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कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर लगाए आरोप

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रायपुर. छत्तीसगढ़ कांग्रेस के भीतर जारी आंतरिक संघर्ष अब खुलकर सामने आ गया है. हाल ही में हुई पॉलिटिकल अफेयर कमेटी (PAC) की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का वरिष्ठ नेताओं पर सवाल उठाना, पार्टी के भीतर गहरे असंतोष और मतभेदों को उजागर करता है. यह घटना न केवल कांग्रेस की एकजुटता की छवि को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि राज्य में विपक्ष की भूमिका को भी कमजोर कर रही है, जिससे सत्ताधारी भाजपा को बिना किसी मजबूत प्रतिरोध के काम करने का अवसर मिल रहा है. भूपेश बघेल, जिन्होंने लगभग पांच साल तक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है और जिनकी राज्य में एक मजबूत व्यक्तिगत पकड़ है, का वरिष्ठ नेताओं को कठघरे में खड़ा करना कई सवालों को जन्म देता है. विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी वे केंद्रीय राजनीति में सक्रिय रहे हैं और उन्होंने विभिन्न राज्यों में पार्टी के लिए प्रचार भी किया है. PAC बैठक में उनका यह कदम दो मुख्य संभावनाओं की ओर इशारा करता है.

पहला, यह हालिया विधानसभा और लोकसभा चुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए जिम्मेदारी तय करने का एक प्रयास हो सकता है. बघेल संभवतः कुछ वरिष्ठ नेताओं को इस हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं या इस पर आत्मनिरीक्षण और जवाबदेही की मांग कर रहे हैं. दूसरा, यह पार्टी के भीतर अपने प्रभाव को पुनः स्थापित करने या मजबूत करने का एक प्रयास भी हो सकता है. कांग्रेस में यह अक्सर देखा गया है कि सत्ता से बाहर होने के बाद विभिन्न गुटों के बीच वर्चस्व की लड़ाई तेज हो जाती है और बघेल संभवतः अपने राजनीतिक कद को फिर से स्थापित करना चाहते हैं. यह स्थिति वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष और अन्य केंद्रीय या राज्य स्तरीय वरिष्ठ नेताओं के लिए एक बड़ी चुनौती है. उन्हें न केवल बघेल के आरोपों का जवाब देना होगा, बल्कि पार्टी के भीतर अनुशासन और एकजुटता भी बनाए रखनी होगी. यह घटना उनकी नेतृत्व क्षमता और संकट प्रबंधन कौशल की भी परीक्षा होगी. यदि वे इस स्थिति को प्रभावी ढंग से संभालने में विफल रहते हैं, तो इसका सीधा असर पार्टी के मनोबल और भविष्य की चुनावी संभावनाओं पर पड़ेगा.

एक मजबूत और प्रभावी विपक्ष के लिए आंतरिक एकजुटता अत्यंत आवश्यक है. यदि कांग्रेस अपने ही भीतर के संघर्षों में उलझी रहेगी, तो वह राज्य सरकार की नीतियों और फैसलों पर प्रभावी ढंग से सवाल उठाने में असमर्थ रहेगी. इससे लोकतांत्रिक संतुलन प्रभावित होगा और जनता भी एक विभाजित विपक्ष पर भरोसा नहीं कर पाएगी. भाजपा के पास कांग्रेस पर हमला बोलने का एक और मौका आ गया है, और वे कांग्रेस के इस आंतरिक कलह को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. यह आंतरिक कलह कांग्रेस की भविष्य की रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकती है. संगठन को मजबूत करना हो, आगामी स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी हो, या 2028 के अगले विधानसभा चुनावों के लिए रोडमैप तैयार करना हो, नेतृत्व की स्पष्टता और एकजुटता के अभाव में, पार्टी सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर सकती है. यह कांग्रेस हाईकमान के लिए भी चिंता का विषय होगा, जिसे इस आंतरिक विभाजन को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ सकता है, ताकि छत्तीसगढ़ में पार्टी को फिर से मजबूती प्रदान की जा सके.

साभार : न्यूज18

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