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गोंडा में ट्रेन के 8 डिब्बे पटरी से उतरने के कारण 4 की मौत, 20 घायल

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लखनऊ. यूपी के गोंडा में चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसे की शिकार हो गई है। बताया जा रहा है कि ट्रेन के 8 डिब्बे पटरी से उतर गए। हादसे में चार लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि करीब 20 लोग घायल हैं। रेलवे और जिला प्रशासन की रिलीफ एंड रेस्क्यू टीम तुरंत मौके पर पहुंच गई और घायलों को नजदीक के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने हादसे का संज्ञान लेते हुए गोंडा और आसपास के जिलों के अधिकारियों को हादसे के पीड़ित लोगों को हर मुमकिन मदद दिलाने का भरोसा दिलाया है।

हादसे की वजह क्या?

एक्सीडेंट की वजह जांच के बाद क्लियर होगी लेकिन शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे ट्रैक पर बाढ़ का पानी भरा होने की वजह से ये हादसा हुआ। यानी एक तरह से इस हादसे को ह्यूमन एरर (मानवीय गलती) कहा जा सकता है। ये अपने आप में काफी हैरान करने वाला है क्योंकि हर साल मॉनसून के सीज़न में रेलवे ट्रैक पर इसी तरह पानी भरा रहता है। ऐसे में रेलवे के कर्मचारी ट्रैक का इंस्पेक्शन करते हैं और उसके बाद ही ट्रेन को आगे जाने का सिग्नल देते हैं।

डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस में थे LHB कोच

वहीं, आपको बता दें कि गोंडा में जो ट्रेन हादसे का शिकार हुई उसके कोच LHB थे जिसकी वजह से जान माल का ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। इन लाल रंग कोच की खासियत होती है कि दुर्घटना होने के बाद ये कोच एक दूसरे के ऊपर नहीं चढ़ते हैं बल्कि पलट जाते हैं। इसकी वजह से नुकसान कम होता है। भारतीय रेलवे में 2 तरह के कोच सेवाएं दे रहे हैं। ये ICF (Integral Coach Factory) और LHB (Linke Hofmann Busch) हैं।

क्या होता है LHB कोच?

  • ICF कोच की तुलना में LHB कोच ज्यादा बेहतर एवं सुरक्षित होते हैं।
  • एलएचबी कोच एंटीटेलीस्कोपिक डिजाइन के तहत तैयार किए गए हैं, जिसका मतलब है कि वे एक-दूसरे से टकराते नहीं हैं और आसानी से नहीं गिरते हैं।
  • एलएचबी कोच स्टेनलेस स्टील से बने होते हैं, जो दुर्घटना होने की स्थिति में ठोकर सहने की क्षमता को बढ़ा देते हैं। इसके अलावा यह उन्हें हल्का भी बनाता है और वहन क्षमता बढ़ाता है।
  • एलएचबी कोचों में कपलिंग सिस्टम दो कोचों के बीच सापेक्ष गति को कम करता है और दुर्घटना की स्थिति में एक कोच को दूसरे कोच पर चढ़ने से रोकता है।
  • एलएचबी कोच की औसत गति 160 किमी प्रति घंटे और शीर्ष गति 200 किमी प्रति घंटा है।

क्या होता है ICF कोच?

  • इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) कोच लोहे के बने होते हैं, इस वजह से भारी होते हैं।
  • इसमें एयर ब्रेक  का प्रयोग होता है। इसके अलावा इसके रखरखाव में भी रेलवे का ज़्यादा खर्चा होता है।
  • इन कोच में अंदर बर्थ की संख्या कम होती है, लेकिन एक ट्रेन में मैक्स‍िमम 24 कोच लग सकते हैं, जिससे एक ट्रेन में 3 अनरिजर्व्ड कोच लगाए जाते थे।
  • इसमें सफर करने के दौरान कोच में कंपन ज्यादा होता है। साथ ही ट्रेन की स्पीड के साथ शोर भी काफी होता है।
  • दुर्घटना के बाद इसके डिब्बे एक के ऊपर एक चढ़ जाते हैं, क्योंकि इसमें Dual Buffer सिस्टम होता है।
  • ICF कोच को 18 महीनों में एक बार आवधिक ओवरहाल की भी आवश्यकता होती है। इसकी औसत गति 70 किमी प्रति घंटा और शीर्ष गति 140 किमी प्रति घंटा होती है।

कोच के इस्तेमाल की अवधि

आईसीएफ कोच स्टील से बने होते हैं और उनकी कोडल लाइफ 25 वर्ष होती है इसलिए इस अवधि तक इनका उपयोग यात्री बोगी के तौर पर किया जाता और फिर इन्हें सेवा से हटा दिया जाता है। वहीं, एलएचबी कोच स्टेनलेस स्टील से बने होते हैं और इनकी कोडल लाइफ 30 वर्ष होती है। मौजूदा समय में ज्यादातर ट्रेनों में लाल रंग में दिखने वाले LHB कोच होते हैं। मेल एक्सप्रेस, सुपरफास्ट, राजधानी, शताब्दी, दूरतों और तेजस जैसी तमाम ट्रेनों में एलएचबी कोच लगे हुए हैं। 30 साल की अवधि पूरी होने पर इन्हें भी पैसेंजर गाड़ियों से हटा दिया जाता है।

साभार : इंडिया टीवी

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