नई दिल्ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधेयकों पर मंजूरी के बारे में समय सीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस (राष्ट्रपति प्रपत्र) भेज कर राय मांगी है। हालांकि रिफरेंस में कोर्ट के फैसले का कोई जिक्र नहीं है लेकिन घुमा फिरा कर जो संवैधानिक सवाल पूछे गए हैं और सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी गई है उनमें लगभग सभी सवाल उस फैसले से जुड़े नजर आते हैं। रिफरेंस में कुल 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी गई है।
अनुच्छेद 200 पर पूछे सवाल
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि जब संविधान में विधेयकों पर मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या न्यायिक आदेश के जरिए समय सीमा लगाई जा सकती है। क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी मिले बगैर लागू होगा। राष्ट्रपति की ओर से रिफरेंस भेज कर संवैधानिक सवालों पर मांगी गई राय को सुप्रीम कोर्ट के गत आठ अप्रैल के फैसले से जोड़ कर देखा जा रहा है। हालांकि रिफरेंस में फैसले का कोई जिक्र नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने आठ अप्रैल को तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक रोके रखने के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था और राज्य के विधेयकों पर मंजूरी के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर दी थी।
5 जजों की पीठ करेगी सुनवाई
इस फैसले के बाद से ही बहस छिड़ गई थी कि जब संविधान में राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय नहीं है तो क्या सुप्रीम कोर्ट न्यायिक आदेश के जरिए समय सीमा तय कर सकता है। अब इन सवालों पर राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस (राष्ट्रपति प्रपत्र) भेज कर राय मांगी है। तय संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रिफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई करती है और अपनी राय राष्ट्रपति को देती है। हालांकि कोर्ट की राय राष्ट्रपति या सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती। राष्ट्रपति की ओर से सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए रिफरेंस में लगभग सभी सवाल संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से संबंधित हैं जो राज्य विधानमंडल से पास विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बारे में हैं।
राष्ट्रपति ने रिफरेंस में पूछा है कि जब राज्यपाल के समक्ष अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक मंजूरी के लिए पेश किया जाता है तो उनके पास क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं। क्या राज्यपाल मंजूरी के लिए पेश किये गए विधेयकों में संविधान के तहत उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता से बंधे हैं। क्या राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग करना न्यायोचित है।
न्यायिक समीक्षा पर जताया संशय
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी पूछा है कि क्या संविधान का अनुच्छेद 361, राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत किये गए कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। यानी कि क्या राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 में विधेयकों की मंजूरी के संबंध में किये गए कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर अनुच्छेद 361 पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। राष्ट्रपति ने जिन संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है उनमें सबसे अहम सवाल है कि जब अनुच्छेद 200 में राज्यपाल और अनुच्छेद 201 में राष्ट्रपति की शक्तियों के इस्तेमाल के बारे में संविधान में कोई समय सीमा और तरीके निर्धारित नहीं हैं तो क्या न्यायिक आदेश के जरिए समय सीमा और तरीके तय किये जा सकते हैं।
8 अप्रैल को कोर्ट ने दिया था आदेश
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने पूछा है कि जब राज्यपाल ने विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए सुरक्षित रख लिया हो या अन्यथा, तो उस स्थिति में क्या राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 में रिफरेंस भेजकर सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेनी चाहिए। यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आठ अप्रैल के आदेश में कहा था कि अगर राज्य के विधेयक की संवैधानिकता को लेकर राष्ट्रपति को कोई सवाल है तो वे सुप्रीम कोर्ट से राय ले सकती हैं।
राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेने की अनुमति न्यायालयों को है। क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग में राष्ट्रपति और राज्यपाल के आदेशों को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत किसी तरह प्रस्थापित (सब्टीट्यूट) किया जा सकता है। और जो सबसे बड़ा सवाल राष्ट्रपति ने पूछा है वह ये है कि क्या राज्य विधान मंडल द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की सहमति के बिना लागू कानून है। यानी वह कानून की तरह लागू हो सकता है।
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि संविधान कहता है कि राज्य विधानमंडल से पास कोई भी विधेयक राज्यपाल की सहमति के बाद ही कानून बनता है जबकि सुप्रीम कोर्ट के आठ अप्रैल के आदेश में कोर्ट ने तमिलनाडु में राज्यपाल द्वारा रोके गए बिलों को उस तारीख से मंजूर घोषित कर दिया था जिस तारीख को वो राज्यपाल के सामने मंजूरी के लिए पेश हुए थे। यह पहली बार था जबकि सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बिल मंजूर किये गए थे।
रिफरेंस में मांगी जा सकती है राय
राष्ट्रपति ने रिफरेंस में पूछा है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के प्रविधान को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट की किसी भी पीठ के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके समक्ष विचाराधीन मुद्दे में संविधान की व्याख्या का महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है और उसे विचार के लिए कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाना चाहिए। साथ ही राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 में प्राप्त शक्तियों में फैसला देने के अधिकार और केंद्र व राज्यों के बीच विवाद में ओरिजनल सूट के अलावा याचिकाओं पर सुनवाई करने पर भी कानूनी राय पूछी है।
साभार : दैनिक जागरण
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