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अखंड सौभाग्य का पर्व करवा चौथ

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– डॉ घनश्याम बादल

करवा चौथ का व्रत सुहाग  के लिए व्रत करने का प्रपर्व  है । खासतौर पर पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सुहागिन विवाहित हिन्दू स्त्रियां  करवा चौथ का व्रत रखती हैं। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाए जाने वाला यह पर्व सुबह सूर्योदय से पहले करीब चार बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद पूर्ण होता है। पुरातनपंथी स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी करवाचौथ का व्रत बडी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती  हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है ।

इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। परंतु दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घय देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान अधिक प्रचलित है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने की अधिकारिणी मानी गई हैं । मान्यता यह भी है कि यह व्रत बारह या सौलह वर्ष तक लगातार किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन  किया जाता है। जो स्त्रियां आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर भी इस व्रत को कर सकती हैं।

 मिथ व कथाएं

बहुत समय पहले एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब  घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला था, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी । छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है ।

बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। उसने कहा कि करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से श्याम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है।

करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।

एक कथा और

एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। और करवा पूजन पूज कर चंद्रमा को अघर््य देकर फिर भोजन ग्रहण किया था  और ऐसा करने से उन्हे शिव की प्रप्ति हुई थी । ऐसा सुनकर द्रोपदी ने भी व्रत किया व पांडव सुरक्षित वापस आए थे ।

व्रतविधि    

उपवास सहित एक समूह में बैठ महिलाएं चौथ पूजा के दौरान, गीत गाते हुए थालियों की फेरी करके चौथ पूजा के बाद समूह मे सूर्य को जल का अर्घ्य देती हैं और  कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन प्रातः स्नान करके अपने पति की आयु, आरोग्य उन्नति व सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहती हैं । पूजन के दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करती हैं ।

लेखक  वरिष्ठ साहित्यकार हैं.

नोट : लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.

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