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नरेंद्र मोदी ने कूनो नेशनल पार्क मोनी में चीतों को छोड़ने पर किया संबोधित

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भोपाल (मा.स.स.). मानवता के सामने ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं जब समय का चक्र, हमें अतीत को सुधार कर नए भविष्य के निर्माण का मौका देता है। आज सौभाग्य से हमारे सामने एक ऐसा ही क्षण है। दशकों पहले, जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी, आज हमें उसे फिर से जोड़ने का मौका मिला है।  आज भारत की धरती पर चीता लौट आए हैं। और मैं ये भी कहूँगा कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृति प्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो उठी है। मैं इस ऐतिहासिक अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई देता हूँ।

विशेष रूप से मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहाँ की सरकार का भी धन्यवाद करता हूँ जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं। मुझे विश्वास है, ये चीते न केवल प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का बोध कराएंगे, बल्कि हमारे मानवीय मूल्यों और परम्पराओं से भी अवगत कराएंगे। जब हम अपनी जड़ों से दूर होते हैं तो बहुत कुछ खो बैठते हैं। इसलिए ही आजादी के इस अमृतकाल में हमने ‘अपनी विरासत पर गर्व’ और ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ जैसे पंच प्राणों के महत्व को दोहराया है। पिछली सदियों में हमने वो समय भी देखा है जब प्रकृति के दोहन को शक्ति-प्रदर्शन और आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया था। 1947 में जब देश में केवल आखिरी तीन चीते बचे थे, तो उनका भी साल के जंगलों में निष्ठुरता और गैर-ज़िम्मेदारी से शिकार कर लिया गया। ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ।

आज आजादी के अमृतकाल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है। अमृत में तो वो सामर्थ्य होता है, जो मृत को भी पुनर्जीवित कर देता है। मुझे खुशी है कि आजादी के अमृतकाल में कर्तव्य और विश्वास का ये अमृत हमारी विरासत को, हमारी धरोहरों को,  और अब चीतों को भी भारत की धरती पर पुनर्जीवित कर रहा है। इसके पीछे हमारी वर्षों की मेहनत है। एक ऐसा कार्य, राजनैतिक दृष्टि से जिसे कोई महत्व नहीं देता, उसके पीछे भी हमने भरपूर ऊर्जा लगाई। इसके लिए एक विस्तृत चीता एक्शन प्लान तैयार किया गया। हमारे वैज्ञानिकों ने लंबी रिसर्च की, साउथ अफ्रीकन और नामीबियाई एक्स्पर्ट्स के साथ मिलकर काम किया। हमारी टीम्स वहाँ गईं, वहाँ के एक्स्पर्ट्स भी भारत आए। पूरे देश में चीतों के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र के लिए वैज्ञानिक सर्वे किए गए,  और तब कुनो नेशनल पार्क को इस शुभ शुरुआत के लिए चुना गया। और आज, हमारी वो मेहनत,  परिणाम के रूप में हमारे सामने है।

ये बात सही है कि, जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है। विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं। कुनो नेशनल पार्क में जब चीता फिर से दौड़ेंगे, तो यहाँ का grassland eco-system फिर से restore होगा, bio-diversity और बढ़ेगी। आने वाले दिनों में यहाँ eco-tourism भी बढ़ेगा, यहाँ विकास की नई संभावनाएं जन्म लेंगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। लेकिन  मैं आज आपसे, सभी देशवासियों से एक आग्रह भी करना चाहता हूं। कुनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों को देखने के लिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा, इंतजार करना होगा। आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्र से अनजान हैं। कुनो नेशनल पार्क को ये चीते अपना घर बना पाएं,  इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा। अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन्स पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है।  हमें अपने प्रयासों को विफल नहीं होने देना है।

दुनिया आज जब  प्रकृति और पर्यावरण की ओर देखती है तो sustainable development की बात करती है। लेकिन प्रकृति और पर्यावरण, पशु और पक्षी, भारत के लिए ये केवल sustainability और security के विषय नहीं हैं। हमारे लिए ये हमारी sensibility और spirituality का भी आधार हैं। हम वो लोग हैं जिनका सांस्कृतिक अस्तित्व ‘सर्वम् खल्विदम् ब्रह्म’  के मंत्र पर टिका हुआ है। अर्थात्, संसार में पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, जड़-चेतन जो कुछ भी है, वो ईश्वर का ही स्वरूप है,  हमारा अपना ही विस्तार है। हम वो लोग हैं जो कहते हैं-

‘परम् परोपकारार्थम्

यो जीवति स जीवति’।

अर्थात्, खुद के फायदे को ध्यान में रखकर जीना वास्तविक जीवन नहीं है। वास्तविक जीवन वो जीता है जो परोपकार के लिए जीता है। इसीलिए, हम जब खुद भोजन करते हैं, उसके पहले पशु-पक्षियों के लिए अन्न निकालते हैं। हमारे आसपास रहने वाले छोटे से छोटे  जीव की भी चिंता करना हमें सिखाया जाता है। हमारे संस्कार ऐसे हैं कि कहीं अकारण किसी जीव का जीवन चला जाए, तो हम अपराधबोध से भर जाते हैं। फिर किसी पूरी जीव-जाति का अस्तित्व ही अगर हमारी वजह से मिट जाए, ये हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं?

आप सोचिए, हमारे यहां कितने ही बच्चों को ये पता तक नहीं होता है कि जिस चीता के बारे में सुनकर वो बड़े हो रहे हैं, वो उनके देश से पिछली शताब्दी में ही लुप्त हो चुका है। आज अफ्रीका के कुछ देशों में, ईरान में चीता पाए जाते हैं,  लेकिन भारत का नाम उस लिस्ट से बहुत पहले हटा दिया गया था। आने वाले वर्षों में बच्चों को इस विडम्बना से नहीं गुजरना पड़ेगा।  मुझे विश्वास है, वो चीता को अपने ही देश में, कुनो नेशनल पार्क में दौड़ता देख पाएंगे। चीता के जरिए आज हमारे जंगल और जीवन का एक बड़ा शून्य भर रहा है। आज 21वीं सदी का भारत, पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि Economy और Ecology कोई विरोधाभाषी क्षेत्र नहीं है। पर्यावरण की रक्षा के साथ ही, देश की प्रगति भी हो सकती है, ये भारत ने दुनिया को करके दिखाया है। आज एक ओर हम विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं, तो साथ ही देश के वन-क्षेत्रों का विस्तार भी तेजी से हो रहा है।

2014 में हमारी सरकार बनने के बाद से देश में करीब-करीब ढाई सौ नए संरक्षित क्षेत्र जोड़े गए हैं। हमारे यहाँ एशियाई शेरों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है। आज गुजरात देश में एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है। इसके पीछे दशकों की मेहनत, रिसर्च बेस्ड policies और जन-भागीदारी की बड़ी भूमिका है। मुझे याद है, हमने गुजरात में एक संकल्प लिया था- हम जंगली जीवों के लिए सम्मान बढ़ाएँगे, और संघर्ष घटाएंगे। आज उस सोच का प्रभाव परिणाम के रूप में हमारे सामने है। देश में भी, tigers की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था हमने उसे समय से पहले हासिल किया है। असम में एक समय, एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा था, लेकिन आज उनकी भी संख्या में वृद्धि हुई है। हाथियों की संख्या भी पिछले वर्षों में बढ़कर 30 हजार से ज्यादा हो गई है।

देश में प्रकृति और पर्यावरण के दृष्टिकोण से जो एक और बड़ा काम हुआ है, वो है wetland का विस्तार! भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों का जीवन और उनकी जरूरतें wetland ecology पर निर्भर करती हैं। आज देश में 75 wetlands को रामसर साइट्स के रूप में घोषित किया गया है, जिनमें 26 साइट्स पिछले 4 वर्षों में ही जोड़ी गई हैं। देश के इन प्रयासों का प्रभाव आने वाली सदियों तक दिखेगा, और प्रगति के नए पथ प्रशस्त करेगा।

आज हमें वैश्विक समस्याओं को, समाधानों को और यहाँ तक कि अपने जीवन को भी holistic way में देखने की जरूरत है। इसीलिए, आज भारत ने विश्व के लिए LiFE यानी, Lifestyle for the Environment जैसा जीवन-मंत्र दिया है। आज इंटरनेशनल सोलर अलायंस जैसे प्रयासों के द्वारा भारत दुनिया को एक मंच दे रहा है, एक दृष्टि दे रहा है। इन प्रयासों की सफलता दुनिया की दिशा और भविष्य तय करेगी। इसलिए, आज समय है कि हम ग्लोबल चुनौतियों को दुनिया की नहीं अपनी व्यक्तिगत चुनौती भी मानें। हमारे जीवन में एक छोटा सा बदलाव पूरी पृथ्वी के भविष्य के लिए एक आधार बन सकता है। मुझे विश्वास है, भारत के प्रयास और परम्पराएँ इस दिशा में पूरी मानवता का पथप्रदर्शन करेंगी, बेहतर विश्व के सपने को ताकत देंगी।

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