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6 अक्टूबर 1983 को पंजाब में लगा था राष्ट्रपति शासन

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6 अक्टूबर, 1983 को पंजाब में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। यह निर्णय राज्य में बिगड़ती कानून-व्यवस्था और अलगाववादी गतिविधियों में वृद्धि के कारण लिया गया था। यह राष्ट्रपति शासन 29 सितंबर, 1985 तक लागू रहा, जो पंजाब के इतिहास में अस्थिरता के सबसे गंभीर दौर में से एक था।

इसके कारणों को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। 1980 के दशक की शुरुआत में, पंजाब में राजनीतिक और सांप्रदायिक तनाव चरम पर था। खालिस्तान आंदोलन के नाम पर सिख उग्रवाद अपनी जड़ें जमा रहा था। हिंसक गतिविधियाँ, हत्याएं, और सांप्रदायिक लक्षित हमले नियमित हो गए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह से विफल रही थी। पुलिस का मनोबल गिरा हुआ था, और उग्रवादी खुलेआम हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे थे।

राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रमुख कारणों में 5 अक्टूबर, 1983 को हुई एक भीषण घटना भी थी। कपूरथला जिले के ढिलवां में सिख आतंकवादियों ने एक बस का अपहरण कर लिया और उसमें सवार छह हिंदू यात्रियों की गोली मारकर हत्या कर दी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया और केंद्र सरकार को राज्य सरकार को बर्खास्त करने के लिए मजबूर कर दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने राज्य की संवैधानिक मशीनरी की विफलता को देखते हुए दरबारा सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया और राज्यपाल के माध्यम से सीधा नियंत्रण स्थापित किया।

दरबारा सिंह के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को भंग कर दिया गया और विधानसभा को निलंबित कर दिया गया (बाद में इसे भंग कर दिया गया)। राज्य का प्रशासन राज्यपाल को सौंप दिया गया, जिन्होंने केंद्र सरकार के निर्देश पर काम किया। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बावजूद, आतंकवाद की समस्या कम नहीं हुई, बल्कि आने वाले वर्षों में और भी गंभीर हो गई। इसके बाद मार्च 1984 तक हिंसक घटनाओं में मरने वालों की संख्या में और वृद्धि हुई। राष्ट्रपति शासन का यह दौर ही आगे चलकर 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) की पृष्ठभूमि बना, जो स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए चलाया गया एक बड़ा सैन्य ऑपरेशन था।

यह राष्ट्रपति शासन 1 वर्ष 11 महीने 19 दिन (10 अक्टूबर, 1983 से 29 सितंबर, 1985) तक चला। हालांकि, यह पंजाब में राष्ट्रपति शासन की सबसे लंबी अवधि नहीं थी; 1987 से 1992 तक राज्य लगातार लगभग पाँच वर्षों तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा था।

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