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पंजाब में अकेले चुनाव लड़ेगी भाजपा, नहीं हो सका अकाली दल से गठबंधन

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चंडीगढ़. पंजाब में भाजपा अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेगी। इसका ऐलान करते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि लोगों की राय के बाद यह फैसला लिया गया है। वर्करों और नेताओं की भी यही राय है। पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं। पंजाब के भविष्य, जवानी-किसानी और व्यापारियों एवं पिछड़े वर्ग की बेहतरी के लिए यह फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 साल में किसानों की फसल का एक-एक दाना उठाया गया है। करतारपुर कॉरिडोर की सदियों की मांग पीएम मोदी ने पूरी की। बता दें कि पहले पंजाब में अकाली दल से भाजपा के दोबारा गठजोड़ की चर्चा थी। भाजपा के सीनियर नेता भी इसके पक्ष में थे। इसके बावजूद यह बातचीत बन नहीं पाई।

शाह ने कहा था- भाजपा का एजेंडा क्लियर, साथी आते-जाते हैं

पंजाब में भाजपा-अकाली दल गठबंधन को लेकर चल रही अटकलों पर देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में कहा था, “अकाली दल के साथ अभी कुछ तय नहीं हुआ है। BJP ने आज तक अपने किसी भी साथी को जाने के लिए नहीं कहा। देश में आइडियोलॉजी के अनुसार सभी पार्टियां अपना पॉलिटिकल निर्णय करें, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। BJP अपने एजेंडा, अपने प्रोग्राम और आइडियोलॉजी के अनुसार अपनी जगह स्थिर है। कई साथी आते हैं, चले जाते हैं।”

2020 में किसान आंदोलन के बाद अकाली दल हुआ अलग

2020 में तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए किसानों ने आंदोलन शुरू किया था। केंद्र में अकाली दल व भाजपा में गठजोड़ के कारण किसानों का गुस्सा स्थानीय नेताओं पर निकल रहा था। किसानों ने भाजपा नेताओं के साथ-साथ अकाली दल का बायकॉट भी करना शुरू कर दिया था। इस बीच 18 सितंबर 2020 को बादल परिवार की बहू हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद अकाली दल ने भाजपा से अलग होने की घोषणा कर दी थी।

1996 में अकाली दल ने मोगा डेक्लरेशन किया था साइन

अकाली दल व भाजपा का रिश्ता काफी पुराना है। NDA के विस्तार में अकाली दल पहला संगठन था, जिसने भाजपा के साथ हाथ मिलाया था। 1992 तक BJP और अकाली दल अलग-अलग चुनाव लड़ते थे। चुनावों के बाद अकाली दल BJP को समर्थन देती थी। 1996 में अकाली दल ने ‘मोगा डेक्लरेशन’ पर साइन किया था और 1997 में पहली बार एक साथ साथ में चुनाव लड़ा। मोगा डेक्लरेशन में BJP के साथ तीन बातों पर जोर दिया गया था। जिसमें पहली पंजाबी आइडेंटिटी थी, दूसरा आपसी सौहार्द और तीसरा राष्ट्रीय सुरक्षा। 1984 के दंगों के बाद देश में पैदा हुए माहौल के कारण दोनों पार्टियां साथ आई थीं।

2014 के बाद गिरने लगा अकाली दल का ग्राफ

2012 में अकाली दल-भाजपा ने लगातार दूसरी बार पंजाब में सरकार बनाई थी। प्रकाश सिंह बादल ने खुद कमान संभाली और एक बार फिर पंजाब के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनके बेटे सुखबीर बादल ने खुद को हर काम में आगे रखा। इसके बाद से ही अकाली दल व भाजपा के क्षेत्रीय नेताओं में दूरियां बननी शुरू हो गई थी।

अकाली दल हर बार खुद को आगे रखने लगा तो क्षेत्रीय नेता इससे नाराज रहने लगे। 2014 में लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई। अकाली दल व भाजपा के बीच बड़े नेताओं की नाराजगी का असर दिखा। पंजाब में अकाली दल को सत्ता में रहते हुए भी नुकसान हुआ। 2009 के परिणामों में 8 सीटें थी, जो 2014 में 4 पर सिमट गईं। भाजपा भी 3 से 2 पर आ गई थी। भाजपा नेता सरेआम अकाली दल से गठजोड़ तोड़ने की मांग करने लगे थे।

साभार : दैनिक भास्कर

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