जम्मू. मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलमुला में खीर भवानी मंदिर में शुक्रवार को मेला आयोजित किया गया है। हर साल ज्येष्ठ अष्टमी के अवसर इस मंदिर में मेला का आयोजन होता है। शुक्रवार को श्रद्धालुओं ने माता के दर्शन किए। पूजा-अर्चना कश्मीरी पंडितों की वापसी सकुशल वापसी के लिए प्रार्थना की।
मेले संग जुड़ी है कश्मीर पंडितों की यादें
खीर भवानी मेले के साथ कश्मीरी पंडितों की कई यादें जुड़ी हुई हैं। इसलिए कश्मीरी पंडितों को इस मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है। देश व विदेशों में बसे कश्मीरी पंडित इस मेले में शामिल होने के लिए हर साल पहुंचते हैं।
जम्मू से पांच हजार कश्मीरी पंडित पहुंचे हैं घाटी
176 बसों में लगभग 5000 कश्मीर पंडित जम्मू से माता खीर भवानी मंदिर तुलमुला (गांदरबल), टिक्कर (कुपवाड़ा), देवसर और मंजम (कुलगाम), लोग्रीपोरा (अनंतनाग) के विभिन्न गंतव्यों के लिए रवाना हुए हैं। इन सभी जगहों पर माता के मंदिर हैं। मुख्य धर्मसभा 14 जून, 2024 को ज्येष्ठ अष्टमी के शुभ अवसर पर तुलमुला में आयोजित की जा रही है। 15 जून को कश्मीरी पंडित वापस लौटेंगे।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
खीर भवानी मेले के निर्बाध और सुरक्षित संचालन के लिए व्यापक सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। यात्रा मार्ग पर अतिरिक्त सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है। गांदरबल जिला प्रशासन ने भी मंदिर में पहुंचने वाले भक्तों की सुरक्षा के लिए मजबूत ग्रिड स्थापित किया है।
1912 में हुआ था मंदिर का निर्माण
इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह ने कराया था। बाद में महाराजा हरी सिंह ने जीर्णोद्धार कराया। यह कश्मीरी पंडितों का प्रसिद्ध मंदिर है। मान्यता है कि रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर मां राज्ञा माता ( खीर भवानी या राग्याना देवी) ने रावण को दर्शन दिए थे। जिसके बाद रावण ने उनकी स्थापना श्रीलंका की कुलदेवी के रूप में की थी। कुछ समय बाद रावण के व्यवहार और बुरे कर्मों के चलते देवी उससे रुष्ट हो गईं और श्रीलंका से जाने की इच्छा व्यक्त की। इसके बाद जब भगवान राम ने रावण का वध कर दिया तो उन्होंने भगवान हनुमान को यह काम दिया कि वह देवी के लिए उनका पसंदीदा स्थान चुनें और स्थापित करें। इस पर देवी ने कश्मीर के तुलमुला को चुना। माना जाता है कि वनवास के दौरान राम राग्याना माता की आराधना करते थे तो मां राज्ञा माता को रागिनी कुंड में स्थापित किया गया।
कैसे नाम पड़ा खीर भवानी मंदिर
कश्मीर में स्थिति यह देवी का धाम यहां के रहने वाले कई कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी हैं। हर साल ज्येष्ठ माह की अष्टमी तिथि को यहां पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। कश्मीरी हिंदू यहां पर रोज देवी की पूजा करते हुए अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। देवी दुर्गा के इस मंदिर का नाम खीर भवानी इसलिए प्रचलित हुआ क्योंकि माता को विशेष रूप से खीर का भोग लगाया जाता है। वसंत के मौसम में खीर चढ़ाई जाती है। वहीं यहां के लोग इस मंदिर को महारज्ञा देवी, राज्ञा देवी मंदिर , रजनी देवी मंदिर और राज्ञा भवानी मंदिर के नाम से भी बुलाते हैं।
जम्मू में भी लगा माता खीर भवानी का मेला
माता खीर भवानी का मंदिर जम्मू के जानीपुर में भी स्थित है। शुक्रवार को बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित मंदिर में पहुंचे और पूजा-अर्चना की। बुधवार तड़के ही यहां श्रद्धालु पहुंचना शुरू हो गए। एक कश्मीरी पंडित ने बताया कि जो लोग किसी कारण से गांदरबल नहीं जा सके, वे जम्मू में माता के मंदिर में हाजिरी लगाने के लिए पहुंचे हैं।
कहां-कहां लगता है खीर भवानी मेला
जम्मू में एक और कश्मीर में पांच मंदिरों में खीर भवानी मेलों का आयोजन किया जाता है। जम्मू के जानीपुर, कश्मीर संभाग के गांदरबल के तुलमुल्ला में, कुलगाम के मंजगाम व देवसर में, अनंतनाग के लोगरीपोरा में और कुपवाड़ा के टिक्कर में रागनी भगवती मंदिर में मेले का आयोजन होता है। इनमें से विशाल चिनार के पेड़ों की छाया में बसे तुलमुला के खीर भवानी मंदिर में बड़ी संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों में बसे कश्मीरी पंडित माता का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं। जिला गांदरबा का तुलमुला क्षेत्र श्रीनगर से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है।
मंदिर के कुंड का पानी का बदलता है रंग
खीर भवानी मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि मंदिर के कुंड का पानी अपना रंग बदलता है। कहा जाता है जब भी कश्मीर में कोई बड़ी आफत आने वाली होती है तब इस कुंड के पानी का रंग बदल जाता है। मुसीबत आने पर इस कुंड का पानी काला हो जाता है। लोगों के अनुसार, जब साल 2014 में कश्मीर में भयानक बाढ़ आई थी तब यहां का पानी पहले ही काला हो गया था।
साभार : अमर उजाला
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