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मुद्रा स्फीति के मोर्चे पर आई अच्छी खबर

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– प्रहलाद सबनानी

माह जुलाई 2022 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर भारत में पिछले 5 माह के सबसे निचले स्तर 6.71 प्रतिशत तक नीचे आ गई है, यह जून 2022 माह में 7.01 प्रतिशत थी। इसका मुख्य कारण खाद्य पदार्थों की महंगाई दर में आई कमी है। हालांकि मूलभूत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर तो पिछले 10 माह के सबसे निचले स्तर  अर्थात 5.79 प्रतिशत पर आ गई है। माह जून 2022 की तुलना में माह जुलाई 2022 में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में मुद्रा स्फीति की दर में सुधार हुआ है।

यह हम सभी भारतीयों के लिए हर्ष का विषय हो सकता है कि भारत में मुद्रा स्फीति की दर में सुधार दरअसल वस्तुओं की आपूर्ति में हुए सुधार के चलते सम्भव हुआ है। अर्थात, पहिले देश में लगातार बढ़ रही महंगाई के कारणों में 65 प्रतिशत कारण आपूर्ति पक्ष के कारक जिम्मेदार थे जो अब घटकर 58 प्रतिशत पर आ गए हैं। भारत में वस्तुओं की आपूर्ति में बहुत सुधार हुआ है और अब चूंकि समय पर वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ी है जिसके चलते मुद्रा स्फूर्ति की दर में भी कमी दृष्टिगोचर हुई है। साथ ही, वैश्विक स्तर पर आपूर्ति सम्बंधी विघ्न भी कुछ कम हुए हैं। इसके कारण मुद्रा स्फीति के बढ़ने में मांग सम्बंधी कारकों का प्रभाव 40 प्रतिशत हो गया है।

हालांकि भारत में अप्रेल से जून 2022 के बीच मुद्रा स्फीति की दर में गिरावट दर्ज की गई है। परंतु, भारत में अभी भी कुछ राज्य हैं जिनमे जुलाई 2022 में महंगाई की दर 7 प्रतिशत से अधिक के स्तर पर बनी हुई है। भारत के कुल 23 राज्यों में से 15 राज्यों में महंगाई की दर 6 प्रतिशत से अधिक है (अप्रेल 2022 माह में इस श्रेणी में 21 राज्य शामिल थे) और 8 राज्यों में महंगाई दी दर 6 प्रतिशत से नीचे आ गई है। तेलंगाना राज्य में जुलाई 2022 में महंगाई की दर सबसे अधिक अर्थात 8.58 प्रतिशत थी जो जून 2022 के 10.05 प्रतिशत के स्तर से नीचे आई है।

भारत के साथ ही अन्य देशों में भी कोरोना महामारी के बाद से मुद्रा स्फीति (महंगाई) बहुत तेजी से बढ़ने लगी है। अमेरिका एवं कई विकसित देशों में तो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति 9 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है जो कि पिछले 50 वर्षों की अवधि में सबसे अधिक महंगाई की दर है। आगे आने वाले समय में, भारत में, महंगाई की दर के और भी नीचे आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है और इसके मार्च 2023 में 5 प्रतिशत से नीचे रहने की उम्मीद की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम कुछ नरम होना शुरू हो गए हैं। परंतु, अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत होने और भारतीय रुपए के लगातार कमजोर होते जाने से आयातित महंगाई की दर, भारत में महंगाई की दर को तेजी से नीचे आने से रोके हुए है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के माध्यम से रेपो दर में लगातार वृद्धि की जा रही है ताकि देश के नागरिक अधिक बचत करने की ओर आकर्षित हों एवं अपने खर्चों में कटौती करें और बाजार में उत्पादों की मांग कम हो जिससे मुद्रा स्फीति की दर में कमी हो। हालांकि यह एक नकारात्मक उपाय माना जाता है क्योंकि नागरिकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ऋण, बढ़ती ब्याज दरों के चलते, उनकी जेब पर भारी पड़ने लगते हैं, जिससे वे अन्य वस्तुओं की खरीद में कटौती करने को मजबूर होते हैं और इस प्रकार वस्तुओं की मांग में कमी की जाती है। परंतु इसके विपरीत यदि वस्तुओं की आपूर्ति में सुधार किया जाकर, वस्तुओं की उपलब्धता को बढ़ाया जाय, ताकि बढ़ी हुई मांग को पूरा किया जा सके तो यह एक सकारात्मक उपाय माना जाता है। और, माह जुलाई 2022 में महंगाई की दर में हुई कमी के पीछे सकारात्मक कारक ही अधिक जिम्मेदार हैं।

प्राचीन भारत के इतिहास में महंगाई नामक शब्द का वर्णन ही नहीं मिलता है। क्योंकि, ग्रामीण इलाकों में कुटीर उद्योगों के माध्यम से वस्तुओं का उत्पादन प्रचुर मात्रा में किया जाता था एवं वस्तुओं की आपूर्ति सदैव ही सुनिश्चित रखी जाती थी अतः मांग एवं आपूर्ति में असंतुलन पैदा ही नहीं होने दिया जाता था। बल्कि, शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि चूंकि वस्तुओं की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में रहती थी अतः वस्तुओं के दाम कम होते रहते थे। भारत सहित पूरे  विश्व में इसी विधि को अपनाकर महंगाई नामक राक्षस पर अंकुश लगाया जा सकता है।

दूसरे, ब्याज दरों में लगातार की जाने वाली बढ़ौतरी से कर्ज लेने वाली कम्पनियों एवं उपभोक्ताओं के कर्ज की लागत बढ़ जाती है एवं उनकी लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिससे इन कम्पनियों एवं उपभोक्ताओं पर दबाव बढ़ता है और यह सीधे तौर पर देश के आर्थिक विकास को विपरीत रूप से प्रभावित कर सकता है। इसलिए ब्याज दरों को बढ़ाने की भी अपनी सीमाएं रहती हैं। इसी कारण से कहा जाता है कि महंगाई को यदि नियंत्रण में लाना है तो कभी कभी विकास दर से समझौता करना पड़ सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में अभी तक की गई 140 बिंदुओं की वृद्धि के कारण सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम तथा खुदरा उपभोक्ताओं पर, ब्याज के रूप में, 42,500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इतनी बड़ी राशि को अन्यथा यह वर्ग  वस्तुओं की खरीद पर खर्च सकता था और अब इन वस्तुओं की मांग एवं उत्पादन दोनो ही कम होंगे।

दरअसल अमेरिका एवं यूरोपीयन देशों में महंगाई दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि की जा रही है जिससे अमेरिकी संस्थानों एवं अन्य विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में किए गए निवेश को वापस लाकर अमेरिकी एवं यूरोपीयन बाजारों में निवेश किया जा रहा है जिससे इन देशों की मुद्राओं पर भारी दबाव आ रहा है और अमेरिकी डॉलर की बाजार कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। विकासशील देशों की मुद्राओं का अवमूल्यन होने से इन देशों में आयातित सामान महंगा हो रहा है जिससे इन देशों में आयातित महंगाई की दर बढ़ती जा रही है। भारत में भी महंगाई बढ़ने के कारणों में अंतरराष्ट्रीय कारक अधिक जिम्मेदार हैं। आंतरिक स्थिति को तो केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक ने बहुत बड़ी हद्द तक नियंत्रित कर रक्खा है।

ब्याज दरों को बढ़ाकर कुछ समय के लिए तो मांग में कमी की जा सकती है। साथ ही, जब बाजार पूर्णतः प्रतिस्पर्धी के रूप में कार्य कर रहा हो तभी मौद्रिक नीति के माध्यम ब्याज दरों में परिवर्तन कर वस्तुओं की मांग को कम अथवा अधिक किया जा सकता है। परंतु, लम्बे समय के लिए यदि मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण रखना हो तो वस्तुओं की उपलब्धता पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। अतः वैश्विक स्तर पर भारत की पुरातन आर्थिक नीतियों के माध्यम से महंगाई पर सफलतापूर्वक अंकुश लगाया जा सकता है।

लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं

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