नई दिल्ली. दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU)ने अपने संस्कृत विभाग के कोर्स ‘धर्मशास्त्र स्टडीज’से मनुस्मृति को हटा दिया है. इतना ही नहीं यूनिवर्सिटी ने साफ कर दिया है कि अब किसी भी कोर्स में मनुस्मृति को शामिल नहीं किया जाएगा.
Delhi University Update: DU में क्या हुआ है?
DU ने अपने ऑफिशियल X अकाउंट पर पोस्ट करके बताया कि संस्कृत विभाग के एक चार-क्रेडिट कोर्स ‘धर्मशास्त्र स्टडीज’ में पहले मनुस्मृति को ‘अनुशंसित पठन’ (recommended reading) की लिस्ट में रखा गया था,लेकिन अब इसे पूरी तरह हटा दिया गया है.इतना ही नहीं इस कोर्स को भी कोर्स लिस्ट से निकाल दिया गया है.ये कोर्स राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)2020 के तहत अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क (UGCF) में जोड़ा गया था. इसमें रामायण, महाभारत, पुराण और अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथ भी पढ़ाए जा रहे थे, लेकिन अब मनुस्मृति को लेकर सख्त फैसला लिया गया है.
पहले भी हुआ था विवाद
मनुस्मृति को लेकर DU में पहले भी हंगामा हो चुका है. मार्च 2025 में हिस्ट्री डिपार्टमेंट ने अपने हिस्ट्री ऑनर्स कोर्स में मनुस्मृति को जोड़ने की सलाह दी थी, लेकिन उस वक्त भी DU ने साफ कहा था कि मनुस्मृति को किसी कोर्स में नहीं जोड़ा जाएगा. इसके अलावा लॉ डिपार्टमेंट में भी इसे पढ़ाने की बात हुई थी, लेकिन फैकल्टी मेंबर्स के विरोध के बाद यह फैसला वापस ले लिया गया.अब DU के वाइस चांसलर योगेश सिंह ने साफ-साफ कह दिया है कि हमारा रुख बिल्कुल साफ है. मनुस्मृति DU के किसी भी कोर्स में नहीं पढ़ाई जाएगी. इसे धर्मशास्त्र स्टडीज से हटा दिया गया है.अगर भविष्य में भी इसे जोड़ने की सलाह आई, तो उसे भी रिजेक्ट कर दिया जाएगा.
मनुस्मृति क्या है?
मनुस्मृति एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें धर्म और राजनीति से जुड़ी बातें लिखी हैं.इसमें कुल 2694 श्लोक हैं, जो 12 अध्यायों में बटे हैं. इनमें हिंदू संस्कार,श्राद्ध,आश्रम व्यवस्था,हिंदू विवाह और महिलाओं के लिए नियम बताए गए हैं.साथ ही इसमें जाति व्यवस्था को भी समझाया गया है. इसमें लिखा है कि ब्रह्माजी ने दुनिया बनाई. उनके मुंह से ब्राह्मण,भुजाओं से क्षत्रिय,पेट से वैश्य और पैरों से शूद्र वर्ण की उत्पत्ति हुई. हर वर्ण का काम बताया गया.
क्यों होता है मनुस्मृति का विरोध?
मनुस्मृति में जाति व्यवस्था और महिलाओं को लेकर लिखी बातों की वजह से इसका विरोध होता है.इसमें कहा गया है कि महिलाओं को हमेशा पिता, पति या बेटे के साथ रहना चाहिए, और वो अकेले स्वतंत्र नहीं हो सकतीं. इसके अलावा जाति व्यवस्था को बढ़ावा देने की वजह से भी इसकी आलोचना होती है.डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर ने भी मनुस्मृति का विरोध किया था.उन्होंने अपनी किताब फिलॉसफी ऑफ हिंदुइज्म में लिखा कि मनु ने चार वर्णों को अलग-अलग रखकर जाति व्यवस्था की नींव डाली. 25 जुलाई 1927 को अंबेडकर ने महाराष्ट्र के कोलाबा में मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाया था.
साभार : न्यूज18
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