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अपने ही बनाये इंद्रजाल में फंस गए गहलोत

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– रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजनीति का एक ऐसा जादूगर माना जाता है जो अपने राजनीतिक कुशलता के बल पर अंतिम समय में बिगड़ी बाजी को बना सकते हैं। अपने राजनीतिक सूझबूझ व कौशल के बल पर ही अशोक गहलोत ने राजनीति के मैदान में एक लंबी पारी खेली है। उसी की बदौलत वो शीघ्र ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने वाले हैं। मुख्यमंत्री, केंद्र में मंत्री, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तो बहुत से नेता बनते रहे हैं। मगर कांग्रेस जैसी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना अपने आप में बहुत बड़े गौरव की बात है।

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा अशोक गहलोत का नाम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुना जाना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए भी फक्र की बात है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर अशोक गहलोत, पंडित जवाहरलाल नेहरू, मती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी जैसे दिग्गज नेताओं की कतार में शामिल हो जाएंगे।

मगर कहते हैं ना की राजनीतिक को संभावनाओं का खेल माना जाता है। इसमें कब क्या हो जाए कोई कह नहीं सकता है। ऐसा ही वाकिया पिछले दो दिनों से राजस्थान में घट रहा है। अशोक गहलोत के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले उनको मुख्यमंत्री का पद छोड़ना था। इस बाबत उनकी कांग्रेस आलाकमान के नेताओं से बात हो चुकी थी। उनके द्वारा निर्धारित किए गए समय पर ही कांग्रेस आलाकमान ने राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मलिकार्जुन खड़गे व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व राजस्थान के प्रभारी अजय माकन को पर्यवेक्षक बनाकर जयपुर भेजा था। पर्यवेक्षकों को जयपुर में सभी विधायकों से व्यक्तिगत बात करके अशोक गहलोत के स्थान पर नए नेता के नाम की रायशुमारी करनी थी।

कांग्रेस आलाकमान द्वारा भेजे गए दोनों पर्यवेक्षकों के जयपुर आने के बाद पूरा खेल ही बदल गया। मुख्यमंत्री आवास पर पहले से निर्धारित विधायक दल की मीटिंग में गहलोत समर्थक एक भी विधायक नहीं पहुंचा। बल्कि उन्होंने अनाधिकृत रूप से स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर एक समानांतर बैठक का आयोजन किया। जिसमें गहलोत समर्थकों ने एक सुर में कांग्रेस आलाकमान के पर्यवेक्षकों द्वारा आयोजित मीटिंग का बहिष्कार करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि यदि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो वह पार्टी से इस्तीफा दे देंगे। शांति धारीवाल के आवास पर उपस्थित करीबन 90 विधायकों ने अपने त्यागपत्र विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के घर जाकर उनको सौंप दिये।

उधर पार्टी पर्यवेक्षक खड़गे व माकन मुख्यमंत्री आवास पर देर रात तक विधायकों के आने का इंतजार करते रहे। मगर उन्हें वहां से खाली हाथ ही लौटना पड़ा। अगले दिन उस होटल में जहां दोनों पर्यवेक्षक ठहरे हुए थे वहां गहलोत समर्थक विधायक को की तरफ से राजस्थान सरकार में वरिष्ठ मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी व प्रताप सिंह खाचरियावास के रूप में एक प्रतिनिधिमंडल मिला और उनके सामने अपनी तीन मांगे रखी। जिनमें पहली सचिन पायलट या उनके समर्थक किसी भी विधायक को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाए। दूसरी मांग जो 102 विधायक सचिन पायलट की बगावत के समय अशोक गहलोत के साथ थे उनमें से ही किसी विधायक को मुख्यमंत्री बनाया जाए। तीसरी मांग विधायक दल की बैठक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन होने के बाद 18 अक्टूबर के बाद बुलाई जाए।

जयपुर से दिल्ली रवाना होने से पूर्व राजस्थान के प्रभारी महासचिव व पर्यवेक्षक अजय माकन ने पत्रकारों को बताया कि गहलोत गुट की तरफ से जो तीन मंत्री उनसे मिलने के लिए आए थे। उन्होंने अपनी 3 सूत्री मांगों के बारे में चर्चा की तो मैंने उनको कहा कि हम पार्टी आलाकमान के निर्देश पर जयपुर आए हैं और हम दोनों नेता एक-एक कर सभी विधायकों की राय जानना चाहते हैं। उस पर तीनों नेताओं ने कहा कि हमारे समर्थक विधायक व्यक्तिगत ना मिलकर समूह में मिलेंगे। इस पर माकन ने कहा कि हम किसी की शर्तों पर रायशुमारी नहीं करेंगे। मौजूदा हालात की जो रिपोर्ट है वह पार्टी अध्यक्ष को सौंप देंगे। पत्रकारों के सवालों के जवाब में माकन ने कहा कि गहलोत समर्थक नेताओं द्वारा किया जा रहा बर्ताव प्रथम दृष्टया पार्टी अनुशासनहीनता का है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 2018 के बाद से ही सचिन पायलट को साइड लाइन करने में लगे हुए हैं। 2020 में तो ऐसी परिस्थितियां बना दी गई थी कि मजबूर होकर सचिन पायलट को पार्टी से बगावत तक करनी पड़ी थी। मगर बाद में आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद स्थितियां सामान्य हो गई थी और सचिन पायलट भी पार्टी में पहले की तरह ही काम करने लगे थे। लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत को जब भी मौका मिलता वह पायलट को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे थे।

हाल ही में जब गहलोत का नाम पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए सामने आया तो उनका पूरा प्रयास था कि वो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ ही मुख्यमंत्री का काम भी करते रहें। मगर कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत कड़ाई से लागू करने की बात पर उन्होंने अपने समर्थक किसी विधायक को मुख्यमंत्री बनाने के प्रयास शुरू कर दिए। जब उनको लगा कि कांग्रेस आलाकमान 2020 में सचिन पायलट को आगे चलकर मुख्यमंत्री बनाने का वायदा अब पूरा कर सकता है तो उन्होंने अपने समर्थकों से एक नया राजनीति खेल करवा दिया।

राजस्थान कांग्रेस में चल रहे घटनाक्रम से पूरे देश में कांग्रेस की छवि पर विपरीत असर पड़ रहा है। एक तरफ तो राहुल गांधी हजारों किलोमीटर की भारत जोड़ो पदयात्रा कर कांग्रेस का खोया जनाधार फिर से पाने के लिए लगातार पसीना बहा कर मेहनत कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ अशोक गहलोत जैसा बड़ा नेता जो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहा है। उनके द्वारा ऐसी घटना को अंजाम देना सीधे आलाकमान को चुनौती देने के समान है। गहलोत समर्थक लगातार कह रहे हैं कि हम कांग्रेस आलाकमान के हर निर्देश को मानेंगे। लेकिन आलाकमान के भेजे हुए पर्यवेक्षकों से उन्होंने मिलना तक गवारा नहीं समझा।

अपने समर्थक विधायकों से पायलट का विरोध करवा रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इतना आगे बढ़ गए कि उन्होंने पायलट के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व को भी चुनौती दे डाली। उनको ध्यान ही नहीं रहा कि उनके द्वारा की जा रही कार्यवाही का खामियाजा कांग्रेस पार्टी को पूरे देश में उठाना पड़ेगा। आगे हर कोई भी नेता पार्टी से बगावत करने लगेगा। हर कोई आलाकमान को आंख दिखाने लगेगा।

मुख्यमंत्री गहलोत जो स्वयं कुछ दिनों बाद पार्टी के आलाकमान बनने जा रहे हैं। उन्होंने ही एक ऐसी परिपाटी डाल दी है जो अध्यक्ष बनने पर आगे चलकर उनके लिए ही भारी साबित हो सकती है। बहरहाल खुद को राजनीति का जादूगर बताने वाले गहलोत के मौजूदा प्रदर्शन को देख कर तो लगता है कि राजनीति के जादूगर खुद के बनाए ही इंद्रजाल में फंस कर रह गए हैं।

लेखक राजस्थान के मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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