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अनुराग कश्यप की फिल्म फुले पर सेंसर बोर्ड ने लगाई रोक

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मुंबई. फिल्म निर्माता और अभिनेता अनुराग कश्यप ने फिल्म ‘फुले’ को लेकर सेंसरशिप मुद्दों पर चिंता जताई है। महाराष्ट्र में ब्राह्मण समुदाय द्वारा फिल्म को लेकर जताई गई आपत्ति के बाद इसके रिलीज को कथित तौर पर स्थगित कर दिया गया था। अनुराग ने इस बात पर हैरानी जताई की फिल्म रिलीज से पहले ही समुदाय इस तक कैसे पहुंच प्राप्त कर पाया। उन्होंने जातिवाद को लेकर सरकार पर भी सवाल खड़े किए।

अनुराग कश्यप ने क्या कहा?

अनुराग कश्यप ने पूरे मामले पर अपनी निराशा जताई। उन्होंने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर स्टोरी साझा की। अनुराग ने लिखा, ‘मेरी जिंदगी का पहला नाटक ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले पर था। भाई अगर जातिवाद नहीं होता इस देश में तो ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले को क्या जरूरत थी लड़ने की। अब एक समुदाय के लोगों को शर्म आ रही है या वो शर्म में मरे जा रहे हैं या फिर एक अलग ही समुदाय भारत में हैं। हम देख नहीं पा रहे हैं, बेवकूफ कौन है कोई तो समझाए?’

सरकार पर भी उठाए सवाल

अनुराग का मानना है कि ‘फुले’ उन कई फिल्मों में से एक है, जिन्हें अपने बोल्ड और बेबाक विषयों के कारण दमन का सामना करना पड़ रहा है। वह ‘पंजाब 95’, ‘तीस’, ‘धड़क 2’ सहित कई फिल्मों का हवाला देते हुए सुझाव देते हैं कि इन फिल्मों को असहज सच्चाई को दर्शाने के लिए निशाना बनाया जा रहा है। अनुराग ने लिखा, ‘मुझे नहीं पता कि इस जातिवादी, क्षेत्रवादी, नस्लवादी सरकार के एजेंडे को उजागर करने वाली और कितनी फिल्में ब्लॉक की गई हैं। उन्हें अपना चेहरा आईने में देखने में शर्म आती है। उन्हें इतनी शर्म आती है कि वो खुलकर यह भी नहीं बता सकते कि फिल्म में ऐसा क्या है? जो उन्हें परेशान करता है। बकवास।’

जातिवाद को लेकर साधा निशाना

अपनी निराशा जताते हुए उन्होंने लिखा, ‘भाई मिल के तय कर लो। भारत में जातिवाद है या नहीं?’ अनुराग ने लिखा, ‘धड़क 2 की स्क्रीनिंग में सेंसर बोर्ड ने बोला भारत में जाति व्यवस्था खत्म कर दी है। इसके आधार पर फिल्म ‘संतोष’ भी भारत में रिलीज नहीं हुई। अब एक समुदाय को समस्या है ‘फुले’ से। भैया, जब जाति व्यवस्था ही नहीं है तो काहे की समस्या। कौन हो आप? और एक सवाल- जब जाति व्यवस्था नहीं थी तो ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई क्यों थे? एक बार और सभी के लिए तय करें, क्या भारत में जातिवाद है या नहीं? लोग मूर्ख नहीं हैं।’

क्या है फिल्म ‘फुले’ विवाद?

दरअसल, सीबीएफसी ने 7 अप्रैल को निर्माताओं को ‘यू’ प्रमाणपत्र दिया था और उनसे कई संशोधन करने को कहा था, जिसमें ‘मांग’, ‘महार’ और ‘पेशवाई’ जैसे शब्दों को हटाना, साथ ही ‘तीन हजार साल पुरानी गुलामी’ को ‘कितने साल पुरानी गुलामी’ में बदलना शामिल था, जिसके बारे में निर्देशक अनंत महादेवन ने कहा कि उन्होंने इसका अनुपालन किया है। प्रतीक गांधी और पत्रलेखा की फिल्म ‘फुले’ 11 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी, हालांकि, एक समुदाय के विरोध के बाद इस फिल्म की रिलीज टाल दी गई। अब यह 25 अप्रैल को रिलीज हो सकती है। यह फिल्म समाज सुधारक ज्योतिराव गोविंदराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है।

साभार : अमर उजाला

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