काम करें।’
राज्यपाल राधाकृष्णन ने गठबंधन के इन आरोपों पर भी बात की कि राजभवन द्वारा विधेयक वापस किए जा रहे हैं क्योंकि वे विकास कार्यों को पसंद नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मैंने केवल एक विधेयक लौटाया है जो आरक्षण का है। 77 फीसदी की सिफारिश की जा रही थी, तब मैंने कहा कि आप अटॉर्नी जनरल की दूसरी राय लें इसलिए मैंने विधेयक लौटा दिया है। दूसरी बात यह है कि हमें निजी विश्वविद्यालयों के बारे में कुछ आपत्ति है। मैंने एक निजी विश्वविद्यालय की मंजूरी को अस्वीकार कर दिया है। इसके अलावा मेरे द्वारा कोई विधेयक वापस नहीं किया गया है।’ अपनी यात्राओं को राजनीति से प्रेरित और भाजपा के एजेंडे को बढ़ावा देने वाला करार दिए जाने पर उन्होंने कहा, ‘मैंने ऐसे बयान नहीं देखे… देखें राज्यपाल राज्य और केंद्र के बीच एक जोड़ने वाला पुल है जब तक कि नहीं। राज्यपाल जमीनी हकीकत जानने के लिए अंदरूनी स्थानों का दौरा करेंगे, आप राज्य और केंद्र को क्या सुझाव देंगे। इसलिए कोई भी अच्छे काम में दोष निकाल सकता है। लेकिन जब तक मैं अच्छा काम कर रहा हूं, तब तक मैं चिंतित नहीं हूं।’
उन्होंने मणिपुर के मुद्दे पर भी प्रतिक्रिया दी और कहा कि इससे कोई राजनीति नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हम सभी मणिपुर का इतिहास जानते हैं, यहां हमेशा दो वर्गों के लोगों के बीच बड़ी लड़ाई होती है। यह सब अचानक नहीं हुआ है। यह मणिपुर का इतिहास है, एक ही फैसले ने लोगों को उकसाया है और तब से यह खतरनाक होता जा रहा है। हमें इस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। हम सभी को मिलकर काम करना चाहिए ताकि मणिपुर जल्द से जल्द सामान्य स्थिति में लौट सके। उन्होंने आगे जिक्र किया कि राज्य सरकार और राजभवन को मणिपुर में शांति और स्थिरता वापस लाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। मणिपुर में हिंसा तब भड़की जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में मैतई समुदाय के लोगों को शामिल करने के प्रस्ताव के विरोध में तीन मई को एक रैली आयोजित की थी।
साभार : अमर उजाला
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