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जानिए आज कहां है रामायण में वर्णित सुमेरु पर्वत

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– सारांश कनौजिया

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में जम्बूद्वीप का नाम आता है. इस क्षेत्र में आज के एशिया का बढ़ा भाग समाहित होने के प्रमाण मिलते हैं. यद्यपि कुछ लोगों का मानना है कि उस समय पृथ्वी पर जहां तक मानव सभ्यता का विकास था, वो पूरा स्थान जम्बूद्वीप के नाम से जाना जाता था.

ब्रह्म पुराण, अध्याय 18, श्लोक 21, 22, 23 में लिखा है कि –

तपस्तप्यन्ति यताये जुह्वते चात्र याज्विन।।

दानाभि चात्र दीयन्ते परलोकार्थ मादरात्॥ 21॥

पुरुषैयज्ञ पुरुषो जम्बूद्वीपे सदेज्यते।।

यज्ञोर्यज्ञमयोविष्णु रम्य द्वीपेसु चान्यथा॥ 22॥

अत्रापि भारतश्रेष्ठ जम्बूद्वीपे महामुने।।

यतो कर्म भूरेषा यधाऽन्या भोग भूमयः॥23॥

अर्थात – इस भूमि में लोग तपश्चर्या करते हैं, यज्ञ करने वाले हवन करते हैं तथा परलोक के लिए आदरपूर्वक दान भी देते हैं। जम्बूद्वीप में सत्पुरुषों के द्वारा यज्ञ भगवान् का यजन हुआ करता है। यज्ञों के कारण यज्ञ पुरुष भगवान् जम्बूद्वीप में ही निवास करते हैं। इस जम्बूद्वीप में भारतवर्ष श्रेष्ठ है। यज्ञों की प्रधानता के कारण इसे (जम्बूद्वीप को) को कर्मभूमि तथा और अन्य द्वीपों को भोग- भूमि कहते हैं।

इस श्लोक से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत जम्बूद्वीप का एक भूभाग था. ऐसे ही उल्लेखों के आधार पर लोग सम्पूर्ण पृथ्वी पर जहां कहीं भी मनुष्य निवास करते थे, उसके जम्बूद्वीप होने का तर्क देते हैं.

यदि ऐतिहासिक ग्रंथों की बात करें, तो सम्राट अशोक के समय के कालखंड में जम्बूद्वीप का उल्लेख मिलता है. 10वीं शदाब्दी के कन्नड़ शिलालेख में भी जम्बूद्वीप लिखा हुआ पाया गया है. कई धार्मिक ग्रंथों में जम्बूद्वीप के छः पर्वतों हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत व श्रृंगवान का उल्लेख मिलता है. ऐसी मान्यता है कि महारज सागर के पुत्रों ने पृथ्वी को खोदने का प्रयास किया, जिससे जम्बूद्वीप के आठ उपद्वीप स्वर्णप्रस्थ, चन्द्रशुक्ल, आवर्तन, रमणक (रमन्त्रा),  मन्दरहरिण, पाञ्चजन्य, सिंहल तथा लंका बन गए.

अब प्रश्न यह उठता है कि जब हम इतने शक्तिशाली थे और विस्तार इतना अधिक था. तो फिर हिन्दू संस्कृति और सभ्यता या जम्बूद्वीप आज इतना छोटा क्यों रह गया. धार्मिक व ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार हमारे यहां बहुत कम ही राजा ऐसे रहे जिनका साम्राज्य पूरे जम्बूद्वीप पर रहा हो. अधिकांश समय जम्बूद्वीप में साम्राज्य के लिए कहीं न कहीं लड़ाई होती रही, जिसका परिणाम हुआ कि यह क्षेत्र बहुत छोटा रह गया अर्थात आज का भारत.

सभी राजाओं ने अपनी परम्पराओं का निर्माण किया. समय के साथ-साथ इनमें अंतर बढ़ता चला गया. धार्मिक मान्यताओं में भी अंतर आने लगा. इसका परिणाम यह हुआ कि प्राचीन जम्बूद्वीप सभ्यता के निशान भी धीरे-धीरे समाप्त होते चले गए. जो राजा अपने जिस पूर्वज के कारण अलग साम्राज्य पाने में सक्षम हुआ, वह अपनी पहचान उसी राजवंश के आधार पर बताने लगा. सभी यह भूल गए कि वो मनु की ही संतान हैं. कुछ की परम्पराएं हिन्दू संस्कृति से इतनी अलग हो गई कि उन्होंने अपनी अलग की संस्कृति का निर्माण किया, जो बाद में उनकी धार्मिक मान्यता भी बन गई. उनकी पूजा पद्धति आदि सब कुछ बिल्कुल भिन्न हो गया.

इन सबके बाद भी जो इतिहास हमें प्रमाणिक रूप से मिलता है, उसके अनुसार भी आज के एशिया के कई देश जैसे मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, इराक, इसराइल, कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, चीन, बर्मा, इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, हिन्दुस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान आदि आते हैं. इनमें से कुछ में आज भी जम्बूद्वीप के निशान मौजूद हैं.

रामायण में स‌ुमेरू पर्वत के बारे में कुझा गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह सुमेरु पर्वत जिस देश में बताया गया है, वह इलावृत है. इलावृत की भूगोलीय संरचना के अनुसार इस समय के रूस, कजाकिस्तान, मंगोलिया और चीन का एक बड़ा हिस्सा इस देश का भाग था. उस समय कैलाश पर्वत के पश्चिम में ईरान से लेकर तेहरान व रूस के मास्को तक का भाग केतुमाल, पूर्व में जावा से चीन तक का क्षेत्र हरिवर्ष के नाम से जाना जाता था.

लेख सन्दर्भ

https://hi.wikipedia.org/

https://aajkaitihas.blogspot.com/

https://sanskritastronomy.com/

 

फोटो साभार

https://hindi.webdunia.com/

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