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सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों पर अपना निर्णय रखा सुरक्षित

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नई दिल्ली. आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश में हलचल है. इस फैसले को लेकर लोग दो धड़ों में बंट चुके हैं. कुछ लोग फैसले के पक्ष में हैं तो कुछ विरोध में. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों से संबंधित मामले में आज यानी गुरुवार को सुनवाई की. जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की तीन सदस्यीय बैंच ने सुनवाई की. कपिल सिब्बल और एसजी तुषार मेहता की दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के कारण बच्चों की मौत हो रही है. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने की जरूरत है, न कि इस पर विवाद करने की. तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी जानवरों से नफरत नहीं करता. चलिए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने किसने क्या दलील दी.

सड़क पर घूमने वाले आवारा कुत्तों से संबंधित याचिका पर सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दो तरह के लोग हैं. एक जो इस बारे में बोलते हैं और दूसरे वो जो इससे परेशान हैं. उन्होंने एक वीडियो का हवाला दिया और कहा कि कुत्तों की नसबंदी से रैबीज नहीं रुकेगा. उन्होंने कहा कि आवारा कुत्ते छोटे बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं. बच्चे मर रहे हैं, वीडियो देखिए बहुत सारे हैं. दूसरा विकल्प है बधियाकरण. मैं एनिमल लवर हूं, वो ठीक है, मगर आंकड़ा देखिए. एसजी ने कहा कि रेबीज और कुत्तों के काटने का डेटा दीजिए.

‘चिकन-मटन खाने वाले आज एनिमल लवर’

सुप्रीम कोर्ट में दलील देते वक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक बड़ी टिप्पणी की. उन्होंने भरी अदालत में कहा कि चिकन-मटन खाने वाले आज एनिमल लवर बन गए हैं. उन्होंने कहा कि एक ‘तेज आवाज वाली अल्पसंख्यक’ आबादी आवारा कुत्तों के पक्ष में बोल रही है, जबकि पीड़ित बहुसंख्यक आबादी’ चुपचाप गंभीर नुकसान झेल रही है. इनमें बच्चे भी शामिल हैं. उन्होंने उन लोगों की कथनी और करनी पर सवाल उठाया, जो खुद को पशु प्रेमी बताते हैं लेकिन मांसाहार के वीडियो साझा करते हैं. उन्होंने तर्क दिया कि नसबंदी और टीकाकरण से न तो रेबीज रुकता है और न ही बच्चों पर हमले. बच्चों की मौतें और विकृति अब भी जारी हैं.

डेटा के साथ तुषार मेहता ने दी दलील

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने डेटा के साथ आवारा कुत्तों पर पाबंदी के पक्ष में अपनी दलील रखी. मेहता ने कहा कि भारत में हर साल लगभग 37 लाख कुत्ते के काटने के मामले दर्ज होते हैं. इनमें से हर दिन 10,000. इसी अवधि में 305 रेबीज से मौतें होती हैं. हालांकि, WHO के अनुमान के अनुसार वास्तविक आंकड़ा अधिक हो सकता है. उन्होंने साफ-साफ कहा कि यहां कोई भी जानवरों से नफरत नहीं करता है.

कपिल सिब्बल ने क्या दलील दी?

वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नगर निगम को निशाना बनाते हुए कहा कि कुत्तों को रखने के लिए कोई शेल्टर नहीं है और पूछा कि आवारा कुत्तों को कहां रखा जाएगा. उन्होंने पहले के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को स्थगित करने की मांग की. फिर लाखों आवारा कुत्तों की भलाई और पशु संरक्षण कानूनों पर चिंता जताई. कपिल सिब्बल ने कहा कि मसला दिल्ली एनसीआर के विभिन्न इलाकों से कुत्तों को हटाने का है. शेल्टर बनाने और दो माह में रिपोर्ट देने का है. मसला ये है कि उन्हें छोड़ा नहीं जाए, मेरा कहना है वो कहां जाएंगे.

कपिल सिब्बल ने बताया उपाय

कपिल सिब्बल ने कहा कि कुत्तों को पकड़ने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है. शेल्टर है नहीं और हैं तो बहुत कम. जहां जगह कम होने की वजह से वो और खतरनाक हो जाएंगे. रोक लगाई जानी चाहिए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या सभी बिंदुओं पर? तो इस पर सिब्बल ने कहा कि जी हां. मैं मैं प्रोजेक्ट काउंडनेस की तरफ से हूं. बधियाकरण एक उपाय है पर उसे ठीक से लागू किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी

इसके बाद सड़क पर घूमने वाले आवारा कुत्तों से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की. जस्टिस नाथ ने कहा कि संसद नियम और कानून बनाती है… लेकिन उनका पालन नहीं होता.एक तरफ इंसान पीड़ित हैं और दूसरी तरफ पशु प्रेमी यहां खड़े हैं. थोड़ी जिम्मेदारी लीजिए… जिन-जिन ने हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं, उन्हें हलफनामा दाखिल कर सबूत पेश करने होंगे. आप सभी को. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान मामले में अंतरिम राहत के तहत स्टे लगाने की मांग पर आदेश सुरक्षित रखा.

साभार : न्यूज18

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