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बिहार चुनाव 2025: एनडीए का पलड़ा भारी, नीतीश कुमार फिर संभालेंगे सत्ता!

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– डॉ अतुल मलिकराम

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को सभी चुनावों की मां कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं है। 243 सीटों वाले इस महायुद्ध में न सिर्फ केंद्रीय सत्ता का भविष्य दांव पर है, बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक साख, विपक्षी महागठबंधन की एकजुटता और प्राशांत किशोर जैसे नए लेकिन अनुभवी प्लेयर्स का भविष्य भी अधर में लटक रहा है। 7.42 करोड़ मतदाताओं, जिनमें 14 लाख नए वोटरों के बीच यह चुनाव विकास, बेरोजगारी, जाति समीकरण और प्रवासन जैसे मुद्दों पर केंद्रित है। हालिया सर्वे और सोशल मीडिया की हलचल से लगता है कि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन, एकबार फिर भारी पड़ने वाला है। सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से हुआ मेरा निजी सर्वे, जो अक्टूबर के दूसरे हफ्ते तक चला, इसी दिशा में इशारा करता है। इसमें एनडीए को 128-135 सीटें, महागठबंधन को 98-105, जन सुराज को 12-15 और अन्य को 2-4 मिलने का अनुमान है। यदि यह अनुमान, परिणाम में बदले तो नीतीश कुमार एक बार फिर ऐतिहासिक रूप से सत्ता संभालते नजर आएंगे।

उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि एनडीए का विकास मॉडल जैसे सड़कें, बिजली और महिला सशक्तिकरण मतदाताओं को आकर्षित कर रहा है, खासकर महिलाओं और ईबीसी वर्ग में इसका ख़ासा प्रभाव है। इसका सबसे बड़ा कारण एनडीए की एकजुटता को समझा जा सकता है। जहाँ एक तरफ 12 अक्टूबर को एनडीए ने बिना किसी शोर गुल के सीट बंटवारा फाइनल कर लिया, जिसमें भाजपा और जेडीयू को 101-101, चिराग पासवान की एलजेपी (राम विलास) को 29, राष्ट्रीय लोक मोर्चा और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को 6-6 सीटों पर सहमति बनी है। वहीँ, दूरसी तरफ विपक्षी महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर खींच तान जारी है और मंथन का दौर चल रहा है। हालाँकि एनडीए पक्ष मजबूत होने के अनुमान के साथ-साथ कुछ चुनौतियां भी है, जैसे नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र और कई मौकों पर मंच पर दिखती उनकी अटपटी हरकतें, जो विरोधियों के लिए चुटकी लेने का अवसर तो पैदा करती ही हैं, साथ ही उनकी राजनीतिक छवि भी धूमिल करती हैं।

दूसरी ओर महागठबंधन का सीएम फेस बने हुए तेजस्वी यादव का युवाओं के साथ जुड़ाव और बेरोजगारी ख़त्म करने के दावों का भी गहरा असर देखने को मिल सकता है। मेरे अनुमान में आरजेडी को 60-65 सीटें मिल सकती हैं, लेकिन मुस्लिम-यादव वोट बैंक के अलावा ब्राह्मण और अन्य वर्गों से निराशा हाथ लगने की उम्मीद भी है, क्योंकि भूरा बाल साफ़ करो जैसे नारों का सीधा असर वोट शेयरिंग पर पड़ने वाला है। हालाँकि एआईएमआईएम की सीमांचल न्याय यात्रा और वीआईपी के साथ गठजोड़ के प्रयास, विपक्ष को मजबूत कर सकते हैं, लेकिन आंतरिक कलह जैसे कांग्रेस का असंतोष एक बड़ी बाधा बना हुआ है। वहीँ प्राशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी एक्स-फैक्टर साबित हो सकती है। यूं तो जेवीसी पोल में 10-11% वोट शेयर के साथ जन सुराज को 4-6 सीटें मिलने का अनुमान है, लेकिन मेरा सर्वे 12-15 सीटों का अनुमान लगा रहा है। याद रहे कि रोमांचक तरीके से किशोर ने रघोपुर से कैंपेन शुरू किया है, और तेजस्वी को सीधी चुनौती देने की कोशिश की है।

कुल मिलाकर देखें तो सर्वे एनडीए को बहुमत देता है और यदि नतीजे 128-135 सीटों के आसपास रहे, तो नीतीश कुमार पांचवीं बार सीएम बनेंगे, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा। लेकिन बिहार की राजनीति अप्रत्याशित है, जहां जाति, विकास और युवा असंतोष अंतिम क्षण में बाजी पलटने की ताकत रखते हैं। ऐसे में बिहार चुनाव में क्या नीतीश का सुशासन और महिला सशक्तिकरण पर फोकस बरकरार रहेगा, या तेजस्वी का नौकरी का वादा हावी होगा, ये तो 14 नवंबर को ही साफ होगा।

लेखक राजनीतिक रणनीतिकार हैं.

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