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अकबर : महान शासक या काफिरों का कातिल

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मुग़ल शासक अकबर को कई लोग महान और उदारवादी मानते हैं। उसे महान शासक की उपाधि भी दी जाती है। इसके पीछे के कुछ कारणों में उसका जजिया कर को समाप्त करने जैसे निर्णयों को उदाहरण बताया जाता है। लेकिन क्या अकबर एक महान शासक था या फिर वो क्रूर और काफिरों (गैर मुसलमानों) का हत्यारा था। अकबर की महानता के किस्से तो हर किसी को सुनाये, दिखाए और पढ़ाये जाते हैं, लेकिन उसका दूसरा पक्ष बहुत कम ही लोगों को पता है।

वर्ष 1556 में अकबर के लिए उनके गुरु और संरक्षक बैरम खान ने पानीपत का दूसरा युद्ध लड़ा। यह युद्ध हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) के विरुद्ध लड़ा गया। युद्ध के दौरान हेमू पहले घायल हो गया। अकबर इस समय लगभग 14 वर्ष का था। इसलिए पूरा युद्ध बैरम खान ने लड़ा और बाद में घायल हेमू को अकबर के सामने लाया। उसने अकबर से कहा कि वो हेमू का सर काटे, जिससे उसे गाजी की उपाधि मिल जाए। समकालीन लेखक मुहम्मद आरिफ कंधारी के अनुसार ‘बैरम खान के निर्देश पर अकबर ने निहत्थे बंदी हेमू का सर काट दिया’। गाजी की उपाधि गैर मुस्लिमों की हत्या करने पर मिलती है क्योंकि इस्लाम की एक अवधारणा के अनुसार काफिरों को मारना धार्मिक कार्य है। इसी घटना के बाद अकबर को प्रसिद्धि मिलनी शुरू हुई।

उसकी क्रूरता का एक और उदाहरण मिलता है। जिस बैरम खान ने अकबर को अकबर महान बनाने की शुरुआत की, अकबर ने उसकी ही हत्या करवा दी। तुज़ुक-ए-बाबरी और बाद की फारसी क्रॉनिकल्स के अनुसार अकबर को बैरम खान की शक्ति और सामर्थ्य के कारण अपनी सत्ता खोने का डर सता रहा था। जबकि अकबर को प्रशिक्षित करने का कार्य बैरम खान ने ही किया था। इसी कारण अकबर ने बलपूर्वक बैरम खान को हज के लिए भेज दिया और रास्ते में ही उसकी हत्या करवा दी।

सन 1564 में अकबर से लड़ते हुए गोंडवाना की रानी दुर्गावती को वीरगति प्राप्त हुई। उन्होंने अकबर के अत्याचार से बचने के लिए आत्महत्या कर ली। युद्ध में मौत कोई अलग बात नहीं है, लेकिन इसके बाद अकबर ने जो किया, वो अत्यंत निंदनीय है। आरोप है कि अकबर ने इसके बाद रानी की बहन और पुत्रवधू को बलपूर्वक अपने हरम में शामिल कर लिया। हरम वो जगह होती थी, जहाँ मुस्लिम शासक या समृद्ध मुसलमान अपनी विलासिता के लिए लड़कियों को रखते थे। इनमें वो सब कुछ करना पड़ता था, जो उनका मालिक कहता था। कई इतिहासकारों के अनुसार अकबर जिन भी शासकों को पराजित करता था, वो उनकी पत्नियों, बेटियों और बहनों को अपने हरम में डाल देता था। इसीलिए रानी दुर्गावती ने आत्महत्या कर ली। क्योंकि यदि वो जीवित अकबर के हाथ लग जातीं तो उनको भी हरम में भेज दिया जाता।

अकबर ने 1568 में चित्तौड़गढ़ के किले पर आक्रमण किया। उस समय यह किला मेवाड़ के राणा उदय सिंह के पास था। इतिहास की कई पुस्तकों के अनुसार उसने किले पर कब्ज़ा करने के बाद यहाँ शरण लिए हुए 30,000 से भी अधिक निहत्थे लोगों की हत्या करवा दी। इन लोगों में बड़ी संख्या किसानों की थी, जो युद्ध की क्रूरता से बचने के लिए किले में आये थे। लेकिन उनका दुर्भाग्य कि यहाँ भी उनको मृत्यु ही मिली। अकबर ने चित्तौड़ सहित कई जगहों पर आक्रमण के दौरान हिन्दू मंदिरों को भारी नुकसान पहुँचाया।

अकबर को महान बताने वाले इतिहासकारों के अनुसार अकबर ने ऐसा अन्य राजपूत राजाओं को डराने के लिए किया, जिससे वो उसकी अधीनता स्वीकार कर लें। यदि इसे ही ठीक मान लिया जाए, तो भी क्या साम्राज्य विस्तार के लिए ऐसे लोगों की हत्या ठीक है, जिनका युद्ध से कोई संबंध ही नहीं है। इस घटना से यह सिद्ध होता है कि अकबर अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

अकबर को इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता था कि कौन सा राजा अच्छा शासक है और कौन सा प्रजा पर अत्याचार करता है। वह अपने साम्राज्य विस्तार के लिए हर किसी से लड़ता ही रहता था। उसने महाराणा प्रताप को भी अधीनता स्वीकार करने के लिए प्रस्ताव भेजा। महाराणा प्रताप ने इस गुलामी को स्वीकार करने से मना कर दिया। इसलिए सन 1576 में उसकी सेना ने महाराणा प्रताप पर हमला कर दिया। मुग़ल सेना ने महाराणा प्रताप को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। मुगलों का मेवाड़ की राजधानी गोगुंदा पर कब्ज़ा हो गया। महाराणा प्रताप पीछे जरुर हट गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी थी। उन्होंने 1582 में मुगलों के साथ दिवेर का युद्ध लड़ा और मेवाड़ के बड़े हिस्से पर उन्होंने पुनः नियंत्रण स्थापित कर लिया। इसी प्रकार अकबर ने कई महान हिन्दू राजाओं से युद्ध किया और उनके राज्यों पर शासन किया।

अकबर ने एक आदेश जारी करके वर्ष 1579 में खुद को धार्मिक मामलों का सर्वोच्च निर्णायक घोषित कर दिया। यह बहुत कुछ खलीफा के पद की तरह था, जिन्हें अल्लाह का प्रतिनिधि माना जाता है। यदि अकबर उदारवादी था, तो उसे स्वयं को खलीफा घोषित करने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी? किन्तु उसकी इस घोषणा को अधिकतर मुस्लिम धर्म गुरुओं का समर्थन नहीं मिला। इसे देखते हुए उसने स्वयं का ही संप्रदाय ‘दीन-ए-इलाही’ शुरू कर दिया। इससे गैर मुस्लिमों को भी जोड़ने के लिए उसने इसे उदारवादी संप्रदाय सिद्ध करने का प्रयास किया।

अकबर के बारे में एक कहानी प्रसिद्ध है कि जब एक बार बीकानेर के राजा की पत्नी किरण कुमारी मीना बाज़ार आईं, तो अकबर ने उनसे छेड़खानी की। किरण कुमारी ने अपनी आत्मरक्षा में कटार से अकबर पर हमला कर दिया। यद्यपि इस घटना के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है।

अकबर ने अपनी बेटी आराम बानो बेगम को जीवन भर विवादित रखा। इसको लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। कई इतिहासकारों के अनुसार अकबर नहीं चाहता था कि उसका कोई दामाद भविष्य में कभी भी उसकी सत्ता पर दावा न ठोक सके। यह वही विचार था जिसके कारण उसने अपने गुरु और संरक्षक बैरम खान की भी हत्या करवा दी थी। ऐसा भी दावा किया जाता है कि अकबर ने अपनी विवाहित और अविवाहित दोनों ही बेटियों को शाही हरम में रखा था। हरम में किसे रखा जाता है, इसके बारे में मैंने अपने इस लेख में पहले ही कुछ बाते बता चुका हूँ।

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