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अभिनेता पवन सिंह फिर भाजपा में हुए शामिल

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पटना. बिहार की राजनीति में विधानसभा चुनाव से पहले सीट बंटवारे को लेकर मंथन जारी है. एनडीए और महागठबंधन दोनों खेमे अपनी-अपनी रणनीति में जुटे हैं. एनडीए की सबसे बड़ी चुनौती उन इलाकों में है, जहां 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. शाहाबाद का इलाका इसमें सबसे अहम है. खासकर काराकाट सीट, जहां भोजपुरी सुपरस्टार और गायक पवन सिंह ने चुनावी मैदान में उतरकर पूरे समीकरण बदल दिए थे. हालांकि बीजेपी की तरफ से अब डैमेज कंट्रोल की कोशिश हो रही है.

बीजेपी अब पवन सिंह को साधने में लगी है. सोमवार की रात पार्टी के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और राष्ट्रीय सचिव ऋतुराज सिन्हा ने उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात की थी. यह मुलाकात महज औपचारिक नहीं मानी जा रही है. वहीं मंगलवार को पवन सिंह उपेंद्र कुशवाहा से मिलने पहुंचे. इस बीच अब बीजेपी नेता विनोद तावड़े ने ऐलान किया कि पवन सिंह बीजेपी में थे और बीजेपी में ही रहेंगे.

बागी उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव में उतरे थे पवन सिंह

पवन सिंह को बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में आसन आसनसोल से उम्मीदवार बनाया था. हालांकि वो काराकाट सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. बाद में पवन सिंह ने बीजेपी छोड़कर निर्दलीय लड़ने का ऐलान किया था. पवन सिंह के बगावत से एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा को हार का सामना करना पड़ा था. बाद में बीजेपी ने पवन सिंह को पार्टी से निकाल दिया था.

पवन सिंह एनडीए के लिए क्यों हैं जरूरी?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की राजनीति में पवन सिंह जैसे स्टार चेहरे को नजरअंदाज करना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है. उनकी लोकप्रियता न केवल भोजपुरी भाषी वोटरों में है, बल्कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में भी उनका असर दिखता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में काराकाट से एनडीए के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा उम्मीदवार थे. लेकिन पवन सिंह ने बगावत कर चुनाव लड़ा था.  परिणाम यह हुआ कि कुशवाहा तीसरे नंबर पर पहुंच गए और एनडीए की हार हो गई थी. शाहाबाद के समीकरण इस चुनाव में पूरी तरह बिगड़ गए.  कुशवाहा समाज और राजपूत समाज के बीच खींचतान ने इस हार को और गहरा कर दिया. यही कारण है कि इस बार बीजेपी और एनडीए इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान दे रहे हैं.

जातिगत वोट बैंक के लिए भी जरूरी हैं पवन सिंह

काराकाट लोकसभा क्षेत्र शाहाबाद की राजनीति में बेहद अहम है.  यह क्षेत्र हमेशा जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमता रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी शाहाबाद क्षेत्र की 22 सीटों में एनडीए को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं. जानकारों का मानना है कि पवन सिंह की बगावत के कारण बीजेपी को लोकसभा चुनाव में आरा, काराकाट, औरंगाबाद और बक्सर सीट पर नुकसान का सामना करना पड़ा था. हाल के दिनों में बिहार बीजेपी के दिग्गज चेहरे आरके सिंह भी कई बार बीजेपी के खिलाफ दिखे हैं ऐसे में एनडीए को अपने परंपरागत राजपूत वोट को साथ रखने के लिए किसी मजबूत चेहरे की जरूरत है. पवन सिंह के साथ आने से यह पूरा हो सकता है.

कुशवाहा और पवन सिंह अगर साथ आते हैं तो क्या बनेगा नया समीकरण?

पिछले लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट देकर यादव, मुस्लिम और कुशवाहा समीकरण बनाने की कोशिश की थी और इंडिया गठबंधन को इसका लाभ भी मिला था.  अगर राजपूत वोट बैंक पवन सिंह के साथ एनडीए की तरफ आती है और उपेंद्र कुशवाहा अपने स्वजातीय वोटर्स को साथ रखने में सफल होते हैं तो महागठबंधन के समीकरण को कमजोर कर सकता है.

आनंद मिश्रा के बाद अब पवन सिंह को क्यों साधा जा रहा है

पिछले कई विधानसभा चुनावों से एनडीए का प्रदर्शन इस इलाके में अच्छा नहीं रहा है. पिछले लोकसभा चुनाव में सभी चार सीटों पर एनडीए की हार हुई थी. आरा, बक्सर, सासाराम और काराकाट में एनडीए के उम्मीदवार चुनाव हार गए थे.बीजेपी ने बक्सर में बागी उम्मीदवार के तौर पर उतरे आनंद मिश्रा को पार्टी में शामिल करवाया अब अगर पवन सिंह की वापसी होती है तो निश्चित तौर पर चुनाव में एनडीए को इसका लाभ मिल सकता है.

साभार : एनडीटीवी

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