नई दिल्ली. चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरकर इतिहास रचने वाले चंद्रयान-2 ने एक बार फिर नई जानकारी जुटाई है। सूर्य के चांद पर पड़ने वाले असर का चंद्रयान-2 ने पता लगाया है। इसरो ने शनिवार (18 अक्तूबर ) को इसकी जानकारी साझा की है। अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि इस अवलोकन से चंद्रमा के बाह्यमंडल, चंद्रमा के अत्यंत विरल वायुमंडल और उसकी सतह पर अंतरिक्ष मौसम के प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी।
सूर्य के तूफान ने फुला दिया चांद का पतला वायुमंडल
इसरो ने बताया कि भारत के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 के लूनर ऑर्बिटर ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी और पहली बार देखी गई घटना दर्ज की है। चंद्रयान-2 पर लगे वैज्ञानिक उपकरण चेस-2 ने सूर्य से निकलने वाले कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) के प्रभावों को चंद्रमा के बाह्यमंडल यानी उसके बेहद पतले वायुमंडल पर सीधे देखा है।
चंद्रयान-2 के अवलोकनों से पता चला है कि जब सूर्य का यह विशाल तूफान चंद्रमा से टकराया, तो चंद्रमा के दिन के समय के बाह्यमंडल का कुल दबाव अचानक बढ़ गया। इसरो के मुताबिक चेस-2 ने रिकॉर्ड किया कि वातावरण में परमाणुओं और अणुओं का घनत्व दस गुना से भी अधिक बढ़ गया था। चंद्रयान-2 पहला मिशन है जिसने इसे वास्तव में होते हुए देखा है।
जानिए कब हुई ये घटना?
यह घटना 10 मई, 2024 को हुई जब सूर्य ने सीएमई की एक शृंखला अंतरिक्ष में फेंकी। चूंकि चंद्रमा के पास पृथ्वी की तरह कोई सुरक्षात्मक चुंबकीय क्षेत्र या सघन वायुमंडल नहीं है, इसलिए सीएमई के आवेशित कण सीधे चंद्रमा की सतह पर टकराए। इन कणों की टक्कर से चंद्रमा की सतह से बड़ी संख्या में परमाणु और अणु उछलकर बाह्यमंडल में मुक्त हो गए, जिससे वातावरण अचानक फूल गया।
सीएमई का क्या प्रभाव पड़ता है?
चंद्रयान-2 ने पहली बार वैज्ञानिक रूप से यह अवलोकन किया है कि सूर्य की कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) यानी सूर्य से विशाल मात्रा में ऊर्जा और कणों का विस्फोट चंद्रमा के वातावरण को कैसे प्रभावित करता है। यह जानकारी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दी। कोरोनल मास इजेक्शन तब होता है, जब सूर्य अपनी निर्माण सामग्री, जिसमें मुख्यतः हीलियम और हाइड्रोजन आयन होते हैं, जिनका महत्वपूर्ण मात्रा में उत्सर्जन करता है।
ये प्रभाव चंद्रमा पर महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि चंद्रमा एक वायुहीन पिंड है और वह भी किसी भी वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र से रहित है, जिसकी उपस्थिति इसकी सतह पर सौर प्रभावों को रोक सकती थी। इसरो ने कहा कि इस अवलोकन से चंद्रमा के अत्यंत पतले वायुमंडल (लूनर एक्सोस्फीयर) की बेहतर समझ और अंतरिक्षीय मौसम के चंद्र सतह पर प्रभाव का अध्ययन संभव हो सकेगा।
लगातार डेटा भेज रहा ऑर्बिटर
चंद्रयान-2 मिशन को 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा से GSLV-MkIII-M1 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया था। यह मिशन आठ वैज्ञानिक उपकरणों के साथ गया था और 20 अगस्त 2019 को यह सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया था। हालांकि 7 सितंबर 2019 को विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया था, लेकिन ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की 100 किमी x 100 किमी की कक्षा में सक्रिय है और निरंतर वैज्ञानिक डेटा भेज रहा है।
इसरो ने यह भी कहा कि यह खोज वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंद्रमा और अंतरिक्ष मौसम की समझ को आगे बढ़ाने के साथ-साथ भविष्य में चंद्रमा पर बनने वाले बेस (चंद्र आवासों) के लिए भी चेतावनी है। चंद्रमा पर मानव मिशन या स्थायी ठिकाने बनाने से पहले वैज्ञानिकों को इस तरह के सौर तूफानों और उनके प्रभावों को ध्यान में रखना होगा।
साभार : अमर उजाला
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