नई दिल्ली (मा.स.स.). राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने एनआरआई विवाह से जुड़े संभावित जोखिमों के बारे में जानकारी का प्रसार करने और पीड़ितों के लिए उपलब्ध निवारक एवं कानूनी उपायों के संबंध में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से पंजाब के विभिन्न जिलों में ‘एनआरआई विवाह के बारे में जागरूकता कार्यक्रम: क्या करें और क्या न करें, आगे का रास्ता’ नाम से एक श्रृंखला शुरू की। इस अवसर पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा, पंजाब सरकार में एनआरआई मामलों के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल, पंजाबी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अरविंद और राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य सचिव मीता राजीव लोचन उपस्थित थीं।
ये जागरूकता कार्यक्रम पंजाब विश्वविद्यालय के विधि विभाग के साथ मिलकर और एसजीपीसी, पंजाब राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण, पंजाबी विश्वविद्यालय, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों एवं स्थानीय पुलिस के सहयोग से आयोजित किए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य एनआरआई विवाह के पीड़ितों को उनके अधिकारों से परिचित कराना, भारतीय कानून प्रणाली के तहत उपलब्ध उपायों के माध्यम से राहत प्राप्त करने में पीड़ित महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर विचार-विमर्श करना और इस तरह की घटनाओं को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए संभावित समाधान तलाशना है। आयोग ने पीड़ित महिलाओं को राहत प्रदान करने के लिए विभिन्न मशीनरी द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में प्रतिभागियों को सूचित एवं शिक्षित करने के लिए वक्ता के तौर पर न्यायपालिका, प्रशासन एवं शिक्षा जगत के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को आमंत्रित किया।
अपने संबोधन में, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि यह बेहद जरूरी है कि लड़कियों को शिक्षा में विशेष रूप से लड़कों के समान अवसर दिया जाए ताकि वे सशक्त और स्वतंत्र बनें। शर्मा ने कहा, “ये जागरूकता कार्यक्रम तभी सफल होंगे जब परिवार और समाज अपनी मानसिकता में बदलाव लाए। कृपया जागरूक रहें और अपनी बेटियों की शादी करने से पहले सभी उचित जांच करें। इस बुराई को जड़ से उखाड़ना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। राष्ट्रीय महिला आयोग इस संबंध में राज्य भर में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और हम आपसे इस दिशा में साथ मिलकर काम करने का अनुरोध करते हैं।”
इस जागरूकता कार्यक्रम को चार तकनीकी सत्रों में विभाजित किया गया था। पहला सत्र ‘एनआरआई विवाह से पीड़ित महिलाओं को राहत प्रदान करने में न्यायपालिका की भूमिका’ के संबंध में था। दूसरा सत्र ‘पुलिस की भूमिका’ के बारे में था। तीसरा सत्र ‘कानून प्रणाली की भूमिका’ से संबंधित था और चौथा सत्र ‘एनआरआई विवाह के सामाजिक पहलुओं’ के बारे में था।