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नए जिलों के गठन में उलझी गहलोत सरकार

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– रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में शीघ्र ही कुछ और नए जिलों का गठन करने की बात कह कर एक नई चर्चा छेड़ दी है। इसके बाद बहुत बड़ी संख्या में नए जिलों के गठन की मांग होने लगी है। पूर्व आईएएस अधिकारी राम लुभाया के नेतृत्व में एक हाई पावर कमेटी का गठन किया गया है। जिसको प्रदेश में भौगोलिक दृष्टि से नए जिलों के गठन के बारे में सरकार को सुझाव देना है। इस हाई पावर कमेटी का कार्यकाल 21 मार्च 2023 तक निश्चित किया गया है। अगले साल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि चुनाव से पूर्व कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपे। ताकि समय रहते सरकार नए जिलों के गठन की कवायद पूरी कर सके और चुनाव से पहले नए जिले काम करने लगे। राजस्थान में अभी 33 जिले हैं। जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा प्रांत है। राजस्थान का क्षेत्रफल 3 लाख 42 हजार 236 वर्ग किलोमीटर है। जो जर्मनी जैसे देश से भी बड़ा है। क्षेत्रफल में राजस्थान से छोटे मध्य प्रदेश में 55 जिले हैं। जबकि अरुणाचल प्रदेश जैसे छोटे से राज्य में ही जिलों की संख्या 25 हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में 28 जिले हैं।

26 जनवरी 2008 में प्रतापगढ़ को राजस्थान का 33 वां जिला बनाया गया था। उसके बाद पिछले 14 वर्षों में प्रदेश में नए जिले के गठन की मांग लगातार उठती रही है। 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी परमेश चंद्र की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी ने प्रदेश में नए जिले बनाने संबंधी अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी थी। लेकिन सरकार ने तब कोई नया जिला नहीं बनाया था। 1 नवम्बर 1956 को राजस्थान के गठन के वक्त प्रदेश में 26 जिले थे। फिर 15 अप्रैल 1982 को प्रदेश में धोलपुर को 27 वां जिला बनाया गया था। 10 अप्रैल 1991 को एक साथ तीन नये जिले बारां, दौसा व राजसमंद बनाये गये थे। 12 जुलाई 1994 में हनुमानगढ़, 19 जुलाई 1997 में करौली, 26 जनवरी 2008 को प्रतापगढ़ जिला बना था। नए जिलों के गठन के लिए बनाई गई हाई पावर कमेटी के अध्यक्ष राम लुभाया का कहना है कि किन शहरों को नया जिला बनाया जा सकता है इसके लिए विस्तृत अध्ययन चल रहा है। हम अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञों से भी सलाह मशविरा कर रहे हैं। आने वाले समय में जल्दी ही हम रिपोर्ट मुख्यमंत्री गहलोत को सौंप देंग। उसके बाद सरकार अपने स्तर पर निर्णय लेगी कि कहां-कहां नए जिले बनाए जाने उचित है।

राजस्थान में नए जिलों के गठन के लिए जैसे ही हाई पावर कमेटी बनाई गई उसके बाद प्रदेश में करीबन 60 स्थानों से नए जिले बनाने की मांग होने लगी है। कई स्थानों पर तो नए जिलों के गठन को लेकर कांग्रेस पार्टी के ही मंत्री, विधायक आपस में एक दूसरे से तकरार करने लगे हैं। बाड़मेर जिले के कांग्रेसी विधायक मदन प्रजापत ने करीबन डेढ़ वर्ष पहले अपने विधानसभा क्षेत्र बालोतरा को जिला बनाने की मांग को लेकर विधानसभा में ही सौगंध ली थी कि जब तक बालोतरा जिला नहीं बन जाएगा वे जूते नहीं पहनेंगे। बालोतरा अभी तक जिला नहीं बन पाया है। इसलिए विधायक मदन प्रजापत को बिना जूता चप्पल पहने ही घूमना पड़ता है। आगे यदि बालोतरा जिला नहीं बन पाता है तो बेचारे मदन प्रजापत को तो हमेशा नंगे पैर ही घूमना पड़ सकता है।

सीकर जिले के नीमकाथाना को जिला बनाने के लिए कांग्रेस विधायक सुरेश मोदी अपना पूरा दमखम लगाए हुए हैं। वही नीमकाथाना में झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी व खेतड़ी विधानसभा क्षेत्र को शामिल करने के प्रस्ताव पर उदयपुरवाटी के विधायक व सैनिक कल्याण राज्यमंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा की सुरेश मोदी से तकरार हो रही है। गुढ़ा का कहना है कि नीमकाथाना जिला बनने की शर्ते पूरी नहीं करता है। यदि नीमकाथाना जिला बनता है तो उससे पहले मैं उदयपुरवाटी को जिला बनवा दूंगा। इसी तरह मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार व पूर्व मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने भी खेतड़ी क्षेत्र को प्रस्तावित नीमकाथाना जिला में शामिल करने का विरोध किया है। अभी राजस्थान के 33 में से 22 जिलों में करीबन 50 से 60 शहरों को जिला बनाने की मांग हो रही है। नए जिलों के गठन को लेकर इतनी अधिक राजनीति हो रही है कि लोग नए जिलों के गठन के मापदण्ड को भी भूल गए हैं। नए जिलों के गठन के लिए कुछ मापदंड निर्धारित होते हैं। जिनके आधार पर नए जिलों के प्रस्ताव लिए जाते हैं। हालांकि नए जिलों के गठन में सबसे बड़ी भूमिका तो राजनीति की ही रहती है। राजनीतिक फैसलों से कई बार वास्तविक शहर रह जाते हैं और छोटे शहरों को जिला बना दिया जाता है।

राजस्थान में कई जिले तो इतने बड़े हैं कि वहां वास्तव में ही नए जिले बनाने की जरूरत है। जयपुर जिला आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से बहुत बड़ा है। जयपुर से हटाकर दौसा जिला बनाने के बाद भी जयपुर की आबादी तेजी से बढ़ी है। जयपुर जिला मुख्यालय से कोटपूतली की दूरी 100 किलोमीटर से भी अधिक है। वहीं शाहपुरा, फुलेरा भी जयपुर से दूर होने के साथ ही आबादी में भी बढ़ रहे हैं। जयपुर जिले में दिल्ली-जयपुर हाईवे पर स्थित कोटपूतली को जिला बनाने की मांग बहुत पुरानी है। यदि कोटपूतली नया  जिला बनता है तो प्रशासनिक दृष्टि से बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है। कोटपूतली, बहरोड, नीम का थाना, शाहपुरा जैसे क्षेत्र के लोगों को बहुत सुविधा होगी। और सबसे बड़ी बात नीमकाथाना, उदयपुरवाटी के विधायकों का जिले को लेकर चल रहा झगड़ा भी समाप्त हो जाएगा।

अजमेर जिले में ब्यावर को जिला बनाने की मांग बहुत पुरानी है और जायज भी है। इसी तरह जोधपुर जिले में फलौदी को नया जिला बनाया जाता है तो आसपास के दो तीन जिलों के क्षेत्र शामिल हो सकते हैं। बाड़मेर, जैसलमेर जिलों का क्षेत्रफल आज भी बहुत बड़ा है। हालांकि जनसंख्या वहां कम हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित होने के कारण वहां भी नए जिले बनने से प्रशासनिक मजबूती मिल सकती है। नागौर जिले में डीडवाना व कुचामन सिटी को जिला बनाने की मांग की जा रही है जो सर्वथा उपयुक्त भी है। कुचामन सिटी एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन होने के साथ ही बड़ा शहर है जो शिक्षा नगरी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां की आबादी करीबन ढ़ाई लाख से भी अधिक है। जो नागौर जिला मुख्यालय से ज्यादा है।

भरतपुर जिले का बयाना शहर भी जिला बनने की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त है। पहले बयाना के नाम से लोकसभा सीट भी होती थी। श्री गंगानगर, हनुमानगढ़ जिलों के क्षेत्र को मिलाकर एक तीसरा नया जिला बनाया जा सकता है। भारत पाक सीमा पर स्थित होने के कारण नया जिला बनने से प्रशासनिक दृष्टि से बहुत उपयुक्त रहेगा। यदि राजस्थान सरकार नए जिलों के गठन में भौगोलिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक पक्ष अपनाती है तो राजस्थान में सात से आठ नए जिलों का गठन किया जा सकता है। हालांकि चुनावी साल में किसी भी सरकार के लिए नए जिलों का गठन करना मधुमक्खियों के छत्ते को छेड़ने जैसा होता है। जिस क्षेत्र में नए जिलों के गठन की मांग पूरी नहीं होगी वहां की जनता का नाराज होना स्वाभाविक है। ऐसे में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वास्तव में नए जिलों का गठन करते हैं या सिर्फ बयानबाजी तक की सीमित रह जाते हैं। इसका पता तो आने वाले कुछ महीनों में चल ही जाएगा। मगर चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री गहलोत के लिये किसी तरह की जोखिम उठाना मुश्किल ही लगता है।

लेखक राजस्थान के मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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