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नेपाल के नए नोट में भारतीय भूभाग को नेपाली क्षेत्र में दिखाया

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काठमांडू. हिमालय की गोद में बसा नेपाल कभी भारत का करीबी माना जाता था. आज भी दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी का संबंध है. सीमाएं खुली हुई हैं. इसके बावजूद नेपाल पर चीन लगातार दबाव बनाकर अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है. इसका असर एक बार फिर नेपाल पर दिख रहा है. उसने एक ऐसा नोट जारी करने का फैसला किया है, जिस पर छपे नक्शे में भारत के कई हिस्सों को नेपाल ने अपना बताने की कोशिश की है.

भारत के हिस्से में लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी इलाके हैं, जिन पर नेपाल भी चीन के दबाव में अपना दवा जताने लगा है. भारत और चीन के बीच रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इन इलाकों पर भारत के कब्जे को नेपाल की सरकार अचानक कृत्रिम विस्तार और अस्थिरता बताने लगी है. नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड ने नेपाल का नया नक्शा प्रकाशित करने का फैसला किया है. इसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है. इसी नक्शे को 100 रुपये के नेपाली नोट पर छापने की तैयारी है.

नेपाली कैबिनेट ने नोट का डिजाइन ही बदल दिया

मीडिया में आई खबरों में नेपाल की सरकार के प्रवक्ता रेखा शर्मा के हवाले से कहा गया है कि प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड की अगुवाई में नेपाली मंत्रिपरिषद की बैठक हुई. इसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को शामिल करते हुए 100 रुपये के बैंक नोट पर नेपाल का नया नक्शा प्रकाशित करने का फैसला लिया गया. नेपाल सरकार के प्रवक्ता और सूचना प्रसारण मंत्री रेखा शर्मा ने कहा कि नेपाली कैबिनेट की 25 अप्रैल और दो मई को हुई बैठक में यह फैसला किया गया कि 100 रुपये के नोट को फिर से डिजाइन किया जाए. इसके पीछे छपे पुराने नक्शे की जगह पर नया नक्शा छापा जाए.

नेपाल और भारत के बीच 1850 किलोमीटर लंबी सीमा

बताते चलें कि नेपाल और भारत की 1850 किलोमीटर लंबी सीमा एक-दूसरे से सटी हुई है. भारत में सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड तक की सीमाएं नेपाल से लगी हैं. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद भी उठता रहा है. इसी को लेकर साल 2023 के जून में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड के बीच चर्चा हो चुकी है और दोनों देशों ने सीमा विवाद निपटाने का फैसला किया था. हालांकि, इस दिशा में दोनों देशों ने अभी कुछ खास कदम आगे नहीं बढ़ाया है.

लिपुलेख दर्रे से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं श्रद्धालु

खास बात यह कै कि लिपुलेख पास उत्तराखंड को चीन के दावे वाले तिब्बत क्षेत्र से जोड़ता है. भारत से कैलाश मानसरोवर तक तीर्थयात्री इसी लिपुलेख दर्रे से जाते हैं. साल 1962 में चीन के हमले के वक्त इसे बंद कर दिया गया था पर 2015 में चीन से व्यापार और कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए इसे फिर से खोला गया था.

भारत ने साल 2020 में चीन के प्रभुत्व वाले तिब्बत में लिपुलेख दर्रे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित कैलाश मानसरोवर की यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को राहत पहुंचाने के लिए 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था. पिथौरागढ़ से शुरू हुई इस सड़क पर तब नेपाल ने नाराजगी जताई थी. वैसे भी नेपाल, भारत और तिब्बत के बीच लिपुलेख नेपाल के उत्तर पश्चिमी किनारे पर स्थित जमीन की एक पट्टी है. यह नेपाल और भारत के बीच विवादित कालापानी का पश्चिमी प्वाइंट है.

कालापानी से चीन की सेना पर नजर रखता है भारत

वहीं, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित कालापानी क्षेत्र वैसे भी दक्षिण एशिया की कूटनीति में अहम भूमिका निभाता रहा है, क्योंकि यह भारत, चीन और नेपाल के बीच ट्राई जंक्शन है. भारत इसी कालापानी से चीनी सेना की मूवमेंट पर नजर रखता है. 1962 की लड़ाई में पहली बार भारत ने यहां अपनी सेना तैनात की थी. अब इस इलाके के महत्व को देखते हुए भारत की ओर से हमेशा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के जवान तैनात रहते हैं.

नेपाल का नया फैसला बढ़ा सकता है विवाद

चूंकि नेपाल, चीन और भारत के बीच में पड़ता है, इसलिए दोनों ही देश उस पर अपना प्रभाव चाहते हैं. इस बीच, नेपाल ने नया नक्शा प्रकाशित कर विवाद को नई हवा दे दी है. जिन तीन इलाकों को नेपाल अपना बता रहा है, वे करीब 370 वर्ग किलोमीटर यानी करीब 140 वर्ग मील के क्षेत्रफल में फैले हैं. कालापानी पर किसी भी तरह का नया विवाद तीनों देशों के संबंधों को और भी खराब कर सकता है.

2020 में पड़ोसी देश ने बदल दिया था संविधान

इससे पहले साल 2020 के जून में नेपाल ने अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था. उसमें भी लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को नेपाल का हिस्सा दर्शाया था. यहां तक कि इसके लिए नेपाल ने अपने संविधान भी बदल दिया था. तब भारत सरकार ने नेपाल के इस कदम को एकतरफा बताते हुए जोरदार विरोध जताया था. इसके बाद नेपाल के प्रधानमंत्री पिछले साल भारत आए तो सीमा विवाद हल करने का वादा किया था. फिर भी नए नोट पर इन तीनों क्षेत्रों को अपना बताने की कोशिश साफ इशारा करती है कि नेपाल किस तरह से चीन के हाथों में खेलने लगा है.

साभार : टीवी9 भारतवर्ष

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