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सिद्धारमैया ने गुस्से में मंच पर ही एएसपी को थप्पड़ मारने के लिए उठाया हाथ

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बेंगलुरु. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इन दिनों चर्चा में बने हुए हैं. रविवार को उन्होंने पहलगाम हमले पर जंग से संबंधित टिप्पणी कर दी और फिर सुर्खियों में छा गए. इसके बाद सोमवार को उन्होंने बेलगावी में एक प्रोग्राम के दौरान अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) को लगभग थप्पड़ मारने जैसी स्थिति पैदा कर दी और नया विवाद खड़ा कर दिया. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वीडियो में देखा जा सकता है कि एएसपी नारायण भरमनी को मंच पर बुलाने के बाद सिद्धारमैया गुस्से में हाथ उठाते हुए दिखाई दे रहे हैं.

सिद्धरमैया ने मंच पर अफसर के साथ क्या किया?

बताया जा रहा है कि यह टकराव उस आयोजन स्थल के पास व्यवधान से पैदा हुआ, जहां सिद्धारमैया जनता को संबोधित करने वाले थे. भाजपा की महिला कार्यकर्ता उस जगह के पास विरोध प्रदर्शन कर रही थीं और एएसपी भरमनी को मंच के आसपास सुरक्षा का प्रबंधन करने के लिए नियुक्त किया गया था. वहां के हालात से नाखुश सिद्धारमैया ने भरमनी को मंच पर बुलाया और सार्वजनिक रूप से उन्हें फटकारते हुए पूछा,’आप जो भी हैं, यहां आए हैं, आप क्या कर रहे थे?’ वीडियो में साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि गुस्से में मुख्यमंत्री अपना हाथ उठाते हैं जैसे कि वो अधिकारी को मारना चाहते हों, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.

विपक्ष को मिला और बड़ा मौका

घटना का वीडियो सामने आते ही इसपर विपक्षी पार्टियों ने जमकर हमला बोल दिया. जनता दल (सेक्युलर) ने सिद्धारमैया के कामों की निंदा करते हुए उन पर अहंकार और अनादर का आरोप लगाया. इसके अलावा जेडीएस ने भी सख्त शब्दों में कहा कि किसी सरकारी अधिकारी पर हाथ उठाना और उसे अपमानजनक लहजे में संबोधित करना अक्षम्य अपराध है. पार्टी ने आगे टिप्पणी की कि एक मुख्यमंत्री का कार्यकाल पांच साल का होता है, जबकि एक सरकारी अधिकारी दशकों तक जनता की सेवा करता है, इस बात पर जोर देते हुए कि सत्ता कभी किसी के लिए स्थायी नहीं होती.

पहलगाम पर क्या बोल गए थे सिद्धारमैया

यह विवाद सिद्धारमैया की एक और टिप्पणी के तुरंत बाद आया है जिसने देशभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा था. जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर टिप्पणी करते हुए सिद्धारमैया ने कहा था कि ‘युद्ध की जरूरत नहीं है’. उन्होंने सुझाव दिया कि सैन्य कार्रवाई की तुलना में कूटनीतिक और सुरक्षा उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. उनकी टिप्पणी की आलोचना हुई, जिसके बाद उन्हें बाद में स्पष्ट करना पड़ा कि उनका मतलब था कि युद्ध हमेशा अंतिम उपाय होना चाहिए, उनका इरादा शांति और मजबूत आंतरिक सुरक्षा की वकालत करना था.

साभार : जी न्यूज

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