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महारानी तपस्विनी उपाख्य माताजी : क्रांति से अध्यात्म तक

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महारानी तपस्विनी का जन्म 1842 में हुआ था। वो महारानी लक्ष्मीबाई की भतीजी और बेंगलुरु के जमींदार नारायण राव की बेटी थीं। उनके बचपन का नाम सुनंदा था। बचपन में ही उनके पति की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद उन्होंने अपना ध्यान ईश्वर की पूजा में लगा लिया था, लेकिन साथ ही वो शस्त्रों का अभ्यास भी नियमित रूप से करती थीं। अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त उनका सारा कार्यभार महारानी तपस्विनी ने ही संभाला था। वीरता के साथ ही ईश्वर के प्रति समर्पण ने उन्हें माता जी के नाम से प्रसिद्ध कर दिया था।

जब रानी लक्ष्मीबाई ने स्वतंत्रता का बिगुल फूंका, तो महारानी तपस्विनी भी सक्रिय होकर अंग्रेजों से लोहा लेने लगी। 1857 की क्रांति के असफल हो जाने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और तिरुचिरापल्ली की जेल में रखा गया था। यहां उन्होंने अपने अध्यात्म ज्ञान से ऐसे अलौकिक वातावरण का निर्माण किया कि सभी उन्हें एक सन्यासिन की तरह ही देखने लगे। बाल विधवा होने के कारण उनका अधिकांश समय बचपन से ही चंडी पाठ और धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में ही व्यतीत होता था।

अपने कारावास के समय उन्होंने इसी ज्ञान की वर्षा की। सभी उनकी सन्यासी प्रवृत्ति को देखकर उन्हें माता तपस्विनी बुलाने लगे। वो किसी सन्यासिनी की तरह ही धार्मिक प्रवचन भी देती थीं। इसी कारण अंग्रेजों ने तपस्विनी को कुछ समय बाद रिहा कर दिया। यहां से निकलने के बाद उन्होंने दो कार्य किये। पहला संस्कृत और योग की शिक्षा प्राप्त की और दूसरा वो भी नानासाहब पेशवा की तरह ही नेपाल चली गईं। किन्तु जिसके मन में देशभक्ति भरी हो, वो कहीं भी रहे उसे चिंता अपनी मातृभूमि की ही रहती है। यहां उन्होंने नेपाल के शासकों की सहायता से नाम बदलकर क्रांतिकारियों के लिए गोला-बारूद बनाना शुरू कर दिया।

धन के प्रलोभन में आकर एक व्यक्ति ने माताजी के बारे में सभी जानकारी अंग्रेजों को दे दी। इस कारण उन्हें नेपाल छोड़ना पड़ा। वो कोलकाता आ गईं। यहां उन्होंने ‘महाकाली पाठशाला’ खोलकर बालिकाओं को देश के लिए तैयार करने का कार्य शुरू कर दिया। उनके इसी कार्य से प्रभावित होकर 1902 में बाल गंगाधर तिलक ने कोलकाता में माताजी से भेंट की थी। तिलक के संपर्क में आने के बाद 1905 में माताजी ने बंग-भंग के विरुद्ध आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। 1907 में कोलकाता में ही माताजी ने अंतिम सांस ली।

संदर्भ : भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि), पृष्ठ : 28

फोटो साभार : भारत माता मंदिर

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