जम्मू. जम्मू और कश्मीर विधानसभा में उपराज्यपाल द्वारा नामित पांच व्यक्तियों की सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना है। कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने सरकार गठन से पहले इन पांच सदस्यों की नामजदगी का विरोध किया है और सुप्रीम कोर्ट में जाने की धमकी दी है। 2019 में धारा 370 को समाप्त करने के बाद जम्मू और कश्मीर का विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों में किया गया था। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अनुसार, उपराज्यपाल महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए दो सदस्यों को नामित कर सकते हैं, यदि उन्हें लगता है कि विधानसभा में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
2023 में अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसके तहत उपराज्यपाल को कश्मीरी प्रवासियों और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर से विस्थापित व्यक्तियों में से नामित करने की अनुमति दी गई। ये पांच सदस्य अन्य विधायकों की तरह ही अधिकार और मतदान का अधिकार रखेंगे। कांग्रेस ने इस कदम को लोकतंत्र पर हमला और संविधान के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ बताया है। जम्मू और कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रविंदर शर्मा ने कहा, हम विधानसभा में पांच सदस्यों की नामजदगी का विरोध करते हैं। नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। यह सरकार के गठन का मामला है और यह सरकार का अधिकार है कि वह लोगों को नामित करे।
पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने इस कदम को चुनावों से पहले की धांधली बताया। उन्होंने कहा, सभी पांच नामित सदस्य भाजपा से जुड़े हैं। यदि ये पांच सदस्य नामित किए जाते हैं, तो जम्मू और कश्मीर विधानसभा की ताकत 95 हो जाएगी, जिससे सरकार बनाने के लिए बहुमत की सीमा 48 सीटों तक बढ़ जाएगी। जम्मू और कश्मीर विधानसभा को पुडुचेरी विधानसभा के मॉडल पर स्थापित किया गया है, जहां तीन नामित सदस्य निर्वाचित विधायकों के बराबर काम करते हैं। इस स्थिति में, उपराज्यपाल की भूमिका और नामजदगी की प्रक्रिया पर बहस होना तय है, जिससे प्रदेश की राजनीतिक स्थिति और भी जटिल हो सकती है।
साभार : अमर उजाला
भारत : 1885 से 1950 (इतिहास पर एक दृष्टि) व/या भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं