– सारांश कनौजिया
मातृभूमि समाचार यह मानता है कि किसी भी धर्म, संप्रदाय या मत की मान्यता का अपमान नहीं करना चाहिए. किन्तु पूरे देश में जिस प्रकार से नूपुर शर्मा का विरोध हो रहा है, उसे देखकर कुछ प्रश्न तो मन में आते ही हैं. संत कबीर ने मूर्ति पूजा को अधिक महत्व देने के स्थान पर नर सेवा ही नारायण सेवा है, इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया. हिन्दू धर्म में निराकार ब्रह्म की उपासना का प्रचलन लम्बे समय से है, तो वहीं जब तक नास्तिक अपने मत को दूसरे पर लादने का प्रयास नहीं करता, तब तक उसकी भी स्वीकार्यता है.
वहीं कबीर ने मुस्लिम समाज के लिए भी कुछ कहा है. उन्होंने लाउडस्पीकर से अजान को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए सवाल उठाया है कि क्या खुदा बहरा हो गया है, जो इतनी तेज आवाज की आवश्यकता है. वो अल्लाह को लेकर कोई प्रश्न नहीं उठा रहे, उनका सवाल इस्लाम को मानने वालों से है. शायद इसीलिए जब कबीर मरे, तब उनके अंतिम संस्कार की विधि को लेकर मुस्लिम समाज और हिन्दुओं में मतभेद सामने आया था. दोनों ही अपने प्रिय का अंतिम संस्कार अपनी मान्यता के आधार पर करना चाहते थे.
किन्तु कबीर ने जो कहा उसका एक अर्थ कोई कट्टरपंथी यह भी लगा सकता है कि उन्होंने खुदा को बहरा कहा है. यदि ऐसा है तो कबीर ईश निंदा के दोषी हैं. उनको सजा मिलनी चाहिए. उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए. उन्हें जल्द से जल्द फांसी दे देनी चाहिए. कबीर को मौत के घाट उतारने के लिए कानून में संशोधन होना चाहिए. यदि आज कबीर यह बात कहते तो शायद उनका कुछ इसी प्रकार विरोध हो रहा होता. उनके खिलाफ अब तक कई देश बयान दे चुके होते. भारत सरकार को बदनाम करने के लिए पाकिस्तान तक से साजिशन हिंसक प्रदर्शन के लिए प्रयास होते. शायद कोई उनके सर को कलम करने के लिए अब तक ईनाम घोषित कर चुका होता.
अब मुस्लिम धर्मगुरुओं के स्वर बदले हैं. इससे शांति की उम्मीद जगी है. लेकिन राजनीति अभी भी जारी है. जो मुस्लिम राजनीति में हैं, वो इस मुद्दे को जाने नहीं देना चाहते. यदि इस प्रकार का बयान कबीर आज देते तो उन्हें भी इस राजनीति का शिकार होना ही पड़ता.
लेखक मातृभूमि समाचार के संपादक हैं.